सामाजिक, राजनैतिक परिवर्तन के हिमायतकारी थे मुंशी प्रेमचंद -सीमा मोदी
लखनऊ। हिंदी भाषा के कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 143वीं जयंती की पूर्व संध्या पर सृजन शक्ति वेलफेयर सोसाइटी द्वारा कबीर शांति मिशन, गोमतीनगर के परिसर में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया।
गोष्ठी का अगले भाग में " मुंशी प्रेमचंद का कथा साहित्य एवं हिंदी रंगमंच" विषय पर एक परिचर्चा हुई जिसमें प्रोफेसर नलिन रंजन सिंह, गोपाल सिन्हा, सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ, राकेश व श्रीमती वेदा राकेश आदि ने भाग लिया।
के के अग्रवाल ने परिचर्चा प्रारंभ करते हुये कहा कि मुंशी प्रेमचंद ने अपने तीस वर्ष के लेखन काल में 303 कहानियाँ एवं15 उपन्यास लिखे। इनमे उन्होंने समाज के हर वर्ग, हर विषय, हर समस्या, हर परिस्थिति, हर रस एवं भाव की कहानियाँ लिखी हैं। उनकी कहानियों के चरित्र एवं भाषा मंचीय संभावनाओं से भरपूर हैं। इसलिए मुंशी जी की कहानियाँ हिन्दी रंगमंच का महत्वपूर्ण भाग हैं।
वरिष्ठ निर्देशक सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ ने कहा मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ के सम्पूर्ण भारत में काफ़ी नाट्य रुपांतरण हुये हैं। विशेषकर ईदगाह, पंच परमेश्वर, कफ़न , पूस की रात आदि एवं विष्णु प्रभाकर ने उपन्यास गौदान का नाट्य रूपांतरण किया है।
मैने भी उनकी कहानी सद्गति पर आधारित एक मंच प्रस्तुति का निर्देशन किया है, जिसे राकेश ने लिखा है। उनकी कहानियों में नाटकीय तत्वों का भरपूर समावेश है और आज के समय में भी ये कहानियाँ प्रासंगिक हैं।
नलिन रंजन सिंह ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद सामाजिक - राजनीतिक परिवर्तन के हिमायती रचनाकार थे। उनके लिए स्वराज्य के साथ सुराज भी महत्वपूर्ण था।इसलिए उनकी कहानियाँ मंच के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम बनती हैं।
गोपाल सिन्हा का मत था कि हिन्दी साहित्य में प्रेमचंद का स्थान प्रथम पंक्ति के कथाकारों में है। समाज की विसंगतियों पर आधारित इनकी कहानियां जिस सरलता, सहजता और सुन्दर व प्रभावी चित्रण के साथ कथानक को प्रस्तुत करती हैं उसके फलस्वरूप प्रेमचंद की अधिकतर लोकप्रिय कहानियां मंच पर नाटक के रूप में मंचित हुई हैं। इसलिए हम कह सकते हैं प्रेमचंद के साहित्य का हिंदी रंगमंच के लिए महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
राकेश का मत था कि प्रेमचंद ने अपने लेखन में जात-पात, छुआछूत, स्त्री-शोषण जैसी तमाम सामाजिक विसंगतियों, विद्रूपों और अंतर्विरोधों की गहरी पड़ताल करते हुए साहित्य में आम जन के सुख-दुःख,पीड़ा और उनके शोषण को केन्द्रीयता प्रदान की। उनकी रचनाओं में नाटकीय तत्व बेहद जीवंतता से उपस्थित हैं।
वेदा राकेश ने कहा कि प्रेमचंद ने अपने लेखन में जात- पात,छुआछूत, स्त्री-शोषण जैसी तमाम सामाजिक विसंगतियों, विद्रूपों और अंतर्विरोधों की गहरी पड़ताल करते हुए साहित्य में आम जन के सुख-दुःख,पीड़ा और उनके शोषण को केन्द्रीयता प्रदान की। मेरी जानकारी के मुताबिक उन्होंने पांच नाटक लिखे कर्बला,तजुर्बा ,प्रेम की वेदी,रूहानी शादी और संग्राम लेकिन वे खेले कम गए हैं जबकि उनकी सैकड़ों कहानियों और उपन्यासों पर हर छोटे बड़े रंगकर्मी ने नाटक खेलें हैं। उनकी रचनाओं में नाटकीय तत्व बेहद जीवंतता से उपस्थित हैं।
कार्यक्रम में राधेश्याम सोनी जी , के के अस्थाना , यू वी पांडेय, प्रदीप श्रीवास्तव , माधव सक्सेना, सुनील गुप्ता, राधेश्याम सोनी, विजय बनर्जी, शुभंगिनी बनर्जी, कल्याणी गुप्ता, मुस्कान, नितिन , अनुराग, सौम्या अदित्री, बिमला, रेणु, सन्नी साहनी, विनायक, नीरज, स्नेहा, व अन्य सदस्य मौज़ूद रहे।
कार्यक्रम के अंत में सृजन शक्ति वेल्फेयर सोसाइटी के अध्यक्ष बी एन ओझा ने सभी मेहमानों एवं कबीर शांति मिशन को संस्था की ओर से धन्यवाद ज्ञापित किया।
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