डिस्कामो के बिना मूल्यांकन निजीकरण यानि जड़ में करोड़ लूट की योजना

लखनऊ। उ0प्र0 पावर कारपोरेशन में अवैध रूप से तैनात भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों ने यूं ही नहीं दो-दो वितरण निगमों को बेचने का फैसला किया है इसमें एक बड़ा राज छुपा हुआ है जो कि आज पाठको को  अवगत कराने जा रहे है

वैसे पूर्व में भी आगरा और नोएडा दोनों शहरों का निजीकरण किया जा चुका है लेकिन मजे की बात तो यह है कि निजीकरण से जनता का कहीं से कोई लाभ नहीं हुआ ! वैसे लाभ मिला तो निजी कम्पनियों को और  इस नीलामी करने व सहयोग करने वाले अधिकारियों /कर्मचारियो को।

यही नहीं पूरे भारत में निजीकरण के सारे प्रयोग असफल हो चुका है लेकिन फिर भी क्या कारण है कि जनता और किसानों  से जुड़े अति महत्वपूर्ण विभाग पर ।जब से भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी ने अवैध रूप से  अध्यक्ष, प्रबंध व‌ प्रबंध निदेशक डिस्ट्रीब्यूशन /डिस्काम की कुर्सीयां संभाली है तो सीधे से  घाटे का रोना रोते हुए इसको निजी हाथों में देने की तरह-तरह की तरीके निकलना शुरू कर देते है।

वैसे जब कि उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन का लाइसेंस 21/01/2010 को ही उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत नियामक आयोग ने जब्त कर के पांच वितरण निगमो, पारेषण निगम, उत्पादन निगम व जल विद्युत निगम को दे दिया था अब उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन का आस्तित्व सिर्फ इन सभी कम्पनियों के बीच मात्र समन्वय स्थापित करने वाली संस्था का रह गया है यानी उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन का ना अपना कोई बिजनेस प्लान या बजट होता है ना कोई अधिकार लेकिन फिर भी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी पूर्व की तरह यानी इसको एक परिषद की तरह ही चलते हैं यही वजह है उत्तर प्रदेश कि यह सोने की चिड़िया पूरे प्रदेश को चमकाने वाली यह संस्था घाटे में जा रही है ।

वैसे पूरे प्रदेश में बहुत से ऐसे विभाग है जो निरंतर घाटे में ही चलते हैं जैसे की शिक्षा विभाग ,स्वास्थ्य विभाग, पुलिस / गृह विभाग, जल कल विभाग , नहर व सिंचाई विभाग, परिवहन विभाग नगर विकास, नगर निगम जिला पंचायत अल्पसंख्यक विभाग आदि विभागों से सरकार को कोई राजस्व तो प्राप्त होता नहीं है तो क्या सरकार भविष्य में इन विभागों का निजीकरण कर देगी। परन्तु इनके विपरीत सरकार घाटा होने के बावजूद भी इन विभागों को चलाती रहती है क्योंकि यह जनता से जुडी आवश्यक सेवाएं हैं और जनता की सेवा के लिए सरकार इनको चलाती है और जनता इतना टैक्स इसी सब मूल भूत सेवा प्राप्त करने के लिए ही तो भरती है और वही लाखों करोड़ों रुपए जो की जनता से टैक्स के रूप में प्राप्त होता है उसी को सरकार खर्च करती है जनता के हित के लिए। वैसे ऊर्जा भी मूलभूत सुविधाओं में आती है तो फिर इसका निजीकरण क्यों? 

उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन में ऐसा कौन सा खेल है जो कि लोगों समझ में नहीं आ रहा है और यह बड़का बाबू इसको खेलने में लगे हुए हैं वैसे इनकी अपने स्वार्थ सिद्धि की वजह से हजारों लोगों की नौकरियां खतरे में है अगर संयुक्त संघर्ष समिति की मानें तो विभाग के  77000 कर्मचारी बेरोजगार हो जाएगे जिसमें अभियंता से लेकर संविदा कर्मचारी तक है।

जिस एक लाख दस हजार करोड़ का रोना यह बाबू रो रहे हैं वह तो प्रदेश की जनता का धन है जो जनता के पास है उसे आज नहीं तो कल धीरे-धीरे विभिन्न योजनाएं चलाकर वसूला भी जा रहा है जैसे वर्तमान में कभी ओ टी एस के नाम पर कभी अन्य योजनाओं के नाम पर वसूला जा रहा है।

तो फिर क्या जरूरत है इसको निजीकरण करने की ?

जब कि केंद्र और राज्य सरकार  सुचारू रूप से निर्बाध विद्युत व्यवस्था के लिए हजारों करोड़ों रुपए इस क्षेत्र में लगाती जा रही है और अब जब हजारों करोड़ रुपए लगा के बिजली व्यवस्था में सुधार किया जा रहा है तो फिर निजी हाथों में इस का संचालन देने का क्या औचित्य है? 

वैसे चर्चा है कि इस का असली खेल तो वो  66 हजार करोड़ है जो की इन वितरण निगमो के उपभोक्ता की जेब में है जो की निजी कंपनियां आते ही सर्वप्रथम वसूलेगी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण आगरा और नोएडा है जहां निजी कंपनियों के गुर्गे घरों के आगे खटिया बिछाकर धरना देकर बैठ जाते थे और जब तक पैसा नहीं मिल जाता तब तक वहां से हिलते नहीं थे परिवार बकाया पैसा चाहे अपनी संपत्ति गहने बेच कर इनका पैसा दे। 

इस तरीके से निजी कंपनियां वसूली करके अपनी जेबों को भर रही है यही निजी कंपनियां वह जो बकाया धनराशि है जो की  डिस्काम की संपत्ति होती है जिस पर डिस्काम का अधिकार होता है उससे अपनी जेबें भरती है और दिखाती है कि हम वसूली नहीं कर पाए जबकि सच्चाई यह है कि निजी कंपनियों के हाथ में जैसे ही व्यवस्था जाती है वह सबसे पहले ही इस मुफ्त में मिलने वाली हजारों करोड़ों की धनराशि की वसूली का अभियान शुरू कर देती है और इस काम को प्राप्त करने के लिए चलाएं गये चांदी के जूते की कीमत को जनता से वसूलने में लग जाते हैं वैसे आजकल राजनैतिक दल से ले कर श्रम संगठनों, मजदूर संघों तक में इस खुले भ्रष्टाचार के खेल की चर्चा है कि कैसे अवैध रूप से नियुक्त बड़का बाबू ने 25 से 30000 करोड़ में दोनों निगमों का सौदा किया है। अब सच्चाई भगवान जाने लेकिन चर्चा तो यही है।

यहां तक कि प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और कांग्रेस की एक बड़ी नेत्री जो कि अभी अभी चुनाव जीत कर पहली बार सांसद बनी है उन्होंने ने खुले तौर पर सार्वजनिक रूप से भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है।

वैसे निजीकरण करने से पूर्व क्या सरकार को पूरे उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन का एक सरकारी या वित्तीय विभाग से मूल्यांकन नही करा लेना चाहिए और केंद्रीय अवशोषण ब्यूरो से ऑडिट भी कर लेना चाहिए ताकि घाटे की वजह सार्वजनिक हो उसकी जिम्मेदारी भी तय होनी चाहिए। 

क्योंकि नियमतः कोई भी सरकारी वस्तु या कम्पनी बिना मूल्याकन के ना तो बिक सकती है ना उनका किसी भी प्रकार का रिफार्म किया जा सकता है अगर मूल्यांकन होगा तो जनता के सामने सच्चाई आ जाएगी और जिससे दूध का दूध पानी पानी हो जाए।

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