भागवत कथा में पवनदेव महाराज ने कहा भाव का भूखा हूं मैं, भाव ही बस खाता हूं

 

रवि मौर्य

 अयोध्या। भाव का भूखा हूं मैं, भाव ही बस खाता हूं। भाव से मुझको भजे और भव से बेड़ा पार हो..।' भगवान भाव के भूखे होते हैं यही कारण है कि दुर्योधन के महल में छप्पन व्यंजन को छोड़कर महात्मा विदुर के घर केले के छिलके व शाक को खाया। उक्त बातें कथा वाचक पूज्य पवनदेव महाराज ने कहीं। गोसाईंगंज दशरथ वाटिका में श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह के तीसरे दिन श्रीमद् भागवत कथा में बताया कि भगवान केवल भाव के ही भूखे होते हैं। कथा के मुख्य यजमान श्रीमती राधा देवी श्याम लाल कसौधन है।


भगवान श्री कृष्ण जब विदुर जी के घर आते हैं, तो विदुरानी घर पर थी और विदुर जी बाहर जाकर कुछ प्रभु के लिए लेने गए थे। इस बीच अपने आराध्य को सामने पाकर विदुरानी भाव विह्वल हो जाती हैं। ऐसे में घर में रखे पांच केले प्रभु के सम्मुख परोसती हैं लेकिन केला कूड़े में फेंक देती हैं और छिलके थाली में रखती हैं। भगवान बड़े प्रेम से छिलके खाते हैं और केले के स्वाद की तारीफ करते हैं। यही है भगवान का अपने भक्त के लिए प्रेम और ऐसे ही भक्तों के लिए भगवान लेते हैं अवतार। श्रीमद् भागवत कथा के दौरान मानस के प्रसंगों को रखने से कथा का रस और मीठा हो गया।


उन्होंने मैत्रेयी महाराज और विदुर जी के बीच हुई वार्ता की चर्चा करते हुए कहा कि भगवान ने यह दुनिया क्यों बनाई। यह तो भगवान की महिमा है और वही जाने, लेकिन यह दुनिया एक नाटक है और हम इसके पात्र, जिसकी कमान ईश्वर के हाथ में है। सुख-दुख मनुष्य के कर्म और भाग्य का फल है।

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