बहुजन संस्कृति को पुनर्स्थापित करने के लिये दर्जनों नृत्य, नाटक की प्रस्तुतिया की



दुःखो से मुक्ति और निर्वाण की प्राप्ति बुद्धिज्म से ही सम्भव

प्रज्ञा शील समाधि ही बुद्धत्व की प्राप्ति के माध्यम है

भारत को प्रबुद्ध भारत बनाने का लिया संकल्प



प्रयागराज दुःखो से मुक्ति और निर्वाण प्राप्ति का मार्ग बताने वाला इस संसार मे कोई मार्गदाता है तो है पूरी दुनिया को मानवता का संदेश देने वाले विश्वगुरु तथागत गौतम बुद्ध और उनका धम्म है। तथागत गौतम बुद्ध का धम्म उनके द्वारा दिये गए उपदेश ही केन्द्रीय हैं जो नैतिक नियमों के आधार पर आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग दिखाते हैं। 

तथागत बुद्ध ने दुःख के कारणों की खोज कर उनका निदान करते हुए निर्वाण के लिए कुछ नियमों को बहुत महत्वपूर्ण माना, जिनमें चार आर्य सत्य व द्वादश निदान चक्र दुःख व भव चक्र से संबंध रखते हैं जबकि अष्टांगिक मार्ग व दस शील का सिद्धांत उन दुःखो व चक्र से मुक्ति का मार्ग बताते हैं उक्त बातें आषाढ़ पूर्णिमा पर नैनी के कनैला गांव में आयोजित बौद्ध महोत्सव की चारिका करते हुये पूज्य भन्ते डा. करुणाशील राहुल ने कही। 

उन्होंने बताया कि बौद्ध धम्म में अष्टांगिक मार्ग के साथ दस शील का सिद्धांत दैनिक आचरण के नियम है जिनका पालन बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए अनिवार्य माना गया है। पहला प्रज्ञा पारमिता नीर-क्षीर विवेक की बुद्धि, सत्य का ज्ञान. जैसी वस्तु है उसे उसी प्रकार की देखना प्रज्ञा होती है।आधुनिक भाषा में वैज्ञानिक दृष्टि व तर्क पर आधारित ज्ञान होता है। बौद्ध धर्म में प्रज्ञा, शील, समाधि ही बुद्धत्व की प्राप्ति के महत्वपूर्ण माध्यम होते हैं। 

डा. राहुल ने बौद्ध धर्म के अनुसार प्रज्ञा क्या हैं? पर बताया कि सभी घटनाओं को अनित्य, अनात्म और असमाधानकारक हैं ऐसे देखना सर्वश्रेष्ट हैं प्रज्ञा हैं. यह समझ पूर्णत: मुक्तिदाई हैं और निर्वाण की सुरक्षितता तथा सुख की तरफ ले जाती हैं। सम्यक दृष्टि पर विचार रखते हुये समझाया कि सम्यक दृष्टि का अर्थ है कि हम जीवन के दुःख और सुख का सही अवलोकन करें। चार आर्य सत्यों को समझें। 

बुद्ध धम्म के तीन तत्वों में समाधि मध्य में है। कुशल चित्त की एकाग्रता ही समाधि है। समाधान के अर्थ में समाधि है। एक आलम्बन में चित्त- चैतसिकौं का बराबर और भली-भांति प्रतिष्ठित होना समाधि है। 

प्रबुद्ध फाउंडेशन के तीन दर्जन से अधिक प्रबुद्ध बाल रंग टोली के बच्चों ने बहुजन संस्कृति को पुनर्स्थापित करने के लिये दर्जनों नृत्य, नाटक की प्रस्तुतिया की। आयोजक मण्डल जन चेतना समिति के पदाधिकारियों ने दूर दूर से आये बुद्धिजीवियों को पंचशील का पटका पहनकर स्वगतम किया तथा बौद्ध महोत्सव में उपस्थित हजारों लोगों को बाबासाहेब डा. अम्बेडकर द्वारा लीखित पुस्तक भगवान बुद्ध और उनका धम्म का वितरण किया। सभी ने भारत को प्रबुद्ध भारत बनाने का संकल्प लिया।

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