आखिर तुम हो तो हो कहां?

काफिर -गैर इस्लामिक?
हेमन्त कुशवाहा
 
एक कट्टरता वाद की नज़र में ये  पूरा भारतीय समाज काफिरों से भरा पड़ा है जिसको पूर्ण खत्म करने के इरादे से वो ना जाने कितने जघन्य तरीके अपना रहा है यथा अबोध बच्चियों व महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार करके वो समाज में एक भय व दहशत का पूरा माहौल खड़ा कर रहा है
साथ ही सत्तारूढ़ सरकार को एक खुली चुनौती दे रहा कि जल्द ही भारत को इस्लामिक देश में तबदील कराकर ही दम लेंगे जब तुमको इतनी ही नफ़रत है तो फिर क्यूं किसी के पास जाकर काम धंधे के लिये कह रहे हो, क्यूं किसी के यहां नौकरी कर रहे हो, क्यूं किसी थाने में जाकर रिपोर्ट दर्ज करा रहे, क्यूं किसी आला अधिकारियों व पुलिस प्रशासन से शिकायत करते फिर रहे हो, क्यूं कचहरियों के चक्कर काटते फिर रहे हो, क्यू किसी जज से इंसाफ की उम्मीद लगाए हो, क्यूं किसी शैक्षणिक संस्थान में दाखिला लेने के लिए जद्दोजहद कर रहे हो, क्यूं किसी डॉक्टर से अपना इलाज करा रहे हो ऐसी कई अनगिनत चीजें हैं जिनके बगैर तुम्हारा जीना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
इस कट्टरता की बावत जानना चाहते हो कि जिन मुल्कों में मानवतावाद व समाजवाद नाम की कोई चीज नहीं है वहां के हालात कैसे और क्या हैं और वहां किस तरह से लोग जीते और मरते हैं जिनमें सीरिया, ईराक, लेबनान, हमास, फिलीस्तीनी, अफगानिस्तान, तालिबान, पाकिस्तान आदि सरीखे देशों का ताजा हाल देखिए फिर इस चीज के बारे में सोचिए' चूंकि कुदरत नाम की भी कोई चीज होती है जहां मानवता का विनाश खुले आम होता है
सामूहिक नरसंहार व हत्याएं की जाती हैं वहां की जमीन फिर दूषित ही नहीं बल्कि हमेशा-हमेशा के बंजर बन जाती है वहां फिर तरक्की नाम की कोई चीज नहीं दिखाई देती सिर्फ एक भय, लूटमार, छीना-झपटी व मारकाट का आलम दिखाई देता है जिससे ही  बाकी जीवन को पूरा किया जाता है
दूसरा विकल्प उन्हें आखिरी सांस तक नहीं मिल  पाता है इसलिए एक बार खुद के भीतर झांकिये फिर सोचिए कि आखिर तुम हो तो हो कहां.... शायद एक गलत फहमी के सिवा कहीं नहीं।

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