किसानों को जागरूक किये बिना आम निर्यात संभव नहीं..
लेखराम मौर्य
लखनऊ। आम निर्यात प्रोत्साहन कार्यशाला में किसानों, निर्यातकों और एफपीओ ने आम निर्यात में आने वाली समस्याओं और बाधाओं के अलावा किसानों में जागरूकता की कमी पर चिंता व्यक्त की गई। इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान लखनऊ में मंडल आयुक्त रोशन जैकब की अध्यक्षता में औद्यानिक मिशन योजना अंतर्गत आयोजित मंडल स्तरीय आम निर्यात प्रोत्साहन कार्यशाला में सभी अपने विचार व्यक्त कर रहे थे।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए उपनिदेशक उद्यान लखनऊ मंडल डीके वर्मा ने कहा कि 2019 से लगातार आम निर्यात में गिरावट आई है तथा भारत से सबसे अधिक अल्फांसो और केसर का निर्यात विदेशों को होता है इसके बाद अन्य आमों का नंबर आता है। उन्होंने कहा कि इसके लिए आईपीएम की तकनीक किसानों तक नहीं पहुंच रही है जिसकी वजह से निर्यात योग्य आम उत्पादन में समस्याएं आ रही हैं
अवध आम उत्पादक बागवानी समिति के महासचिव उपेंद्र सिंह ने कहा कि आम का काम दो-तीन महीने होता है यदि यहां प्रोसेसिंग यूनिट लगाई जाए उसके लिए 3 महीने के लिए टेंपरेरी विद्युत कनेक्शन मिलना चाहिए। एक छोटी इकाई के लिए 10 लाख की प्रोसेसिंग यूनिट लगती है ऐसी छोटी-छोटी इकाइयां ब्लॉक स्तर पर लगाई जानी चाहिए जिससे थर्ड क्वालिटी के आम का पल्प निकाल कर सीजन के बाद उसका उपयोग किया जा सकता है जिससे किसानों को अच्छा लाभ हो सकता है। उन्होंने कहा कि प्रोसेसिंग यूनिट के लिए मलिहाबाद के औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र में एक हाल है जहां कभी प्रोसेसिंग यूनिट लगाई गई थी लेकिन वह आज तक क्रियाशील नहीं हो सकी है इसलिए उसका उपयोग किया जा सकता है।
आम निर्यातक नदीम सिद्दीकी ने कहा कि रहमान खेड़ा स्थित मैंगो पैक हाउस की पुरानी मशीनों से ग्रेडिंग करके आम निर्यात नहीं किया जा सकता है उन्होंने कहा कि वी एच टी भी लगी है लेकिन उसका उपयोग सभी देशों में निर्यात के लिए जरूरी नहीं है उन्होंने कहा कि बैगिंग का आम भी निर्यात में आजमाया जाना चाहिए इसके अलावा लंगड़ा आम चौसा से सस्ता पड़ता है इसको भी दूसरे देशों में भेजने का प्रयास होना चाहिए। सब्सिडी खत्म होने से निर्यात कम हो गया किसान की सब्सिडी बंद हो गई। निर्यात में सब्सिडी के लिए जुलाई में सरकार ने नया शासनादेश जारी किया जिसकी जानकारी आज तक निर्यात को और किसानों तक नहीं पहुंची।
इरादा एफपीओ के निदेशक दयाशंकर सिंह ने कहा कि आम निर्यात के लिए किसानों में जागरूकता नहीं है बाजार में गलत दवाएं बिक रही हैं। किसान को यह बताने वाला कोई नहीं है कि कौन सी दवा का प्रयोग कब किया जाना चाहिए जिससे फसल में नुकसान न हो और कौन सी दवा आम निर्यात के लिए प्रतिबंधित है। इसकी जानकारी आज तक किसानों तक नहीं पहुंच पाई है। उन्होंने कहा कि हॉर्टीनेट पर रजिस्ट्रेशन कराने से लेकर ग्लोबल गैप के लिए जरूरी उपाय एक जगह किए जाने चाहिए जिससे किसानों को इधर-उधर भटकना न पड़े। दयाशंकर सिंह ने कहा कि रेलवे में दो बोगी दो महीने के लिए आम फल पट्टी क्षेत्र वाले जिलों से अन्य प्रदेशों को चलने वाली ट्रेनों में लगाई जानी चाहिए जिससे किसान यहां से दूसरे प्रदेशों की बाजारों/ मंडियों मैं भेज सके।
आम निर्यातक राजीव श्रीवास्तव ने कहा कि सिंगल विंडो की व्यवस्था की बात अब से 15 साल पहले की गई थी परंतु आज तक नहीं की गई यह होना आवश्यक है।
आम निर्यातक दीपक मिश्रा ने कहा कि जो निर्यात करते हैं उनको कोई सूचना नहीं दी जाती है निर्यातकों का कोई ग्रुप भी आज तक नहीं बना है। उन्होंने कहा कि बिहार और महाराष्ट्र की तरह यहां भी किसानों को सही जानकारी देकर उनके ग्रुप बनाए जाने चाहिए जिससे उन्हें सही जानकारी हो और अपने उत्पाद को सही व्यक्ति को भेज सकें। ईसीजीसी के सुभाष कुमार झा ने कहा कि हमारी संस्था दो तरह के रिस्क कवर करती है उनमें कमर्शियल और पॉलिटिकल रिस्क होते हैं।
इस अवसर पर एक लघु प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया था..
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