शिक्षा मानव को एक सुयोग्य नागरिक बनाना सिखाती -कौटिल्य
- क्या हर बात आपकी सही होती है और सामनेवाले की ग़लत..
- कहीं आप भी तो ऐसा नहीं सोचते न?
हमारे आसपास हमारे रिश्तेदारों के बीच बहुत सारे लोग हमें मिल जाते हैं जिनकी बातों में विद्वता झलकती है और बात बात में सामने वाले को ज्ञान देने की प्रवृत्ति दिखाई देती है।
ज्ञानवान होना, गुणवान होना ये ईश्वर का बहुत बड़ा उपकार माना जा सकता है, क्योंकि, ज्ञान प्राप्त करने का मौका भाग्य से मिलता है। ऐसा भी देखा जाता है कि, बहुत सारे धनवान व्यक्ति के बच्चे भी ज्ञान प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं और गरीब घर में जन्म लेनेवाले बच्चे भी ज्ञान प्राप्त कर अच्छा जीवन जीते हैं,ऐसा कैसे होता है?
ऐसा इसलिए होता है की ज्ञान प्राप्त करने की ललक बच्चों में गरीबी या अमीरी देखकर नहीं आती वरन बच्चों के विवेक से आती है
उनकी जिज्ञासा से आती है।
शिक्षाविदों ने ज्ञान की परिभाषा कई तरह से दी है
- कौटिल्य के अनुसार शिक्षा की परिभाषा "शिक्षा मानव को एक सुयोग्य नागरिक बनाना सिखाती है तथा उसका व्यक्तिगत विकास करती है।"
सुकरात के अनुसार - शिक्षा की परिभाषा, "शिक्षा का तात्पर्य संसार के उन सर्वमान्य विचारों को प्रकट करने से जो व्यक्ति विशेष के मस्तिष्क में निहित है।"
प्लेटो के अनुसार- शिक्षा की परिभाषा, "शिक्षा से मेरा तात्पर्य उस प्रशिक्षण से है जो अच्छी आदतों द्वारा बच्चों में अच्छी नैतिकता का विकास करे।
अरस्तु के अनुसार- शिक्षा की परिभाषा, "शिक्षा व्यक्ति की शक्ति का और विशेष रूप से मानसिक शक्ति का विकास करती है जिससे वह परम सत्य शिव और सुंदर के चिंतन का आनंद उठा सके।"
उपरोक्त सारी परिभाषा से साधारण शब्दों में एक बात स्पष्ट होती है कि, ज्ञान वह चक्षु हैं जो हमारी सोच और व्यवहार को सही दिशा प्रदान करती है।
सही और ग़लत के बीच भेद करना सिखाती है, बहुजन हिताय बहुजन सुखाय च
की भावना को बढ़ावा देकर जनकल्याण की भावना का विकास करती है।
मगर हमारे आसपास, हमारे रिश्तेदारों के बीच बहुत सारे लोग हमें मिल जाते हैं जिनकी बातों में उनकी विद्वता झलकती है,ऐसी विद्वता झलकती है जिसमें सिर्फ वो ही ज्ञानवान है बाकी पूरी दुनिया मुर्ख और बेवकूफ है।
ऐसे लोग जब भी हमसे बात करते हैं, हमें ये आसानी से एहसास करा देते हैं कि, उनकी समझ उनका ज्ञान हमसे अधिक है और हमें उनकी बातों को सुनकर, उनके कहे अनुसार
जीवन में सबकुछ भी करना चाहिए।
यदि हम उनके कहे अनुसार नहीं करते हैं तो उनकी आलोचना का शिकार होते हैं , उनके गुस्से का कोपभाजन हमें बनना पड़ता है।
ये प्रवृत्ति आजकल लोगों में ज्यादा बढ़ती जा रही है।
ज्ञानवान होने की यह बढ़ती सोच लोगों को एक दूसरे का सम्मान करने की भावना का ह्रास कर रही है,सारे लोग यही चाहते हैं कि, सामने वाला उनका सम्मान करें उनकी ज्ञानभरी बातों को सुनें मगर वे न तो सामने वालों को सम्मान देना चाहते हैं और न ही उनकी बातों को सुनना चाहते हैं क्यों?
क्योंकि वो ही अपने-आप को सर्वश्रेष्ठ समझते हैं, और बाक़ी को बेवकूफ
यही सोच हमारे समाज और परिवार में आजकल विवाद का कारण है,इसी सोच की वजह से लोगों के बीच दूरी पैदा
हो रही है।
ज्ञानी होने के लिए चार कौशल का होना आवश्यक होता है पहला पढ़ना,दूसरा लिखना तीसरा बोलना और चौथा सुनना ।
परंतु आजकल एक कौशल बोलना इसी पर ज्यादा जोड़ देते हैं,लिखना पढ़ना छात्र जीवन तक सीमित होता है लेकिन बोलना और सुनना आजीवन ज्ञानी होने के लिए जरूरी है
क्योंकि निरौपचारिक शिक्षा में लोग ताउम्र सीखते हैं और पुरी दुनिया में ज्ञान पसरा होता है जिसे ज्ञानी लोग समेटते है और जिनका ज्ञान आधा अधूरी होता है वो अपने ज्ञान का डंका पीटते हैं।
यदि आपको भी सिर्फ बोलने की बीमारी है, ज्ञान बांटने की बीमारी है तो लोग स्वत:
ही आपसे दूर हो जाएंगे, इसलिए बोलने के साथ साथ सुनने की भी आदत डालें और सम्मान पाने के लिए सम्मान देने की भी आदत डालें।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें