ऐसा नाटक पहली बार देखा है!
मंजुल भारद्वाज
9 मार्च,2024 को नाटक 'लोक-शास्त्र सावित्री' के हाउसफुल शो के बाद जब दर्शकों ने कहा ऐसा नाटक पहली बार देखा है। स्व. भैय्यासाहेब गंधे नाट्यगृह, ला. ना. हायस्कूल, जलगांव में दर्शकों के इस समवेत स्वर ने नया रंग इतिहास रच दिया! अपनी भर्राई, कंपकपाती, ओजस्वी, दृढ़, उन्मुक्त, आंसुओं में डूबी आवाज़ में दर्शकों ने नाटक 'लोक-शास्त्र सावित्री के समापन के बाद हुई चर्चा में समवेत स्वर में उद्घोषित किया कि जलगांव में ऐसा नाटक पहली बार हुआ है और हमने स्वयं को चैतन्य से आलोकित करता हुआ नाटक पहली बार देखा है!
दर्शकों का ऐसा समवेत उद्गार एक विरल कलात्मक उपलब्धि है विशेषकर आज के विध्वंसक काल में।
जब समाज में द्वेष, नफ़रत, विभाजन खुद सत्ताधीश कर रहा हो ऐसे समय में सर्व समाज का एक साथ आकर समता, समानता और संविधान के लिए प्रतिबद्ध होना एक नई उम्मीद जगाता है।
थियेटर ऑफ़ रेलेवंस के कलाकारों ने रंगभूमि को तीन आयामों से समृद्ध किया है।
पहला आयाम है जब सब जगह यह स्थापित कर दिया गया हो कि वैचारिक नाटक नहीं चलते ऐसी धारणा को तोड़ वैचारिक, प्रगतिशील नाटकों को कलात्मक सौंदर्य के साथ मंच पर प्रस्तुत कर नए दर्शक समाज का निर्माण किया है।
दूसरा आयाम है दर्शक संवाद। थियेटर ऑफ़ रेलेवंस के कलाकारों ने झूठे विज्ञापन के द्वारा लूट और मुनाफाखोरों के चक्रव्यूह को तोड़कर सीधा दर्शकों से संवाद किया। नाटक के पहले थियेटर ऑफ़ रेलेवंस के कलाकार दर्शकों से जाकर घर घर संवाद करते हैं।
नाटक के विषय पर चर्चा करते हैं। दर्शक केवल नाटक से ही नहीं पूरी रंगभूमि,रंग साधना,रंग प्रक्रिया,देश,संविधान से जुड़ते हैं।
इस संवाद प्रक्रिया में थियेटर ऑफ़ रेलेवंस के कलाकारों के साथ दर्शक जुड़ जाते हैं और स्वयं प्रेरित हो दूसरे दर्शकों को तैयार करते हैं। दर्शकों की एक एक कड़ी जुड़ते जाती है और कारवां बन जाता है।
दर्शकों का यह सहभाग ही थियेटर ऑफ़ रेलेवंस की शक्ति है। इस प्रक्रिया से दर्शकों की भूमिका बदलती है वो केवल ताली बजाने वाले तमाशबीन नहीं रह जाते अपितु रंगकर्म के ध्वजारोहक हो रंगकर्म के चैतन्य से स्वयं और समाज को आलोकित करते हैं। थियेटर ऑफ़ रेलेवंस के कलाकार की यह टीम विगत 11 वर्षों से इस मौलिक रंग साधना को साध रहे हैं।
तीसरा आयाम थियेटर ऑफ़ रेलेवंस के कलाकारों ने रंगभूमि को दिया है वो है बिना प्रोड्यूसर,स्पॉन्सर या धन्ना सेठ के नाटक करना।
यह संभव हुआ है दर्शक सहभागिता से। थियेटर ऑफ़ रेलेवंस के कलाकारों ने अपनी नाट्य प्रस्तुतियों में दर्शक सहभागिता को सुनिश्चित करते हुए लगातार हाउसफुल का रिकॉर्ड बनाया है वो भी वैचारिक नाटकों के लिए!
यही अलख रंगकर्मी अश्विनी नांदेड़कर की अगुवाई में थियेटर ऑफ़ रेलेवंस के कलाकारों ने जलगांव (महाराष्ट्र) में किया। उत्तर महाराष्ट्र के खानदेश क्षेत्र में स्थित जलगांव अपनी केले की फसल और उत्पादन के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध है।
गेहूं और बाजरा के साथ-साथ ज्वार, कपास, गन्ना, मक्का, तिल जिले की महत्वपूर्ण खाद्य फसलें हैं। कपास जिले की प्रमुख नकदी फसल है। नए विकास की चाह में जलगांव भी है।
जलगांव वासियों ने थियेटर ऑफ़ रेलेवंस के कलाकारों का हृदय से स्वागत किया और थियेटर ऑफ़ रेलेवंस के कलाकारों ने अपनी कला से दर्शकों के हृदय को उनके विचार, मस्तिष्क से जोड़ इंसानी चैतन्य से आलोकित कर दिया।
अश्विनी एक विरल रंगकर्मी है वो सबको जोड़ती हुई चलती है। आज के अवसरवादी काल में जब सब अपना अपना स्वार्थ देखते हैं तब वो अपनी जड़ों को पुन : सृजित कर रही है।
अश्विनी का नाभि नाल है जलगांव। जब से उसने थियेटर ऑफ़ रेलेवंस रंग दर्शन से खुद को आलोकित किया है तब से उसकी इच्छा थी कि वो जलगांव को अपने रंगकर्म से आलोकित करे। पर चुनौतियां थी।
पहली चुनौती थी जलगांव में दर्शक टिकट खरीदकर नाटक देखने नहीं आते। दूसरी चुनौती किसी स्पॉन्सर या धन्ना सेठ के बिना जलगांव में नाटक करना असम्भव है क्योंकि वहां के नाट्य गृह बहुत मंहगे हैं। नाटय गृह मंहगे हैं वो भी बिना लाइट और साउंड सिस्टम के। यानी सफेद हाथी।
ऊपर से वैचारिक नाटक कौन देखेगा? इन चुनौतियों को अश्विनी और उसकी टीम ने स्वीकार किया।
मात्र 14 दिनों में सारी चुनौतियों को मात देते हुए दर्शक सहभागिता से समता की हुंकार नाटक 'लोक-शास्त्र सावित्री' का हाउसफुल शो मंचित कर इतिहास रच दिया।
इस इतिहास को रचने में जलगांव के स्थानिक रंगकर्मी, कार्यकर्ता, प्रोफ़ेसर, शिक्षक, पत्रकार , राजकीय कार्यकर्ता, कर्तव्य बोधक नागरिकों का सहभाग रहा। जिससे नाटक केवल मंचित ही नहीं हुआ अपितु पूरे जलगांव में चर्चा का केंद्र रहा।
सुबह पार्क में राजनेताओं के समूह वाली चर्चा हो या घर-घर हो रहा दर्शक संवाद। नाटक ने सबको जोड़ा और केवल भाव प्रधान ना होकर भाव और विचार को जोड़ा।
बहिणाबाई की जन्मस्थली में सावित्रीबाई फुले की शिक्षा ज्योत ने बदलाव की एक अद्भुत मशाल से पूरे दर्शकों को पितृसत्ता, धर्मांधता की रूढ़िवादी बेड़ियों से उन्मुक्त होने के लिए उत्प्रेरित किया।
आज के बिकाऊ दौर में ऐसे रंगकर्मी कहां मिलते हैं जो रंगभूमि में स्वयं की आहुति दे कर प्रज्वलित करें, पर थियेटर ऑफ़ रेलेवंस रंगदर्शन के यह कलाकार ( अश्विनी नांदेड़कर, सायली पावसकर,कोमल खामकर, तुषार, प्रियंका, नृपाली, आरोही, संध्या बाविस्कार) विरले है जो अपनी नेत्री अश्विनी नांदेड़कर के नेतृत्व में रंगभूमि को समृद्ध कर रहे हैं।
आज के विषकाल में दर्शकों और कलाकारों की कलात्मक अमृत धारा बहते देख आंखों का नम हो जाना स्वाभाविक है। जलगांव के भरित (बैंगन के भरते जैसा) और भाकर (बाजरे और ज्वार की रोटी) का स्वाद जीवन भर याद रहेगा।
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