वैश्विकस्तर पर गुरु नानक जयंती पर विशेष

सतगुरु नानक प्रगटिया मिटी धुंध जग चानण होआ

किशन सन्मुखदास भावना

पूरी दुनिया में गूंजा, धन गुरु नानक सारा जग तारिया - पवित्र बेला से जग पवित्र हुआ..

वैश्विक स्तर पर पूरी दुनिया में सतगुरु नानक प्रगटिया, मिट्टी धुंधला जग चान होआ, नानक नाम चढ़दी कला तेरे भाणे सरबत दा दयालु के संदेश के साथ पूरी दुनिया में स्थित सभी गुरुद्वारे सिख धर्म के पहले गुरु और संस्थापक श्री गुरुनानक देव जी महाराज का 554 वे प्रकाशोत्सव श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। 

इस पवित्र मस्जिद पर सिख, सिंधी समुदाय के अलावा अन्य समुदाय के लोग भी माथा टेकने प्रभु के प्रकाश पर्व को लेकर कई दिनों से चल रहे प्रभातफेरी के बाद बोले जो सो निहाल सत श्रीअकाल के जयकारे वाले हुए गुरु नानक जी महाराज के प्रकाश पर्व हर नगर में कीर्तन की तरह प्रभातफेरी निकाली गई। 

नगर कीर्तन में सिख और सिंधी समाज की महिलाएं और पुरुष शामिल होकर गुरुवाणी का गायन करते हुए नगर भ्रमण पर जा रहे हैं। सिखों के पहले पातशाह श्री गुरु नानक देव जी महाराज का नाम लेने से मनो आत्मिक शांति का पता चलता है। श्री गुरु नानक देव जी सिखों के ही नहीं, सभी मानव जाति के लिए आदर्श हैं। उनकी शिक्षाएँ, उनके विचार और उनके कर्म आज हर मनुष्य को प्रकाश के मार्ग पर ले जाते हैं। 

गुरु साहब ने अपना संपूर्ण जीवन लोकमूल्य के लिए समर्पित कर दिया। दिनांक 27 नवंबर 2023 को हम वैश्विक स्तर पर बाबा गुरु नानक देवजी का प्रकाशोत्सव मना रहे हैं इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस लेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, पूरी दुनिया में गूंजा धन गुरु नानक सारा जग तारिया - पवित्र बेला से जग पवित्र हुआ। 

बाबा गुरु नानक देव के पावन जन्म की बात करें तो, बाबाजी का जन्म एक खत्रीकुल में रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गाँव (अभी पाकिस्तान में पंजाब झील में जिसका नाम आगे ननकाना पड़ा) में कार्तिकी पूर्णिमा को हुआ था। जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मनाई जाती है, शैतान की मूर्ति तिथि कार्तिक पूर्णिमा ही है, जो अक्टूबर-नवंबर में दिवाली के 15 दिन बाद मनाई जाती है। उनके पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता देवी था, जबकि बहन बेबे नानकी थीं।

गुरु साहिब बचपन से ही प्रखर बुद्धि के स्वामी थे। लड़कपन से वे विश्व मोहमाया के प्रति काफी उदासीन रहते थे। पढ़ने-लिखने में बिल्कुल भी रुचि नहीं थी, लेकिन उनका सारा समय का आध्यात्मिक व्याख्यान और सत्संग में उद्बोधन हुआ था। उनके बाल्यकाल में कई ऐसी चमत्कारी घटनाएँ हुईं, जिसके बाद लोग तीर्थयात्रियों से मिले। बाबा गुरु नानक देव के बाल्यपान से युवापन की प्राप्ति हो तो, बाबाजी के मन को पढ़ने में कुछ नहीं लगता था, हालाँकि वे तेज बुद्धि के थे। 

उन्होंने 7-8 साल की उम्र में ही स्कूल छोड़ दिया था। उनका ध्यान आरंभ से ही अध्यात्म की ओर था,तत्पश्चात् सारा समय वे आध्यात्मिक प्रवचन और सत्संग में प्रवचन करने लगे। उनका विवाह आश्रम वर्ष की आयु में गुरदासपुर जिले में लाखौकी नामक स्थान की कन्या सुलक्खनी से हुआ था। 32 वर्ष के तीसरे वर्ष में एक प्रथम पुत्र श्रीचंद का जन्म हुआ और चार चित्रा दूसरे पुत्र लक्ष्मीदास का जन्म हुआ। 

नानक का मन गृहस्थी में नहीं लगा इसलिए उन्होंने 1507 में अपने दोनों पुत्रों और पत्नी को अपने श्वासुर के घर छोड़ दिया और अपने चार साथियों रामदास, मरदाना, लहना, बाला के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। 

बाबा गुरु नानक देव के दर्शन करते हैं तो, नानक देव जी के दर्शन करते हैं कि वे सर्वेश्वरवादी हैं। सब कुछ है।

नानक जी मूर्ति पूजा के विरोधी थे, इसके अलावा उन्होंने हिंदू धर्म के अनुयायियों का हमेशा विरोध किया था। उन्होंने ईश्वर की आराधना का एक मार्ग बताया था, यही कारण है कि उनके विचार हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के लोगों को पसंद आते हैं। संत साहित्य में नानक उन संतों की श्रेणी में हैं। 

हिंदी साहित्य में गुरुनानक भक्तिकाल के अतंर्गत आते हैं और भक्तिकाल में निर्गुण धारा की ज्ञानाश्रयी शाखा से संबंध होते हैं। हम सतगुरु नानक प्रगट्या मिट्टी धुंध की तो, सतगुरु नानक प्रगट्या, मिटी धुंध जग चानन होया, कलतारन गुरु नानक आया, ज्यों कर सूरज निकलया तारे अंधेर पोलावा। गुरु नानक देव के प्रकाश पर्व पर यह शब्द गुरुद्वारों में गूंजायमान हो रहे हैं। 

हिंदी साहित्य में गुरुनानक भक्तिकाल के अतंर्गत आते हैं और भक्तिकाल में निर्गुण धारा की ज्ञानाश्रयी शाखा से संबंध होते हैं। हम सतगुरु नानक प्रगट्या मिट्टी धुंध की तो, सतगुरु नानक प्रगट्या, मिटी धुंध जग चानन होया, कलतारन गुरु नानक आया, ज्यों कर सूरज निकलया तारे अंधेर पोलावा। गुरु नानक देव के प्रकाश पर्व पर यह शब्द गुरुद्वारों में गूंजायमान हो रहे हैं। 

कथा वाचक अपनी वाणी व रागी ढेड़ी जत्थे अपने कीर्तन से गुरु की महिमा का जो बखान कर रहे हैं, उसे गुरु घर में समाहित संगत आस्था के समंदर में गोटे लगा रही है। पूरे विश्व के गुरुद्वारों में जहां हजारों की शांति में संगत माथा टेकने को रीछ मिलती है। 

संगत ने जोड़ा घर, लंगर व पोएचर की सेवा कर रही है। पवित्र सरोवर के पानी से खुद को पवित्र कर रही है। श्री गुरुनानक देव जी का जीवन सर्वदा समाज के उद्घोषों के बारे में बताएं। उस समय समाज अंधविश्वासों और कर्मकांडों के मकड़जाल में धमाका हुआ था। ऐसे जटिल दौर में गुरुनानक देवजी ने समाज में आध्यात्मिक निजी जगने का जो काम किया, उसे भी कभी भुलाया नहीं जा सका। श्री गुरुनानक देव जी ने अपने उपदेशों को निरंकार पर जोर दिया। 

उन्होंने कहा कि धार्मिक ग्रंथ का ज्ञान ऐसा नया है, जो सनातन के भवसागर से निकलता है। ये ज्ञान हमें निरंकार के देश की तरफ लेकर जाता है, जिसके साथ संगति आज भी नतमस्तक होती है। सिखामत का काम ही एक से होता है। 

सिखों के धर्म ग्रंथ में एक ही व्याख्या है। एक को निरंकार, पारब्रह्म आदि द्वीप से जाना जाता है। निरंकार का स्वरूप श्रीगुरुग्रंथ साहिब की शुरुआत में बताया गया है जिसे आम भाषा में गुरु साहिब के उपदेशों का मूल मंत्र भी कहा जाता है। यह ग्रंथ पंजाबी भाषा और गुरुमुखी लिपि में है। मुख्यत: इसमें कबीर, रैदास और मलूकदास जैसे भक्त भक्तों की वाणियाँ शामिल हैं। 

हम बाबा जी की चार उदासियों की तो, गुरु साहिब चारों दिशाओं में घूम-घूम कर लोगों को उपदेश देने लगे। 1521 ईस्वी तक उन्होंने चार चक्रों की यात्रा की, जिसमें भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के प्रमुख स्थान शामिल थे। इन किताबों को पंजाबी में उदासियों के नाम से जाना जाता है। गुरु नानक देव जी की मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं था। नानक जी के अनुसार ईश्वर कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे अंदर ही है। उन्होंने हमेशा ही रूढ़ियों और कुरितियों का विरोध किया। उनके विचारों से असहमत शासक इब्राहिम लोदी ने उन्हें कैद तक कर लिया था।

पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोदी हार गया और राज्य बाबर के हाथों में आ गया, तो उन्हें कैद से मुक्ति मिली। हम बाबा जी के जीवन की आखिरी सांस तक लोग भलाई के काम करने की करेंतो,जीवन के अंतिम दिनों में गुरु साहिब के लोकहित में किए गए कामों की प्रसिद्धि हवा में घुलती फूलों की महक की तरह हर तरफ फैल चुकी थी। अपने परिवार के साथ मिलकर वे मानवता की सेवा में पूरा समय व्यतीत करने लगे। उन्होंने करतारपुर नाम से एक नगर बसाया, जो अब पाकिस्तान के नारोवाल जिले में स्थित है। अपनी चार उदासियों के बाद गुरुनानक देव जी 1522 में करतारपुर साहिब में बस गए। उनके माता-पिता का परलोक गमन भी इसी जगह पर हुआथा।करतारपुर साहिब में ही गुरुनानक साहिब ने सिख धर्म की स्थापना की थी। 

उन्होंने रावी नदी के किनारे सिखों के लिए एक नगर बसाया और यहां खेती कर नाम जपो, किरत करो और वंड छको का उपदेश दिया। करतारपुर साहिब में उन्होंने अपने जीवन के आखिरी 17 साल बिताए। यहीं पर 22 सितंबर 1539 ईस्वी को उन्होंने समाधि ले ली। ज्योति ज्योत समाने से पहले गुरु साहिब ने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया जो बाद में गुरु अंगद देव जी के नाम से जाने गए। 

चार मित्रों की तो, सिख धर्म के प्रथम गुरु गुरुनानक देवी जी के चार शिष्य थे। यह चारों ही हमेशा बाबाजी के साथ रहा करते थे। बाबाजी ने अपनी लगभग सभी उदासियां अपने इन चार साथियों के साथ पूरी की थी। इन चारों के नाम हैं- मरदाना, लहना, बाला और रामदास के साथ पुरी की थी।कहते हैं कि 1499 में उनकी सुल्तानपुर में मुस्लिम कवि मरदाना के साथ मित्रता हो गई। 

मरदाना तलवंड से आकर यहीं गुरु नानक का सेवक बन गया था और अन्त तक उनके साथ रहा। गुरु नानक देव अपने पद गाते थे और मरदाना रवाब बजाता था। मरदाना ने गुरुजी की चार प्रमुख उदासियों में उनके साथ यात्रा की। मरदाना ने गुरुजी के साथ 28 साल में लगभग दो उपमहाद्वीपों की यात्रा की। इस दौरान उन्होंने तकरीबन 60 से ज्यादा प्रमुख शहरों का भ्रमण किया। 

जब गुरुजी मक्का की यात्रा पर थे तब मरदाना उनके साथ थे।गुरुजी के दो और शिष्य थे जिसका नाम बाला और रामदास था। मरदाना, बाला और रामदास तीनों ने ही गुरुजी की उदासियों में उनका साथ दिया और वे हरदम उनकी सेवा में लगे रहे।लहना नाम के भी गुरुजी के एक प्रसिद्ध शिष्य थे। कहते हैं कि लहना जी माता रानी ज्वालादेवी के परमभक्त थे। 

एक दिन उन्होंने गुरुनानक के एक अनुयायी भाई जोधा सिंह खडूर निवासी से उन्होंने गुरुनानक के शबद सुने और वे उससे बहुत ही प्रभावित हुए और वे बाबाजी से मिलने जा पहुंचे। भाई मरदाना वो मुस्लिम घर में पैदा हुए थे  बाबा नानक जहां भी कहीं बाहर यात्राओं पर गए, भाई मरदाना हमेशा उनके साथ रहे। 

गुरबानी के संगीत में उनकी गहरी छाप है। कहा जाता है कि जब तक भारत का बंटवारा नहीं हुआ था, तब तक पाकिस्तान के ननकाना साहिब और करतारपुर के गुरु ग्रंथ दरबार साहिब गुरुद्वारे में गुरबानी पर संगीत की थाप उनके वंशज ही करते थे। नानक और मरदाना एक ही गांव में पैदा हुए। ये तलवंडी में हुआ, जो अब पाकिस्तान के ननकाना साहिब में है। तब गांवों में आमतौर पर हिंदू-मुसलमानों के बीच कोई खाई नहीं थी। सब मिलजुलकर रहते थे। करीब 300-400 साल पहले हमारी सामाजिक संरचना यूं भी खासी अलग और भाईचारे वाली होती थी।नानक और मरदाना दोनों बचपन के दोस्त थे। हालांकि मरदाना बड़े थे। ऐसे भी बचपन की दोस्ती ना तो धर्म की दीवारों को मानती है और ना ही ऊंच-नीच को  नानक बड़े और अमीर खानदान से वास्ता रखते थे तो मरदाना उस मुस्लिम मरासी परिवार से ताल्लुक रखते थे, जो गरीब थे और जिनका ताल्लुक संगीत के साजों से था।राम दी चिड़िया, राम दा खेत चुग लो चिड़ियो, भर-भर पेट।। यह लिखी गयी दो लाइन्स गुरुनानक जी की जिंदगी भर की फिलोसोफी को बयां कर देतीं हैं। 

अतः अगर हम पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि वैश्विकस्तर पर गुरु नानक जयंती महोत्सव 27 नवंबर 2023 पर विशेष। सतगुरु नानक प्रगटिया मिटी धुंध जग चानण होआ।पूरी दुनियां में गूंजा, धन गुरु नानक सारा जग तारिया - पावन बेला से जग पवित्र हुआ।

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