परोपकार का उपकार
कहानी
सुनीता कुमारी
पूर्णियां बिहार। एक बार की बात है श्री कृष्ण और अर्जुन नगर का भ्रमण कर रहे थे कि, अर्जुन की नज़र एक बुजुर्ग पंडित जी पर पड़ी,वह बुजुर्ग पंडित जी भीख मांग रहे थे ,यह देखकर अर्जुन को अच्छा नहीं लगा उसने उस बुजुर्ग पंडित जी को सोने के सिक्के से भरी एक थैली बुजुर्ग को देते हुए कहा इसे लिजिए और बाकी की जिंदगी आराम से बिताइए,आगे से आपको भीख मांगने की जरुरत नहीं पड़ेगी।
पास खड़े कृष्ण ने कुछ नहीं कहा ।
सिर्फ मुस्कुराते रहें
बुजुर्ग पंडित सोने के सिक्कों से भरी थैली लेकर खुशी खुशी अपनी झोपड़ी की ओर चल पड़ा कि रास्ते में उस बुजुर्ग का सामना कुछ लुटेरों से हो गया , लुटेरों ने बुजुर्ग के हाथ में सोने के सिक्कों से भरी थैली देखी तो उसे छीन लिया।
वह बुजुर्ग पंडित कुछ भी नहीं कर सका और चुपचाप मन मार कर घर चला आया, उसने सारी आपबीती अपनी पत्नी से कह सुनाई। बुजुर्ग पंडित जी की पत्नी ने दुखी होते हुए कहा- जो किस्मत में होता है वही मिलता है शायद हम लोगों का गरीब होना ही हमारी किस्मत है।
अगले दिन फिर वह बुजुर्ग पंडित भीख मांगने निकल पड़ा रास्ते में फिर उसकी मुलाकात अर्जुन और कृष्णा से हुई ।अर्जुन ने देखा कि फिर बुजुर्ग पंडित भीख मांग रहा है !अर्जुन को फिर से बुरा लगा, और उसे बुजुर्ग से पूछा कि, आपको भीख मांगने की जरूरत क्यों
पड़ी।
मैंने आपको सोने के सिक्कों से भरी थैली दी थी, उसका क्या हुआ?
बुजुर्ग ने कल की घटित हुई सारी घटनाएं अर्जुन को का सुनाई की कैसे लुटेरों ने उसकी सारी सोने के सिक्कों से भरी थैली
छीन ली।
तब अर्जुन ने सोचा कि, बुजुर्ग पंडित को कुछ ऐसा दिया जाए,जिसपर किसी की नज़र न पड़े कोई लुटेरा छीन न सके।
यह सोचकर अर्जुन ने बुजुर्ग को एक मोती दिया और कहा यह मोती जादुई मोती है इसे घर के किसी कोने ऐसे कोने में रख दीजिएगा ,जहां किसी की नज़र न पड़े।यह मोती आपको किसी भी वस्तु की कमी नहीं होने देगा।पास खड़े कृष्ण मुस्कराने लगे परन्तु पहले की भांति चुपचाप रहे।
बुजुर्ग खुशी-खुशी मोती लेकर अपने घर की ओर चल पड़ा घर पहुंच कर उसने अपने घर में नजर दुदाई गरीब होने के बाद के कारण उसके पास कोई संदूक या ऐसी कोई वस्तु नहीं थी जिसमें मोती छिपाई जा सके तब उसकी नजर एक पुराने मटके पर पड़ी जो कोने में रखी हुई थी और उसका उपयोग बुजुर्ग की पत्नी नहीं करती थी बुजुर्ग ने सोचा कि इस घड़े से बेहतर मोती रखने के लिए कोई और समान नहीं है क्योंकि घड़े का उपयोग नहीं किया जाता है और यह घड़ा एक कोने में पड़ा रहता है बुजुर्ग ने वह मोती घड़े में रख दी और घड़ा को पहले की भांति ही ढक्कन रख दिया बुजुर्ग जब मोती लेकर घर आया था उसे समय उसकी पत्नी पानी भरने नदी गई हुई थी इसलिए मोती के विषय में बुजुर्ग की पत्नी को ज्ञात नहीं था वह पानी लेने गई और पानी लेकर लौट रही थी कि, ठोकर लगने के कारण उसका मटका टूट गया।
वह घर आई और देखा कि बुजुर्ग पंडित सो रहे हैं उसने सोचा कि जैसे ही बुजुर्ग पंडित की आंख खुलेगी वह खाना खाएंगे और साथ ही उन्हें पानी की आवश्यकता होगी यह सोचकर वह उसी पुराने मटके को लेकर पानी भरने नदी चली गई जिसमें पंडित ने मोती रखा था जब पंडित की आंख खुली तो मटका नहीं देखा और वह बेचैन हो उठा पत्नी जब इस मटके में पानी लेकर वापस लौटी तो बुजुर्ग अपनी पत्नी पर चिल्लाने लगा कि हम खुद अपने हाथों से अपनी किस्मत को अंधेरे में डाल रहे हैं हमारी गरीबी कभी दूर नहीं होगी पंडित के गुस्से को देखकर उसकी पत्नी चुपचाप एक कान कोने में जा खड़ी हुई और कुछ भी नहीं कहा
अगले दिन फिर भारी मन से वह बुजुर्ग भीख मांगने निकला जहां फिर से उसकी मुलाकात अर्जुन और कृष्णा से हुई। अर्जुन बुजुर्ग पंडित से कुछ कहते, इससे पहले ही कृष्ण जी ने कहा कि तुम रहने दो आज इसे मैं दे देता हूं। और कृष्णा जी ने दो पैसे निकालकर बुजुर्ग को दे दिए।
बुजुर्ग पैसे लेकर चल पड़ा और रास्ते भर सोचता रहा कि, कृष्ण से अच्छे तो उनके दोस्त अर्जुन है ,जिसने मुझे कितनी सारी सोने की मोहरें और जादुई मोती दिया था ।
वो तो मेरी किस्मत खराब थी जो मेरे हाथों में नहीं रह पाई ,अगर होती तो आज मुझे भीख नहीं मांगनी पड़ती। अब मैं इन दो पैसों का क्या करूंगा इससे तो कुछ भी नहीं होगा?
सोचता हुआ वह आगे बढ़ता जा रहा था कि, नदी के किनारे पहुंचा।
उसने देखा कि, एक मछुआरे की जाल में एक सुनहरी मछली फांसी हुई छटपटा रही थी, यह देखकर उस बुजुर्ग पंडित को दया आ गई
उस बुजुर्ग ने मछुआरे से विनती की कि, मछली को छोड़ दे, उसे नदी में जाने दे ,पर मछुआरा नहीं माना ।
पंडित जी ने कहा कि मेरे पास दो पैसे हैं इसे लेकर तुम इस सुनहरी मछली को वापस नदी में छोड़ दो या मुझे दे दो, मैं इस नदी में छोड़ देता हूं। मछुआरे ने उस मछली को पंडित जी को दे दिया, पंडित जी ने उस मछली को अपनी कमंडल में रख लिया और नदी के किनारे पहुंच गए, मछली को जैसे ही जल में दिया कि, पंडित की नजर कमंडल में पड़ी मोती पर पड़ी जिसे देखकर वह खुशी से उछल पड़ा, अरे वाह यह तो वही मोती है जो अर्जुन ने मुझे दी थी। वह खुशी से चिल्ला उठा मिल गया, मिल गया।
जिस वक्त मछुआरा चिल्ला रहा था उसी समय वह लुटेरे जिसने पंडित जी के सोने के सिक्के छीन थे, वहां से गुजर रहा था जैसे ही उसने सुना मिल गया मिल गया
वह लुटेरे डर गए और सोने के सिक्कों से भरी थाली बुजुर्ग को देते हुए कहा इसे आप ले लीजिए और हमें बख्श दीजिए।
बुजुर्ग को सोने से भरी सिक्कों की थैली भी मिल चुकी थी और वह खुशी-खुशी अपने घर की ओर चल पड़ा।
अर्जुन ने सारी घटनाक्रम को देखा और उसने कृष्ण से पूछा भगवान यह कैसी माया है एक ही झटके में इस बुजुर्ग का खोया हुआ सामान मिल गया और इसकी किस्मत पलट गई ऐसा कैसे हुआ।
श्री कृष्ण ने कहा जब तुमने इसे सोने के सिक्कों से भारी थैली दी थी तो यह रास्ते भर अपने बारे में सोता हुआ जा रहा था कि, इन सिक्कों से वह अपनी जिंदगी ऐसे सुधरेगा वैसे सुधरेगा, यह खरीद देगा वह खरीदेगा, अगले दिन भी जब तुमने इसे मोती दी तो उसे समय भी यही सोचता हुआ घर की ओर निकला था।
परंतु जब मैं इसे दो सिक्के दिए तब यह पहली बार उसे मछली को देखकर भाव विभोर हो उठा और उसने दो पैसे परोपकार में लगा दिए और इसी परोपकार का फल इसे वापस मिला और इसका खोया हुआ मोती और सोने के सिक्कों से भरा थैला भी इसे मिल गया। जबतक यह पंडित खुद के बारे में सोचता रहा तब तक इसके जीवन में कुछ भी अच्छा नहीं था जैसे ही बुजुर्ग पंडित ने खुद से परे किसी और की भलाई के बारे में सोचा उसकी जिंदगी बदल गई। और.. वो कहते हैं ना कि, भलाई का फल अवश्य मिलता है, अच्छा करने वालों के ,साथ हमेशा अच्छा होता है। इसीलिए परोपकार से पीछे नहीं हटना चाहिए, हर हमेशा इंसान को दूसरे की मदद करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। यदि अपनी जिंदगी हमें अच्छी चाहिए तो हमें दूसरों के बारे में भी अच्छा सोचने और करना होगा।
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