अधिकारी हो तो दीपक यादव जैसा:- मनोज मौर्य


  • केंद्रीय कार्यशाला आर-आर को दीपक यादव जैसा अधिकारी की जरूरत?..
  • एक ऐसा अधिकारी जिसने नगर निगम जैसी बड़ी संस्था को अपना परिवार माना..

लखनऊ. नगर निगम केंद्रीय कार्यशाला आरआर विभाग में आउटसोर्सिंग कर्मचारियों को समय से वेतन ना मिल पाना अधिशासी अभियंता दीपक यादव की याद दिलाता बात उस समय की है जब दीपक यादव चीफ इंजीनियर नाम से लोग डरते थे कि कहीं नाराज हो गए तुम मेरी शामत आ जाएगी.

जब तक नगर निगम के केंद्रीय कार्यशाला आर-आर विभाग में तैनात थे तब तक फोरमैन सुपरवाइजर या अन्य कर्मचारी हो सब अपना अपना काम बड़ी ईमानदारी से करते थे परंतु उनके जाने के बाद ना कोई फोरमैन जैसी जिम्मेदारी वा सुपरवाइजर जैसा  दायित्व को निभा सके!

आज जो केंद्रीय कार्यशाला आरआर विभाग में पूरी की पूरी मिलिट्री छावनी बन गई हो उस विभाग का दर्द उस कर्मचारी को जरूर होगा होगा जिसने अपनी पूरी जवानी नगर निगम केंद्रीय कार्यशाला आरआर विभाग  जैसी संस्था को बचाने के लिए लगा दी! आउटसोर्सिंग कर्मचारी वाह नियमित कर्मचारी मैं जो प्यार और सम्मान उस समय था आज देखने को नहीं मिलता या भी एक दुख की बात है! 

दीपक यादव के राज में कभी भी आउटसोर्सिंग कर्मचारियों को वेतन जैसी समस्याओं की परेशानी नहीं होती थी दीपक यादव के ट्रांसफर होने के बाद जो भी चीफ इंजीनियर आया है उसने सिर्फ और सिर्फ अपनी जेब को भरा है.

नगर निगम जैसी संस्था को बेचने का कार्य किया या बड़ा दुख की बात है कि एक ऐसा अधिकारी जिसने लखनऊ जैसे शहर की सफाई व्यवस्था को सुचारू रूप से सफल बनाने का कार किया कुछ लोगों ने वर्तमान सरकार के कानों में जातिवाद का ऐसा विश्व घोला कि आज लखनऊ जैसे शहरों की सफाई व्यवस्था से लेकर आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के नाम से भ्रष्टाचार जैसी चीजें सामने आने लगी हैं.

कभी अपने बचाव के लिए उच्च अधिकारी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को जिनको अधिकारियों ने भ्रष्टाचार करने के लिए अपना सहारा बनाया ऐसे लोगों ने आउटसोर्सिंग कर्मचारियों को तेल चोरी लोहा चोरी तथा अन्य उपकरणों में फंसा कर एफ आई आर करने जैसी चीजों को भी सही ठहराते हुए कार्रवाई करवा सकते हैं.

कुछ अधिकारी आज भी नगर निगम जैसी बड़ी संस्थाओं को बेचने का कार बड़ी ईमानदारी से करने में जुटे हैं या व अधिकारी हैं जो 20 सालों से एक ही जगह पर विराजमान है इनके लिए सरकारें कोई भी हो इनका कुछ भी नहीं हो पाता चाहे वह समाचार पत्रों पर इनके खिलाफ लिखा पढ़ी करें या सरकार तक उनकी भ्रष्टाचार की पोलो को खोलने की कोशिश करें पर यह लोग इतने शक्तिशाली हैं कि इनका आज तक सिर्फ कागजों पर स्थानांतरण हुआ है परंतु आज तक यह लोग लखनऊ जैसे शहरों को शिवाय अंधकार में ढकेलने के कुछ भी नहीं किया बड़ी विडंबना है की दीपक यादव चीफ इंजीनियर सिर्फ जातिवाद की बलि के कारण नगर निगम केंद्रीय कार्यशाला में आज तक वापस नहीं आ सके इसमें आउटसोर्सिंग कर्मचारियों में हो रहे शोषण व लखनऊ जैसे सफाई व्यवस्था ना हो पाना बड़े दुख की बात है इसको सरकार गंभीरता से लें तो हमारे आउटसोर्सिंग कर्मचारियों का व लखनऊ जैसे शहरों की सफाई व्यवस्था सुचारू रूप से हो सके.

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