रिश्तों का धोखा?
कुछ अपवादों को ठीक करें......
हेमन्त शेखर।
जीवन के सफर में कभी-कभी हमें उन रिश्तों से धोखा मिलता है, जहां हमारे मस्तिष्क में कभी-कभी नकारात्मक विचार और संशय का भाव नहीं आता है।
ऐसे मेरे विचार से सिर्फ दो ही तरह के प्रमुख लोग होते हैं एक फिल्मी संबंध जिसमें विवाहिता पति/विवाहिता पत्नी में से भी कोई' दूसरा बहुत करीबी दोस्त ऐसे सरीखे लोग जब अपने मकसद में शामिल हो जाते हैं, तो वहां आप खुद को बताएं बहुत ठगा हुआ सा महसूस होता है जैसे इन घटनाओं को अपने दैनिक निजी यात्रा में पूर्व से चरितार्थ करते हुए ऐसे सारे लोग रहते हैं जिनके पास हाव-भाव, सोच-विचार और उनकी दृष्टि से बहुत कुछ पता चलता है लेकिन उनका प्रति एक स्पष्टता के साथ होता है। क्योंकि हम उनकी तह में कभी नहीं जाते हैं.
.. आपके और अंतिम में वही विश्वास, मैकेनिकल व कपटी पीड़ा का विशेष कारण बनता है जो आपके लिए एक गहरी दुर्भावना रखता है, ऐसे साड़ी लोगों को किसी न किसी मोड़ पर और किसी न किसी को दिखाते हुए रहना चाहिए और उनकी यह चाल सत्यनिष्ठा का समर्थन उसे निश्चित रूप से प्रदान करना चाहिए ताकि वह भ्रम में न रहे कि उसके बारे में आप थोड़ा बहुत नहीं बल्कि अन्यत्र अधिक जानते और जानते हैं।
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