तुम चाहते हो ना लिखूं मैं अपने गांव की कहानी,

अनुपम मौर्य

दक्षिण दिशा में बसे 

हम पिछड़ो के मोहल्लों की कहानी

ना लिखूं बज बजाती 

सड़ी नालियों से निकलती जहरीली बीमारी

ना लिखूं ऊबड़ खाबड़ रोड

ना लिखूं गलियों मे महीनो से भरा वो पानी 

ना लिखूं वो स्वच्छता मिशन की सच्चाई

तुम तो यही चाहते हो 

कि ना लिखूं कब्जा की गई 

सामन्तो द्वारा वो परती की जमीन

मेरी प्राथमिक पाठशाला की 

टूटी बाउंड्री वह चोरी हुई टीन

ना लिखूं गरीबों के हिस्से का वो 

अनाज जो हर दिन रसूखदारों के 

थाली में परोसा जाता है

तुम तो यही चाहते हो कि मैं अपनी बस्ती

अपने मोहल्ले की कहानी ना लिखूं

तुम्हारे मोहल्ले का विकास ही 

गांव का विकास अपने मोहल्ले का विकास मान लूं

क्योंकि तुम्हारे मोहल्ले साफ सुथरे हैं

तुम्हारे मोहल्ले की सड़के मुस्कुराती 

नालियां चमचमाती हैं

तुम्हारे मोहल्ले का विकास संपूर्ण गांव का

विकास तो नहीं??

तुम्हारे मोहल्ले में रह रहे लोगों की

थाली में बढ़िया स्वादिष्ट खाना आ गया

गांव के हर तपके का विकास हो गया 

क्या विकास की परिभाषा यही है?

यदि यही है तो ऐसे विकास से हमें दिक्कत है ।

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