मध्य प्रदेश की मोहन सरकार नरेगा मजदूरों की कर रही शोषण -पारस
सिंगरौली। जनपद पंचायत बैढ़न वार्ड क्रमांक 11 सखौहां के जनपद पंचायत सदस्य श्री पारसनाथ प्रजापति ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए बताया है की सबसे पिछले पायदान पर खड़े मज़दूरों का लगातार मध्य प्रदेश सरकार के द्वारा शोषण किया जा रहा है नरेगा (मनरेगा) भारत सरकार की एक रोजगार गारंटी योजना है इसे 7 सितंबर 2005 को विधानसभा में पारित किया गया था इसके बाद 2 फरवरी 2006 को 200 जिलों में नरेगा योजना शुरू की गई
नरेगा को ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा लागू किया जाता है यह सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है नरेगा का मकसद ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की जिन्दगी से सीधे जुड़ना और व्यापक विकास को बढ़ावा देना है नरेगा का मकसद एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों की गारंटीकृत मजदूरी रोजगार देकर ग्रामीण इलाकों में आजीविका सुरक्षा बढ़ाना है इसके लिए हर परिवार के वयस्क सदस्यों को अकुशल मैनुअल काम करने के लिए स्वयंसेवा कराया जाता है।
6 महीने से नहीं हो रहा नरेगा मजदूरों का भुगतान
नरेगा मजदूरों का लगातार शोषण जारी है निर्माण एजेंसी से लेकर सरकार तक नरेगा मजदूरों का शोषण करने में कोई कोताही नहीं बरत रही है मैंने अपने जनपदीय क्षेत्र का भ्रमण किया जिसमें नरेगा पोर्टल के जॉब कार्ड में पंजीकृत मजदूरों से मुलाकात हुई नरेगा मजदूर के द्वारा मजदूरी भुगतान न होने की शिकायत पाई गई है सभी मजदूरों ने अपनी मजदूरी भुगतान कराने के लिए अपने जनपद सदस्य से गुहार लगाया है पिछले 6 महीने से नरेगा में कार्य करने वाले मजदूरों का भुगतान नहीं किया गया है जब इसकी जानकारी मैंने अपने जनपदीय क्षेत्र के सरपंचों से चाहा तो उनके द्वारा एक टुक जवाब प्राप्त हुआ की नरेगा की राशि पंचायत के खाते में नहीं होने के कारण मजदूरों का भुगतान नहीं हो पा रहा है 6 महीने से नरेगा का बजट ग्राम पंचायत को प्राप्त नहीं हुआ है जिस कारण नरेगा मजदूरों का भुगतान नहीं हो पा रहा है।
सरकार तत्काल नरेगा मजदूरों का भुगतान कराये नहीं तो सड़क पर होगा आंदोलन
अपने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से जनपद पंचायत सदस्य श्री पारसनाथ प्रजापति ने मध्य प्रदेश सरकार का ध्यानाकर्षण व अनुरोध किया है मजदूरों का भुगतान करना न्यायोचित होगा मजदूर अपनी मजदूरी भुगतान पाने के लिए चिंतित हैं उनके ऊपर दोहरा मार मजदूरी भुगतान नहीं होने से उनके जिवकोपार्जन पर तमाम कठिनाइयां व मुसीबत खड़ी हो गई है यदि सरकार तत्काल भुगतान करती है तो ठीक है नहीं तो इसके लिए सड़क पर आंदोलन के लिए रणनीति तैयार करेंगे।
नरेगा मजदूरों का जितना काम मिले उतना दाम
नरेगा (मनरेगा) कानून 2005 में स्थापित हुई है तब से लेकर आज तक लगातार मध्य प्रदेश सरकार द्वारा मजदूरों का शोषण किया जा रहा है नरेगा मजदूरों का अभी हाल ही में दैनिक मजदूरी 221 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरों का भुगतान किया जाता है.
8 घंटे लगभग इनसे काम कराया जाता है लेकिन जब यही मजदूर किसी औद्योगिक कंपनी में काम करने के लिए जाता है तो इसका दैनिक मजदूरी 700 से 800 रुपए के बीच होती है तो फिर नरेगा में 8 घंटे मजदूरी करा कर 221 रुपए मजदूरी भुगतान क्यों मध्य प्रदेश सरकार के द्वारा सरासर नरेगा मजदूरों के साथ अन्याय व शोषण किया जा रहा है आपको बता दें नरेगा में सबसे पिछले पायदान पर जो मजदूर खड़ा है.
उसके पास रोजी-रोटी का सहारा नहीं होता है जीवकोपार्जन का मात्र सहारा होता है जो आर्थिक तंगी से जूझ रहा होता है कड़ी धूप हो या कड़कड़हाटी ठंड दिन भर जब काम करता है तब जाकर के कहीं उसके घर में चूल्हा जलता है अपने परिवार के लिए दाल रोटी का जुगाड़ बनाता हैं उसके घर में दो वक्त की रोटी तैयार होती है ऐसी स्थिति में मजदूर नरेगा में काम करते हैं और सरकार 6 महीने से उनकी मजदूरी भुगतान को रोक दी है जिससे मजदूरों पर आफद पड़ी है।
विधानसभा में आज तक नरेगा मजदूरों का नहीं उठा मुद्दा
मध्य प्रदेश में 230 विधानसभा सीटें हैं जो इन्हीं मजदूरों के दम पर विधायक चुन लिए जाते हैं लेकिन 230 विधायक चुनकर जनता का नेतृत्व करने के लिए भोपाल विधानसभा सदन में एंट्री करते हैं लेकिन आज तक विधानसभा का एक भी विधायक नरेगा मजदूरों के मुद्दों को नहीं उठाया क्या मध्य प्रदेश के 230 विधायकों को पता नहीं है कि नरेगा में जो श्रमिक मजदूरी करता है उसकी दैनिक मजदूरी उसके कार्य के हिसाब से काफी कम है 8 घंटे कोई मजदूर अपने परिवार का पेट पालने के लिए मनरेगा में मजदूरी करना है तो उसकी मजबूरी है की 221 रुपए में 8 घंटे कार्य कर रहा है उसकी मजबूरी क्यों है.
ग्राम पंचायतों में कम पढ़े-लिखे लोग होते हैं जो कहीं कंपनी में कार्य नहीं कर सकते और वैसे भी सिंगरौली में काफी ग्रेजुएट डिग्री लेकर युवा घूम रहे हैं उन्हें रोजगार उपलब्ध नहीं हो पा रहा है तो फिर फावड़ा चलाने वाले अनपढ़ों को कहां से कंपनी में रोजगार मिल पाना संभव है.
ग्रामीण अंचल आदिवासी अनुसूचित जाति एवं जनजाति के दबे कुचले लोग अपनी भूख मिटाने के लिए मजदूरी का कार्य करते हैं क्योंकि उनके पास अपना जीवकोपार्जन का कोई अन्य साधन नहीं है।
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