दुनिया को चेताने निकले हैं भारत के कलाकार! -मंजुल भारद्वाज
राजनेता हर साल गाहे बगाहे जलवायु परिवर्तन पर सम्मेलन करते रहते हैं,पर कर कुछ नहीं पाते। जलवायु परिवर्तन सम्मेलन पर जितना खर्च होता है उतने खर्च में दुनिया के बच्चों का पोषण हो सकता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ एक खिलौना बनकर रह जाता है जब एक ध्रुवीय विश्व में उभरती अर्थव्यवस्थाओं का शक्ति प्रदर्शन जलवायु पर कहीं कोई समझौता नहीं होने देते !
विकास ने पृथ्वी की ओज़ोन परत को फाड़ कर दुनिया को तबाही के कगार पर खड़ा कर दिया है। पृथ्वी का तापमान बढ़ गया है। बुखार में धरती तप रही है इसलिए हर ओर अति वृष्टि हो रही है।
कहीं बेहिसाब सूखा,कहीं बेहिसाब बारिश , कहीं बाढ़, कहीं भूस्खलन, कहीं तूफान! गांव हो, शहर हो , महानगर हों मरुभूमि हो या पहाड़ सब इसका शिकार हैं। किसान तबाह हैं! सड़कें नदी बन गई हैं और हवाई जहाज एयरपोर्ट पर नाव की तरह तैर रहे हैं।
दुनिया में जानमाल की हानि हो रही है।
प्रकृति मनुष्य की शत्रु बन गई है। या यूं कहें प्रकृति पर कब्ज़ा करने की लालसा और अंधाधुंध विकास में मनुष्य आत्मघाती हो गया है। इस विकास ने प्रकृति को अपना शत्रु बना सब जगह विध्वंस का मंजर खड़ा कर दिया है।
विकास ने सबसे ज्यादा शिक्षित वर्ग की मति भ्रमित की है। सत्ताधीश मां के नाम एक पेड़ लगाने का झांसा देकर जनता को भावुकता में झोंक जंगल काट रहे हैं। जंगलों को तबाह कर रहे हैं।
जंगलों को तबाह कर दिया है। मनुष्य बगीचे बना सकता है,पेड़ लगा सकता है,चिड़िया घर बना सकता है पर जंगल नहीं बना सकता । जंगल का निर्माण प्रकृति करती है। जंगल विविधता, निर्सग चक्र के साथ पूरी जैव संस्कृति समाए रहता है जो जलवायु और इकोलॉजी को संतुलित, संवर्धित और संरक्षित रखता है।
भारत का शिक्षित वर्ग जंगल काट बहुमंजला इमारतों में एसी लगाकर खुद के विकसित होने का प्रमाण समझता है जबकि एक पेड़ सौ एसी से ज्यादा सशक्त है। विकास का मति भ्रमित मापदंड हैं जो सबसे ज्यादा, जल, वायु, ऊर्जा खर्च करते हैं वो अमीर और जो कम से कम संसाधनों में गुजर बसर करते हैं वो अमीर!
जबकि है उल्टा न्यूनतम संसाधनों में जीने वाले ,जंगलों को संरक्षित करने वाले पृथ्वी के, प्रकृति के मित्र हैं और ज्यादा ऊर्जा का भोग करने वाले शिक्षित और विकसित जलवायु, इकोलॉजी, प्रकृति और पृथ्वी के शत्रु हैं !
दुनिया के इसी मनोभाव को बदलने के लिए एक अनोखे मिशन पर निकले हैं भारत के पांच बच्चे !
यह बच्चे अपने नाटक ' दी .. अदर वर्ल्ड ' से दुनिया को जागरूक करने के लिए 74 दिन तक यूरोप की यात्रा करेंगे। इस यात्रा में स्कूल, रंगगृहों और विभिन्न समुदायों में इस नाटक का मंचन करेंगे ।
जर्मनी के किंडर कुल्टूर कारवां द्वारा आयोजित इस बाल संस्कृति महोत्सव में दुनिया के विभिन्न महाद्वीपों के सांस्कृतिक बाल और युवा समूह हिस्सा ले रहे हैं।
अंतर महाद्वीपीय संस्कृतियों का यह अनोखा संगम होगा !
थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य दर्शन ने विगत 32 वर्षों से दुनिया को बेहतर और मानवीय बनाने में अपने रंगकर्म से भारत ही नहीं विश्व में ख्याति प्राप्त की है । उसी कड़ी में यूरोप में मंचन हेतु इकोलॉजी, पर्यावरण ,जलवायु को संरक्षित करने के लिए नया नाटक सृजित किया है 'दी.. अदर वर्ल्ड ' ! इस नाटक का जर्मनी और यूरोप के विभिन्न शहरों में मंचन होगा जैसे कोलोन,हैमबर्ग, रोडेफ्जल, वूफेन, रोदेस्तान, आचेन ,लेवरकुसेन आदि !
रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज लिखित - दिग्दर्शित नाटक
दी.. अदर वर्ल्ड ' को मंचित करने वाले बाल कलाकार हैं नेत्रा देवाडिगा,प्रांजल गायकवाड, राधिका गाडेकर ,तनिष्का लोंढे और संजर शिंदे !
थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य सिद्धांत की अभ्यासक रंगकर्मी जानीमानी अभिनेत्री अश्विनी नांदेड़कर और सहयोगी सायली पावस्कर ,कोमल खामकर के मार्गदर्शन में इन बाल कलाकारों ने जंगलों में बिना बिजली, टेप वाटर के प्रकृति और आदिवासियों के बीच रहकर खुले आसमान में चांद सितारों को देखते हुए,न्यूनतम ऊर्जा और संसाधनों में जीते हुए नाटक
' दी.. अदर वर्ल्ड ' तैयार किया है!
12 सितंबर को यूरोप के लिए उड़ान भरेंगे यह बाल कलाकार थियेटर ऑफ़ रेलेवंस के प्रेणता रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज के साथ !
नाटक ' दी.. अदर वर्ल्ड ' पंच तत्वों की उत्पति से जीव और मनुष्य सृजन यात्रा को दर्शाता है। कैसे आइस युग से होते हुए मनुष्य पाषाण युग से खेती और पशु पालन तक पहुंचा। संपत्ति का निर्माण करते हुए दासता के अंधकार सामंतवाद में धस गया ।
औधोगिक क्रांति ने मास प्रोडक्शन के जरिए पूंजीवाद और साम्यवाद को जन्म दिया । मानव कल्याण के सारे रास्ते इकोलॉजी ,पर्यावरण और जलवायु को ध्वस्त करते गए और आज आत्मघाती हो गए हैं।
नाटक मनुष्य के विकास की विकृत समझ को सही दिशा देते हुए मानवता, पृथ्वी, इकोलॉजी और जलवायु को सहेजने ,संरक्षित कर संवर्धित करने का अद्भुत कलात्मक सौंदर्य कलाकर्म है!
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