सेक्स से अकूत पैसा बनाया जा सकता है?

सेक्स से अकूत पैसा बनाया जा सकता है, कुछ लोग इस बात को मानने को राज़ी नहीं हैं... क्योंकि जब भी कोई सेक्स की बात करता है तो साधारण लोगों के दिमाग में इंटिमेसी या इंटरकोर्स ही घूमता है! 

जबकि सेक्स अपने आप में एक बहुत बड़ा बाज़ार है... जिसमें पैसा बनाने की अपार संभावनाएं हैं! 

एडल्ट एंटरटेनमेंट का मार्केट इतना बड़ा है कि अगर आपको बिजनेस की ज़रा सी भी समझ है और आपने इस बिजनेस में पैसा लगाया तो आप इसमें पैसा पे पैसा बना सकते हैं। 

साधारण आदमी के लिए सेक्स का अर्थ पत्नी के साथ सेक्स करना या चौराहों पर 500/1000 रुपए में मिलने वाली लड़कियों के साथ इंटिमेट होना भर है। या फिर उनके लिए शहर के एक कोने में बसा रेड लाइट एरिया ही बस सेक्स मार्केट है... 

उनके हिसाब से  500/1000 में शरीर बेचनी वाली स्त्रियां कितना ही कमा लेती होंगी... लेकिन सच्चाई यह है देह व्यापार से जुड़ी स्त्रियों के पास साधारण स्त्रियों के मुकाबले हमेशा ज्यादा पैसा होता है।

2023 में पोर्न इंडस्ट्री का ग्लोबल मार्केट लगभग 172.89 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो 2030 तक 248.18 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाने की पूरी संभावना है। ग्लोबल एडल्ट एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में अकेले एशिया पैसिफिक देशों का योगदान करीब 23% तक है।

एशिया पैसिफिक देशों में चाइना का एडल्ट एंटरटेनमेंट मार्केट 6056.01 मिलियन का है, दूसरे नंबर पर जापान 1857.18 मिलियन का मार्केट साइज  है। इसके बाद नंबर आता है हमारे देश का, जो संस्कारी, मर्यादित होने के ढोंग के साथ 1614.94 मिलियन का योगदान देता है पोर्न इंडस्ट्री में। 

प्लेबॉय पत्रिका, जो कि एक एडल्ट एंटरटेनमेंट का ही हिस्सा थी, सन् 1953 में शुरू की गई थी... जिसके संस्थापक ह्यूग हैफ़नर थे... जो कि अपने आरंभिक दिनों में एक निम्न दर्जे के पत्रकार थे! 

कुछ कारणों से नौकरी छोड़ दी और एक दिन प्लेबॉय पत्रिका छाप दी जिसमें मर्लिन मुनरो के न्यूड फोटोज़ थे... पत्रिका के 50 हजार प्रतियां पहले ही हफ्ते में बिक गईं। कहां एक दिन ह्यूग हैफ़नर के पास खाने के भी लाले थे और पत्रिका छपते ही वो अमीरों की लिस्ट में आ गए!

ठीक ऐसे ही ओशो फाउंडेशन की बात की जाए तो रजनीश ओशो ने भी सेक्स ही परोसा है... लेकिन ओशो ने जो सेक्स परोसा हैं उसमें उन्होंने दर्शन और अध्यात्म का तड़का लगा दिया... ओशो फाउंडेशन की नेट वर्थ आज 2200 करोड़ है। 

एशियाई देशों में इंटरनेट पर जितना ट्रैफिक है उसका लगभग 70% ट्रैफिक पोर्न साइटों पर होता है। डेढ़ दो जीबी डेटा का 90% उपयोग पोर्न देखने में खत्म होता है। आप जो पोर्न देखने में जो भी डेटा खर्च कर रहे हैं उससे टेलीकॉम कंपनियां पैसा बना रही हैं! 

मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता हो या आस्कर अवार्ड फंक्शन या फिर ओलम्पिक खेल आयोजन या भारत में लगने वाले कुंभ मेला  या गरबा डांस आयोजन... सब जगह सेक्स का ही बोल बाला है। अन्यथा इन आयोजनों के शुरू होने से पहले दर्शकों और प्रतिभागियों को कंडोम्स में पैकेट न बांटे जाएं।

कंडोम का अविष्कार गर्भ नियंत्रण के लिए किया गया था... लेकिन आज कंडोम्स इंडस्ट्री में आए क्रांतिकारी बदलाव का जिम्मेदार एडल्ट एंटरटेनमेंट ही है... वरना कंडोम्स कंपनियों ने जितने फ्लेवर और वैरायटी कंडोम्स में लॉन्च कर दिए है... उनते फ्लेवर और टेस्ट एक फाइव स्टार होटल के मेन्यू कार्ड में भी नहीं मिलते हैं। 

भारत में कंडोम्स के इस्तेमाल को लेकर अभी बहुत भ्रांतियां हैं... भारत में कुल आबादी के 5.6% लोग ही कंडोम्स का इस्तेमाल करते हैं... तब कंडोम्स इंडस्ट्री का मार्केट साइज 861.3 मिलियन अमेरिकी डॉलर है जो कि 2030 तक 1.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। 

कुछ देश थाईलैंड, वियतनाम, कंबोडिया, म्यांमार, नाइजीरिया आदि देशों वेश्यावृति चरम पर है... कोई सरकार माने या न माने लेकिन इन देशों की आर्थिक स्थिति बहुत हद तक वेश्यावृति पर ही निर्भर करती है।

भारत में एशिया सबसे बड़ा रेडलाइट एरिया सोनागाछी आज भी मौजूद है... सरकार ने यहां काम करने वाली सेक्स वर्कर्स को लाइसेंस भी दिए हैं। 

अगर रेड एरिया से सरकार को मोटा राजस्व नहीं मिलता होता तो शायद सरकार इसे बंद करवा देती... लेकिन सच्चाई यह है इन इलाकों से सरकार की अच्छी खासी कमाई होती है। 

भारत में वेश्यावृति अवैध है इसलिए भारत में सेक्स वर्कर्स के पास कानूनी अधिकार नहीं है इसलिए यहां पर लोग हजार/ पांच सौ में लड़कियां का शोषण करते हैं लेकिन जिन देशों में वेश्यावृति लीगल है... वहां सेक्स वर्कर्स का मिनिमम वेज तय होता है।

भोजपुरी सिनेमा और दक्षिण सिनेमा ने तो अश्लीलता सारी हदें पार कर दी हैं। भोजपुरी सिनेमा तो पोर्न इंडस्ट्री का सॉफ्ट वर्जन हैं। और आपको लगता है कि सेक्स से अकूत पैसा नहीं बनाया जा सकता। 

एडल्ट फिल्मों और मैग्जीनों में काम करने वाले कलाकारों के पास बेशक सीमित पैसा होता है, लेकिन जो लोग एडल्ट एंटरटेनमेंट बिजनेस से जुड़े हैं तो पैसा पे पैसा बना रहे हैं।

मर्दों के शैम्पू, डियो, अंडरगार्मेंट आदि के विज्ञापनों में औरतों का इस्तेमाल, क्रिकेट/ फुटबॉल में चियर लीडर्स का इस्तेमाल, किसी भी छोटी/बड़ी कम्पनियों में रिसेप्शनिस्ट और सेल्सगर्ल्स के तौर पर लड़कियां का उपयोग सेक्स परोसना कर पैसे बनाना नहीं है तो क्या है?

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