सभी धर्मों का सम्मान करना सभी की आस्था का सम्मान करते हुए भाई चारा स्थापित करना चाहिए भारतीय संविधान भी यही कहता है -स्वामी प्रसाद मौर्य
- मैंने बयान दिया था की भारतीय जनता पार्टी हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई को तोड़ने का काम करती है।
- सभी धर्मों का सम्मान करना सभी की आस्था का सम्मान करते हुए भाई चारा स्थापित करना चाहिए भारतीय संविधान भी यही कहता है।
भारत में जिस तरह से धार्मिक स्थल की जो स्थिति थी उसको यह परंपरा उनके लिए महंगी पड़ेगी अगर यह हर मस्जिद में मंदिर खोजेंगे तो लोग मंदिर में बौद्ध मंदिर भी खोजना शुरू करेंगे क्योंकि ऐतिहासिक साक्ष्य इसके पुख्ता प्रमाण हैं
क्योंकि जितने भी मंदिर बनाए गए हैं सब पहले बौद्ध मंदिर थे उसी क्रम में हमने बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम की बात की थी..
मैंने कहा था कि सातवी सदी के अंदर बद्रीनाथ बौद्ध मठ था उसके बाद आदि शंकराचार्य ने उसको परिवर्तित करा कर बद्रीनाथ हिंदू तीर्थ स्थल के रूप में स्थापित किया था..
इसपर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने भी तीखी टिप्पणी की था और कहा था की मौर्य जी ने हमारी भावनाओं को ठेस पहुंचाई है
मैं मुख्यमंत्री जी से यही कहना चाहूंगा कि आपको सभी की आस्था का सम्मान करना चाहिए
राहुल संक्रतायन ने अपनी किताब हिमालय परिचय में लिखा है
इस बात का समर्थन वर्तमान रावल और भूतपूर्व रामन श्रीवासुदेवजी ने भी किया। इस प्रकार इसमें संदेह नहीं रह गया, कि मूर्ति बुद्धकी है। बदरीनाथकी मूर्ति धनं रहनेपर बहुत सुंदर रही होगी, इसमें संदेह नहीं, उसके छली, कमर आदि सारे अंग बिल्कुल ठीक अनुपात में है। वर्तमान रावत चीवरके छोरको यज्ञोपवीत मानते हैं। ३० व नजदीक देखनेवाले भूतपूर्व गवन हमे बुद्धकी मूर्ति मानते हैं। उन्होंने भारताव आदिम की ऐसी मुनियों देखी है। सिरके पिछने मुक्षित भागमें बुद्ध की तरह ही वाल है, यह भी वह बतला रहे थे। इस प्रकार मनि अहि होम संदेह नहीं। बदरीनाथकी दोनों बगलों और भी कितनी ही मूर्तियाँ है. जिनमें नारदकी धातु मूर्ति भी बुद्धकी मूर्तिमी मालूम होती है।
वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने कहा है की स्वामी प्रसाद मौर्य सही है बद्री नाथ पहले बौद्ध मठ था..
राजनीतिक लाभ उठाने के लिये इन धार्मिक स्थलों के विवादों को तूल दिया जाता रहा है। इन विवादों के पिटारे पर ढक्कन लगाने के लिये नरसिम्हाराव सरकार के कार्यकाल में उपासना स्थल अधिनियम 1991 आया था, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि अयोध्या विवाद के अलावा देश के सभी धार्मिक स्थलों की जो स्थिति 15 अगस्त 1947 के दिन थी वही भविष्य में भी बरकरार रहेगी। यानी कि आयोध्या के अलावा किसी भी धार्मिक स्थल की स्थिति में बदलाव नहीं हो सकेगा।
मस्जिद में ऐतिहासिक अक्षय सक्ष्या खोजने वालो को तो साक्ष्य नही मिलेंगे लेकिन यही मंदिर में लोगो ने बौद्ध साक्ष्य खोजना शुरू कर दिए तो बहुत साक्ष्य मिलेंगे, क्युकी कई ब्रह्मांड इतिहासकार ने भी इस बात को माना है की कई बौद्ध मठों को तोड़कर मंदिर बनाया गया है..
मायावती जी मेरी नेता रही है इसलिए मैं उनके हर सवाल पर टिप्पणी नही करना चाहता..
मैं किसी बौद्ध या दलितों को खुश करने के लिए बयान नही दिया है।
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