श्रद्धा और विश्वास
एक सेठ बड़ा धार्मिक भी था. एक बार उसने अपने घर पर पूजा पाठ रचाया और पूरे शहर को न्योता दिया।
पूजा पाठ के लिए बनारस से एक विद्वान शास्त्री जी को बुलाया गया और शुद्ध घी के भोजन की व्यवस्था के लिए खान पान की व्यवस्था की गई, जिसके लिए पास के गांव में रहने वाली एक महिला को वहां रखा गया था।
शास्त्री जी कथा आरंभ करते हैं, गायत्री मंत्र का जाप करते हैं और महिमा उनके शिष्यों का घर पाठ शामिल करते हैं।
लोग बाग आने लगे और अंत में सभी भोजन का आनंद लेकर घर वापस आ जाते हैं। ये रेस्टोरेंट रोज़गार है।
भोज्य प्रसाद बनाने वाली महिला बड़ी कुशल थी। वो अपना काम करके बीच बीच में कथा आदि सुन लिया करती थी।
रोज की तरह एक शास्त्री दिन जी ने गायत्री मंत्र का जाप किया और उसकी महिमा का बखान करते हुए कहा कि इस महामंत्र को पूरे मन से एकाग्रचित किया जाए तो इस भव सागर से पार जाया जा सकता है। मनुष्य जन्म मरण के झंझटों से मुक्त हो सकता है।
खार करते हैं कथा का अंतिम दिन आ गया। महिला वह उस दिन से पहले शास्त्री जी के पास गई थी, उसने प्रणाम किया और बोली कि शास्त्री जी से एक निवेदन है।''
उन्हें शास्त्री पहचानते थे। उन्होंने उसे औज़ार में खाना बनाते देखा था। वो बोले कहो क्या चाहता हो?"
वो लिल सकुचाते हुए बोली शास्त्री जी मैं एक गरीब महिला हूं और अपने गांव में रहती हूं। मेरी इच्छा है कि आप आज मेरी दुकान पर भोजन करें।''
सेठ जी भी कहाँ थे। वो थोड़ा नाराज हो गए लेकिन शास्त्री जी ने बीच में उन्हें अलग-अलग सलाह दी और अपनी सहमति दे दी और कहा कि आप तो अन्नपूर्णा हैं।
आपने तीन दिनों की कथा तक स्वादिष्ट भोजन बनाया, मैं आपके साथ के बाद चलूंगा।''
फ़ीमेल वो मशहूर हुईं और काम में शामिल हुईं।
कथा ख़त्म हुई और वो शास्त्री जी की समझ में आ गए, वायदे के अनुसार वो चल पड़े। गाँव की सीमा पर पहुँचे तो सामने नदी दिखी।
शास्त्री जी ठीक कर रुक गए। बारिश का होना मौसम का कारण नदी उफान पर था। कहीं कोई नाव भी नहीं दिख रही थी।
शास्त्री जी को रुकता देख महिला ने अपने कपड़े को ठीक से अपने शरीर पर लपेट लिया और इससे पहले कि शास्त्री जी के कुछ तत्व, शास्त्री जी का हाथ थाम कर नदी में लग गया।
और जोर से "ऊं भूर्भुवः स्वः ऊं भूर्भुवः स्वः" बजाते हुए एक हाथ से तैरते हुए कुछ ही उफंती नदी की तेज धारा को पार कर दूसरे किनारे तक पहुंच गया।
शास्त्री जी पूरे बड़े और मूर्ख में बोले- ''मूर्ख महिलाएं क्या पागलपन करतीं अगर डूब जातीं तो?''
महिला बड़ी से बोली -शास्त्री जी कैसे डूबे? आपके द्वारा बताया गया मंत्र जो साथ में था। मैं तो पिछले दस दिनों से इसी तरह नदी पार करके आता हूं।
शास्त्री जी बोले का क्या मतलब है?"
महिला बोली –“आपने ही कहा था कि इस मंत्र से भव सागर पार किया जा सकता है।” लेकिन यह कठिन शब्द मुझे याद नहीं आया। बस मुझे "ऊँ भूर्भुवः स्वः" याद आया तो मैंने "भव सागर" सोचा तो कहा कि बहुत बड़ा होगा जो इस मंत्र से पार हो गया तो क्या आधा मंत्र से छोटे सी नदी पार नहीं होगी!
और मैंने पूरी एकाग्रता से इसे जाप करते हुए नदी सलामत पार कर ली। बस फिर क्या था. मैंने रोज के 20 पैसे ऐसे ही बचाए और आपके लिए अपने घर आज की रसोई तैयार की।
शास्त्री जी का क्रोध वज्रह्लहत अब तक चुकाया जा चुका है। किंकर्तव्यविमूढ़ ने उसकी सुन कर आँखों में उपन्यासों की बात की और बोली- “माँ! मैंने अनगिनत बार इस मंत्र का जाप किया, पाठ किया और इसकी महिमा बताई पर आपके विश्वास के आगे सब बसाब रहे।''
"इस मंत्र का जाप जितनी श्रद्धा से किया गया था, उससे आगे मैं नतमस्तक हो गया था। तू धन्य है! कह कर उसने उस महिला के चरण को रोक दिया।"
उस महिला को कुछ समझ नहीं आ रहा था. वो खड़ा रह गया। शास्त्री भाव विभोर से आगे बढ़ता गया। वो पीछे मुड़कर बोली- माँ, चलो खाना नहीं करोगी!! बहुत भूख लगी है।"
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