दावेदारों ने शुरू कर दी नेताओं की परिक्रमा
- विधानसभा चुनाव से 3 साल पहले ही दावेदारों ने शुरू कर दी नेताओं की परिक्रमा
- भाजपा, सपा से हो सकते हैं चार-चार दावेदार
लेखराम मौर्य
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव होने में भले ही अभी 3 साल से अधिक समय बाकी है बावजूद इसके चुनाव लड़ने के इच्छुक दावेदारों ने अभी से पार्टी नेतृत्व और अपने समर्थक नेताओं की परिक्रमा करना शुरू कर दिया है।
राजधानी की मलिहाबाद विधानसभा में पिछले दो चुनावों से जहां भाजपा की प्रत्याशी और पूर्व सांसद की पत्नी जय देवी चुनाव जीतती आ रही हैं वहीं इस बार कौशल किशोर के लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद से क्षेत्र के समीकरण बदल रहे हैं और पार्टी के ही दूसरे नेताओं ने टिकट पाने के लिए अभी से अपनी अपनी हाजिरी लगानी शुरू कर दी है।
भारतीय जनता पार्टी में अभी के हिसाब से चार दावेदार हो सकते हैं जिनमें वर्तमान विधायक जय देवी उनके पुत्र विकास किशोर उर्फ आंसू, मलिहाबाद क्षेत्र के ही चर्चित नेता एमएलसी रामचंद्र प्रधान की बहू प्रभा सरोज का नाम भी काफी तेजी से चर्चा में चल रहा है इसके अलावा पुष्पेंद्र पासी भी लोकसभा चुनाव में टिकट न मिलने से अब विधानसभा का पार्टी से टिकट मिलने पर चुनाव लड़ने की इच्छा जता रहे हैं।
अब समाजवादी पार्टी जो उत्तर प्रदेश में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है जिसका प्रत्याशी दो बार से चुनाव हार रहा है वहां भी चार लोग टिकट के दावेदार दिखाई पड़ रहे हैं जिनमें लोकसभा का चुनाव लड़ चुके सी एल वर्मा, पूर्व प्रत्याशी राजबाला रावत और सोनू कनौजिया के अलावा एक नई दावेदार विजय श्री गौतम भी लाइन में लगी हैं। सपा के इन चार लोगों की बात की जाए तो इनमें पिछले चुनाव में पहले पूर्व सांसद एवं पूर्व मंत्री सुशीला सरोज का टिकट घोषित हो गया लेकिन उम्र दराज होने और क्षेत्र से गायब रहने से नाराज पार्टी के कार्यकर्ताओं ने ही विरोध शुरू कर दिया था इसलिए बाद में पार्टी ने ऐन वक्त पर उनका टिकट काटकर सोनू कनौजिया को प्रत्याशी बना दिया था लेकिन काफी मेहनत के बावजूद कुछ दूसरे दावेदारों के विरोध के चलते उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसके अलावा पूर्व प्रत्याशी राजबाला रावत और कुछ सी एल वर्मा के समर्थकों ने सोनू कनौजिया का विरोध किया था जिसके चलते सोनू कनौजिया चुनाव हार गए थे। अभी हाल ही में वर्तमान सांसद आरके चौधरी के नेतृत्व में दो कार्यक्रम आयोजित किए गए जिसमें इस क्षेत्र के एक खास वर्ग ने कार्यक्रम का बहिष्कार किया था जिसे पार्टी का कोर वोटर माना जाता है।
इससे साफ पता चलता है कि आने वाले समय में सपा में भी खींचतान बनी रहने के चलते कोई भी पुराना दावेदार आसानी से चुनाव जीतने में सफल नहीं हो पाएगा क्योंकि गुटबाजी के चलते उसे विरोध का सामना अवश्य करना पड़ेगा जो पार्टी के लिए घातक होगा।
यदि पार्टी नेतृत्व ने इस गुट बाजी को समय रहते कम करने का प्रयास नहीं किया तो आने वाले चुनाव में भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। गुटबाजी का मुख्य कारण कुछ यादव नेताओं द्वारा सांसद और विधायक को अपने इशारे पर चलाने की उनकी इच्छा पूरी नहीं हो पा रही है इसलिए वह आज वर्तमान सांसद का विरोध कर रहे हैं क्योंकि वह किसी एक व्यक्ति के या कुछ व्यक्तियों के इशारे पर क्षेत्र में काम नहीं करना चाहते।
पूर्व में बसपा से चुनाव लड़ चुके जगदीश रावत आने वाले चुनाव के लिए अभी से क्षेत्र में भ्रमण पर लगे हुए हैं बावजूद इसके पार्टी उन्हें टिकट देगी या नहीं देगी, वह अपने काम में लगे हुए हैं भले ही बसपा की स्थिति पिछले दो चुनावों से लगातार गर्त में जाती दिखाई दे रही है।
इस महीने की 16 तारीख को उदा देवी के शहीद दिवस के अवसर पर लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के मुखिया चिराग पासवान ने मलिहाबाद में ही राजेश रावत के नेतृत्व में शक्ति प्रदर्शन किया था इसलिए उन्हें भी लोक जन शक्ति पार्टी से दावेदार माना जा सकता है चुनाव में क्या स्थिति होगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
इन पार्टियों के अलावा देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी से कुछ माह पहले जिला उपाध्यक्ष बनाए गए शिवकुमार गौतम क्षेत्र में संगठन को मजबूत करने के लिए काफी तेजी से काम कर रहे हैं वह भी टिकट की आस में प्रयासरत हैं क्योंकि वह एक सेवानिवृत्ति यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी के जनरल मैनेजर रह चुके हैं और अब राजनीति में आए हैं अब देखना है कि गठबंधनों के दौर में उन्हें मौका मिलता है या नहीं।
मलिहाबाद विधानसभा पासी बाहुल्य विधानसभा होने के कारण अधिकतर पार्टियां पहले इसी समाज के किसी व्यक्ति को प्राथमिकता देती हैं उसके बाद रैदास और फिर अन्य बिरादरी के किसी भी मजबूत नेता को चुनाव लड़ने का मौका मिलता रहा है और चुनाव भी जीते हैं। लेकिन आने वाले चुनाव में बदले समीकरणों को देखते हुए कई नेताओं के हौसले बुलंद हैं और उन्हें उम्मीद है कि टिकट उन्हें मिल सकता है इसमें चाहे बीजेपी हो या फिर समाजवादी पार्टी।
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