जनपद प्रदर्शनी पंडाल में स्थानीय कवि सम्मेलन सम्पन्न


डॉ. सुशील सम्राट 
इटावा। जनपद प्रदर्शनी पंडाल में शुक्रवार की शाम स्थानीय कवि सम्मेलन में कवियों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को खूब गुदगुदाया। 


कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य अतिथि प्रदर्शनी समिति के जनरल सेक्रेट्री विक्रम सिंह राघव ने दीप प्रज्वलन करके किया और अपने संबोधन में कहा कि इस मंच से निकले स्थानीय कवियों ने राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी इटावा जिले का नाम रोशन किया है और हमें आशा है कि आज का कवि सम्मेलन भी उसी गरिमा के साथ सम्पन्न होगा। 
इससे पूर्व सम्मेलन के संयोजक विश्वंभरनाथ  भटेले एवं सह संयोजक सुरेश दुबे ने मुख्य अतिथि समेत सभी कवियों का अंग वस्त्र एवं माल्यार्पण कर स्वागत किया। मंच पर परंपरानुसार दो वरिष्ठ कवियों, प्रेम बाबू प्रेम और गोविंद माधव शुक्ला का शॉल ओढाकर तथा दिबियापुर से पधारे भागवताचार्य पं. राघवेंद्र शुक्ला का माल्यार्पण कर सम्मान  किया गया। 

कार्यक्रम के पहले सत्र का संचालन डा. सुशील सम्राट ने तथा कवि सम्मेलन का संचालन सतीश चन्द्र दीक्षित अनपढ़ ने किया। अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार ब्रजानंद शर्मा ने की। कार्यक्रम का शुभारम्भ कवियत्री मंजू यादव की सरस्वती वंदना, "हंस वाहिनी शारदा माता कर दो ज्ञान सवेरा", से हुआ। सुधीर मिश्र ने "आओ हिंदी की कर लें वंदना, है यही अपने भारत की अल्पना", रचना से हिंदी वंदना की। 
प्रेम बाबू "प्रेम" ने "पुरवा कहियो जाय सजन से", लोकगीत सुनाया। बरेली से पधारी अतिथि कवियत्री उन्नति राधा शर्मा ने श्रृंगार की रचनाओं से समा बांधा। उनकी रचना, "चलो हमारे नसीब में जो लिखा है मिलकर गुजार लेंगे। करो तो हिम्मत बढ़ो तो आगे नसीब जो भी संवार लेंगे", खूब सराही गई। कवि एवं गजलकार अशोक यादव ने "प्यार का पहला गीत तुम्ही हो, जीवन का संगीत तुम्ही हो, रचना सुनाकर श्रीति की खूब वाहवाही लूटी। गोविंद माधव शुक्ला ने "मैं महानगर में रहती हूं, पाती अच्छी तनखा मोटी, मां ने भेजा बाजरा आज घर, बनी बाजरे की रोटी", रचना सुनाई। 
भरथना से आए कवि महेश मंगल ने, रुकावट के डर से सफर को न टालें, चट्टानें वट्टानें चलो तोड़ डालें", गजल सुनाकर खूब तालियां बटोरीं। देवेश शास्त्री ने,"ये कैसा कोलाहल कैसा हाहाकार है। चारों ओर दिखाई पड़ता भीषण नर संहार है", रचना से आज के माहौल पर करारी चोट की। अवनीश त्रिपाठी ने, "बार बार बंधे जूड़ा, बार बार खुल जाए", रचना सुनाकर खूब गुदगुदाया। 
वंदना तिवारी की रचना, "भाव गोपी सा हो कृष्ण मिल जाएगा। प्रेम का दीप फिर दिल में जल जाएगा", भी खूब सराही गई। इसके अलावा अवधेश भ्रमर, दीप चंद त्रिपाठी निर्बल, सुनील कुमार अवस्थी, प्रेम नारायण त्रिपाठी, कुमार वैभव,  रजनीश त्रिपाठी ,सत्यनारायण वर्मा, प्रमोद तिवारी हंस, प्रशांत शर्मा, शिव गोपाल अवस्थी, हर्ष शर्मा, प्रशांत तिवारी, श्री राम राही की रचनाएं भी खूब सराही गईं। अंत में संयोजक विश्वंभर नाथ भटेले ने सभी का आभार जताया।

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