अधिकारों के लिए संघर्ष नहीं करेगे तो सामाजिक ,आर्थिक ,शैक्षिक, राजनैतिक विकास संभव नहीं- जगदीश अटल वाल्मीकि

लखनऊ l   मित्रों,वाल्मीकि समाज आजादी के बाद थोड़ा सा सम्मान और अधिकार  पाकर ही सम्पूर्ण अधिकार मिलने की गलत फहमी में जी रहा था।जब से राजनीति के प्रति थोड़ी बहुत समझ आई है देर से ही सही विकास की मुख्यधारा से जुड़ने और सामाजिक आर्थिक शैक्षिक अधिकारों को मिलने का अपना अधिकार समझा और उसके प्रति लालसा बढ़ी तब से किसी भी पार्टी /दल की पार्टी से कभी भी संतुष्ट नहीं रहा है उसकी वजह कुछ हमारे संगठन और संघर्ष में उदासीनता और कुछ विभिन्न सरकारी द्वारा इस सरकार द्वारा इस समाज की उपेक्षा रही है। जो आज भी निरंतर जारी है।

किसी भी सरकार ने हमारे सामाजिक शैक्षिक राजनैतिक आर्थिक विकास के लिए संपूर्ण रूप से न योजना बनाई न ही सही तरीके से योजनाओं का संचालन किया।

दिखावे के लिए सर पर मैला ढोने की परंपरा समाप्त करने के लिए सेचछकार विमुक्ति योजना चलाई मगर इस योजना का लाभ इस समाज को केवल 20हजार रूपए ऋण तक ही सीमित रखा और इस योजना के अंतर्गत  छोटे व्यवसाय और कुटीर धंधों तथा टैक्सी तीन पहिया वाहन ऋण जिसकी सब्सिडी का वा ऋण में आधी छूट थी उसका लाभ दलित समाज की उन जातियां को दिया जिस समाज के अधिकारी शासन प्रशासन के उच्च पदों पर बैठे थे। इस योजना से एक तरफ तो हमारे काम छूटने से आर्थिक नुकसान हुआ दूसरी तरफ 20हजार रूपए की कम धनराशि और प्रशिक्षण के अभाव में कर्जदार भी हुए और बेरोजगार भी हुए।

यानी वही कहावत चरितार्थ हुई कि

न खुदा ही मिला न विशाले सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे।

आरक्षण के नाम पर सफाई की सरकारी नौकरियों में दूसरे समाज को सफाई की नौकरियां तो सफाई के नाम पर दी गई मगर सफाई की जगह कार्यालयों में चपरासी का काम अधिकारियों की गाड़ी चलाने का काम और अधिकारियों के बंगले पर तैनात किए गए जिसके कारण उनके हिस्से के कार्य का दोहरा बोझ और सफाई व्यवस्था ठीक न होने आरोप लगा कर कामचोर का लांछन भी हमारे ही समाज पर लगा क्यों की शासन ,सत्ता में हमारे समाज के अधिकारी थे ।

यह सब देख कर हम केवल इस ख्वाब में जीते रहे की जब अगली सरकार आएगी तो इस समाज को न्याय मिलेगा हम सरकार बदलने का इंतजार देखते रहे सरकारे बदलती गई और साथ ही सरकारी सफाई की नौकरियां नियमित से बदलते बदलते संविदा और ठेकेदारी व्यवस्था जैसी गुलामगिरी तक पहुंचा दिया।यहां ध्यान देने की बात यह है की साफ सफाई का काम कम मेहनताने पर हमारे समाज से लिया जाए और मलाई धन्नासेठ खाएं पहले की सरकारों ने सर पर मैला ढोने का काम हमसे छोड़वा कर वाह वाही लूटी मगर नौकरी दूसरे समाज को दी नगर निगमों नगर परिषदों में बमपुलिस(शौचालय) बन्द करके सरकारी नौकरी समाप्त की उसके बदले निजीकरण के तहत इंटर नेशनलसुलभ शौचालय की सफाई हमारा समाज करे और मालिक बिंदेश्वरी पाठक जी मतलब

अंडा दे मुर्गी और खाए साहुकार 

समाज के कुछ लोग और हमारे अधिकारो को छीनने वाले दूसरे समाज के लोग जो ज्ञान बांट रहे हैं  की झाड़ू छोड़ो यह सही है मगर झाड़ू की  नियमित नौकरी करके ही समाज के लोग अपने बच्चो को उच्च शिक्षा दिलाकर सरकारी उच्च पदों पर पहुंचा पाए हैं ठेकेदारी प्रथा में कोई नहीं चाहता की यह अपमानित कार्य करे मगर आज भी जिस समाज के लोग गावो में वाल्मीकि समाज के बच्चो की घोड़ी पर बारात बर्दास्त नही कर सकते जिस समाज के बच्चे आज भी गावों के मंदिर में प्रसाद लेने जाने पर मारे जाते हो उनके बच्चो के हाथ की छुई खाने की सामाग्री कौन खरीदेगा ।

यह सब जानते हुए भी सरकार्रे बदलने का इंतजार करते रहे मगर सरकार शासन प्रशासन की व्यवस्था के विरुद्ध सवाल किया न ही अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया।

सामाजिक परिवर्तन तभी हो सकता है जब सत्ता परिवर्तन का इंतजार न करें सरकारों का परिवर्तन होता रहेगा हमारे सामाजिक शैक्षिक आर्थिक राजनैतिक अधिकार तब  तक नहीं मिलेंगे जब तक हम व्यवस्था परिवर्तन के लिए एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने आपसी भेद भाव शिकवे गिले भुला कर अपनो से लड़ने के बजाए सरकार से सवाल और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष नहीं करेगे तब तक सामाजिक आर्थिक शैक्षिक राजनैतिक विकास संभव नहीं है।


जो लोग वक्त के सांचे में ढल नही सकते

वह लोग अपने गमों को खुशियों में बदल नही सकते

अरे अपने रगों का खून जलाने का हौसला तो करो

कौन कहता है कि पत्थर पिघल नही सकते l 

समाज का सजग प्रहरी जगदीश अटल वाल्मीकि महामंत्री लखनऊ नगर महापालिका कर्मचारी यूनियन

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