हटेगा बांड का मायाजाल?
सुप्रीम कोर्ट ने किया कमाल, हटेगा बांड का मायाजाल..
- सब काम स्पष्ट रूप से करने के लिए रसायन शास्त्र को स्पष्ट करें।
- दाल में कुछ काला या पूरी दाल को ही काली करनी थी।
- चुनावी बॉन्ड यानि गुप्त दान जो चोरी छुपे भी मिल सकता है।
- एक तरह से मनी लॉन्ड्रिंग को बढ़ावा देना।
- लोकशाही के हित का घाटा चरण अब ख़त्म।
- अगर भगतसिंह, गांधीजी, सरदार जी, अंबेडकरजी जैसे वीर पुरुष होते तो क्या कहते!?
जिस्का ज़िका 2017 18 के बजट में पहली बार आया और इंकजेट बांड योजना, 2018 के एक नया वित्तीय साधन था।
एंटरप्राइज़ बॉन्ड प्रतिज्ञा पत्र की रिलीज़ कीया यह एक बांड है, जो एक सीक्वल से जुड़ा हुआ कैरियर दस्तावेज़ होगा।
जो खरीददार या वाहक का नाम स्पष्ट रूप से नहीं दिखाता है वह और सरल भाषा में इसकी कोई जानकारी साजा न करके जो राजनीतिक धर्मशाला के नाम से उसे पंजीकृत करता है वह पैसा वहा तक पहुंच जाता है। यानि की राजनीतिक दल उसका मालिक बन जाता है।
यह तरीका इस सरकार ने बताया कि किसी भी डोनर का नाम साजा न हो और डोनर की माहिती गुप्त रख सके इसलिए बनाया गया था।
यह योजना 2 जनवरी 2018 को शुरू की गई थी और इस योजना में कोई भी व्यक्ति जो भारत का नागरिक हो अपने मनपसंद राजनीतिक दल को दान देने का प्रस्ताव रखता है। इसमें सिर्फ दान नहीं बल्कि पूरी तरह से गुप्त दान देने का प्रस्ताव दिया गया था। इतना ही नहीं बल्कि भारत के अंदर कोई भी संस्था कंपनी और निजी व्यक्ति भी खरीद सकता है।
यानी कि दान दे सकता है लेकिन बीच में बंधन होने के कारण यह सभी माहिती गुप्त रहता है। यह बॉन्ड हजारों के गुणक में बजता जा सकता है लेकिन आपको फोटोग्राफर्स वाली महिमा दे दे की वैकल्पिक पक्ष को तो कई गुणा अधिक लाभ मिल रहा है।
अगर हम पहली बार बात करें तो इनकम टैक्स के खाते से भी और कानून के खाते से हमें कोई भी पक्ष को दान करना हो तो उसकी स्पष्ट स्पष्ट कारनामा थी और यह इंटेलिजेंट इंटेलीजेंस रिपोर्ट में भी रखीनी खराब थी। साथ में सभी दलों ने यह भी कहा कि इस माहिती चुनाव आयोग को अभी भी इस नीति का कारण बताया गया है और सिर्फ आंकड़े ही आ रहे हैं।
अब हम भी यही समझ रहे हैं और समझ रहे हैं कि किसको इतनी खुजली होती होगी जो आंख बंद करके करोड़ों रुपये पानी की तरह किसी राजनीतिक दल को दे रहे हैं। तो उनका जवाब ये है कि ये पैसे लोगों को या कंपनियों को इनकम टैक्स से भी बेनिट दिलवाते हैं. राजनीतिक दस्तावेज़ों में दिए गए दान मुद्रा कर में बाद में मिल रहे हैं।
यानी की अगर हम राजनीतिक पार्टी में किसी एक भी कंपनी का एक करोड़ का दान हिस्सा है तो वह उसे कंपनी को आयकर रिटर्न से मुक्ति दिलाएगा यानी की जो पैसा देश की अर्थव्यवस्था में जमा होना चाहिए वह पक्ष की हिस्सेदारी में जमा हो रहे हैं, और सामने आए राजनीतिक दल और बड़े-बड़े सामूहिक समूह एक दूसरे को मलाईदार दावत दे रहे हैं ऐसा भारत के राजकरण में अभी साफ दिख रहा है। क्योंकि आप देखते हैं तो साफ होता है कि जो भी बड़े पद पर है, जो बड़े पैमाने पर काम करता है, जो अभी तक जिस कंपनी के लिए है या तो जो भी बड़े नियम इस देश में आम आदमी के ऊपर लागू होते हैं, वे सीधे- सीधे तालुका किसी कंपनी से दिवालिया हो गया है या कोई व्यक्तिगत लाभ भी ख़त्म हो गया है। तो उसे कंपनी या व्यक्ति ने कहीं ना कहीं पृथिवी के पीछे यह कायदे लागू करने वाले यह नियम लागू करने वाले राजनीतिक आश्रम को दान दिया है यह पिछले रिकॉर्ड में स्पष्ट रूप से होता है।
अभी धीरे-धीरे लोगों को इसकी समझ भी आ रही है कि यहां तो काम के बदले दान और दान के बदले काम की मांग हो रही है जो पूरी तरह से गैर संवैधानिक है।
इसके आगे के बारे में जाने तो अगर 15 दिनों के बाद कोई बांड लीक नहीं हुआ तो उसे बांड की राशि को प्रधानमंत्री राहत कोष में यह राशि जमा कर दी गई थी। अभी तक ऐसे 144 बॉन्ड की शिकायत नहीं की गई थी, जिनकी नकदी 20 करोड़ से भी ज्यादा थी, जो कि प्रधानमंत्री राहत कोर्स में रखे गए थे, लेकिन उनके पास 99 से 69% बॉन्ड आए थे।
उसके भी आगे फोरम सोसायटी सेक्टर और सोसायटी को मन बेकार स्टॉक के बॉन्ड की सुविधा दी गई थी, यानी की बॉन्ड की कोई भी सीमा नहीं थी। इस बंदा को राजनीतिक शास्त्र ने लोक प्रतिनिधित्व 1951 की कलम 29ए के तहत रजिस्टर कर दिया था। और इस योजना को लागू करने के साथ ही जो चुनाव आयोग को माहिती सहयोगी बनाया गया था, वह भी डोनर्स की ओर से तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया गया।
इस बॉन्ड की योजना से सरकार ने अभी तक 6500 करोड़ रुपये का नकद दान समूह लिया है जो वास्तव में गैर संवैधानिक है क्योंकि इसमें आम नागरिक के प्रवेश का हक़ का हनन होता है। और राजनीतिक पार्टी और कंपनियों के गठन में किस तरह की सेवाएं शामिल हैं, इसमें क्या-क्या शामिल है, यह जानना बहुत जरूरी था कि ऊपर रोक लगा दी गई थी।
पासपोर्ट लागू करने का समय ही आरबीआई है, संस्थाएं जिनके नाम जमीर जिंदा हैं, वह अल्पसंख्यक हैं और आम लोगों ने भी इसका विरोध किया था। लेकिन तब किसी को नहीं पकड़ा गया और इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाकर खत्म कर दिया गया। यहां तक कि इस सरकार ने यह भी कहा था कि चुनाव आयोग में कोई भी वफादारी नहीं है तो किसी को भी कोई गोपनीयता नहीं रखनी चाहिए लेकिन चुनाव आयोग ने साफ कर दिया है कि हमें भी इस योजना में कोई दिलचस्पी नहीं थी। और हमने यह भी बताया कि दाता का नाम गुप्त रखना लोकशाही के लिए गलत निर्णय है।
अभी हम साफ शब्दों में समझते हैं तो जैसे हम डिजाइन ड्राफ्ट निकालवाते हैं, जिसमें कोई भी व्यक्ति अपना खरीदार, किसी का नाम, किसी की पहचान, किसी के भी नाम, किसी के भी नाम, किसी के भी नाम, किसी के भी नाम, किसी के भी नाम से, किसी के भी नाम से, किसी के भी नाम से, किसी भी व्यक्ति का ड्राफ्ट ड्राफ्ट निकालवा सकता है। निकेल वाले का कोई भी नाम नहीं छपा था वैसे ही इस योजना में इशु करने वाले व्यक्ति का या कंपनी का नाम नहीं रहता है जिसमें ब्लैक मनी ट्रांज़ैक्शन की संभावना भी सबसे अधिक होती है जो पासपोर्ट के पास होता है उसे भी महसूस होता है और यह साबित होता है भी हो चुका है. तो यह था दान लेने के लिए और दाता की माहिती गुप्त रखने के लिए जारी की गई सरकार द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड योजना लोकशाही को तो खतरा था लेकिन आगे की सोचो तो जो भी लाखों की संख्या में शामिल हैं, वे भी राजनीतिक रूप से इच्छुक हैं संस्थान के द्वारा खतरा बना हुआ है अभी हमारे भारत में दल और डैन पॉलिटिक्स और बिजनेसमैन एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। ज्यादातर देखने में आया है कि इन दोनों में से एक दूसरे के हथियार चेन और नींद नहीं आई है। इसिलिए तो इसका उदाहरण है जो अर्थशास्त्री खर्च पक्ष द्वारा शामिल हैं जिसमें कई गुना बढ़ावा दिया गया है। अभी आगे की सोचो तो इस योजना के बारे में साफ है कि काला धन वापस आ सकता है और हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री जी से यही बात है कि काले धन को वापस लाएँगे और इतना काला धन भारत के हर एक आदमी के पास आएगा के पास 15 15 लाख रुपए यूं ही जाएंगे। अभी वह ब्लैक मनी तो वापस नहीं आया लेकिन चुनाव में जो ब्लैक मनी का उपयोग होता है और चुनाव के समय हमारी पूरी पुलिस फोर्स सेना और सरकारी कर्मचारियों और चुनाव आयोग से अनुरोध करती है कि केश को शामिल करने का दिन रात मेहनत करते रहें। किया के ना तो बास सा रहे ना तो बांसुरी बाजे और ना तो सांप भी रहे। यानि की सिर्फ राजनीतिक शास्त्र के हाथ में ये पैसा आ जाए और वो मन इतना पैसा उड़ सके।
अंत में सिर्फ इतना ही लिखा है कि अगर इस समय गांधीजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल जी, भगत सिंह जी जैसा कोई महापुरुष होता तो इस सोच वाली मन को ही लालायित कर देश से बाहर निकाल दिया जाता, क्योंकि जो वीर शहीद हो गए, उनका अपना निजी घर था जीवन भी स्पष्ट रूप से करने में नहीं थी लोकशाही में किसी भी नागरिक द्वारा दिए गए दान को स्पष्ट करने में कैसी हंसीचाहत अंत में यह सब देखकर यह डायलॉग याद आता है कि कुछ तो नैतिकता है या पूरा ही माजरा है लेकिन इलेक्टोरल बॉन्ड में समानता तो है.
- इस अंधेरी नगरी में कोई तो एक आशा का चिराग लेके आया.
- कोर्ट में जाके ही सही कोई तो लोकशाही का लुक लेके आया..
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