बिन पेंदी का लोटा

बिन पेंदी का लोटा कभी वफ़ादार नहीं हो सकता 

वर्तमान डिजिटल युग में राजनीतिक क्षेत्र में अवसरवादी, अपनी विचारधारा को तिलांजलि देकर अस्थिर चित्त व्यक्तियों की संख्या बढ़ना चिंतनीय 

किशन भावनानी

वैश्विक स्तरपर भारतीय कहावतें और बड़े बुजुर्गों की बातें सौ फ़ीसदी सटीक साबित होती है, जिसे हम कई अवसरों पर महसूस कर चुके हैं। यही कारण है कि दुनिया में इसकी मिसालें दी जाती है। विश्वभर में फैले मूल भारतीय भी इन कहावतों से अलग नहीं हुए हैं। 

मैं कुछ मूल भारतीयों से मिला हूं तो उन्हें अनेक कहावतें याद करते हुए देखा गया है। वैसे तो कहावतें सैकड़ों की संख्या में है परंतु वर्तमान कुछ वर्षों से जिस तरह हम राजनीतिक क्षेत्र कार्यकर्ता टर्नओवर को देख रहे हैं कि अनेक पार्टियों से अलग होकर अनेक व्यक्ति या समूह के रूप में किसी एक खास पार्टी मेंकार्यकर्ता आ रहे हैं या उस पार्टी से किसी दूसरी पार्टियों में कुछ कार्यकर्ता जा रहे हैं और फिर उनके पार्टी नेता एक ही बात कहते हैं कि यह तो बिन पेंदी का लोटा है!अवसरवादी है! स्थाई विचारधारा नहीं है, यह कहकर उसके ऊपर दोष मढ़कर मोकले हो जाते हैं। चूंकि यह अक्सर चुनाव के करीब ही होता है और वर्तमान 2023 और 2024 के चुनाव अभी सर पर है, रणनीतिक रोडमैप बनाना शुरू हो गया है। नेता अपना भविष्य व सीट सुरक्षित करने के जुगाड़ में भिड़ गए हैं, इसलिए आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, वर्तमान डिजिटल युग में भी राजनीतिक क्षेत्र में अवसरवादी, अपनी विचारधारा को तिलांजलि देकर अस्थाई चित्त व्यक्तियों की संख्या बढ़ना चिंतनीय है।  बिन पेंदे के लोटे कहावत के मतलब की करें तो किसी ने खूब ही लिखा है, यह एक बहुत पुराना मुहावरा है,जिसका अर्थ है वह व्यक्ति जिसकी अपनी कोई समझ या राय न हो। सामने वाला जो कह रहा हो,या जिधर बहुमत हो उसी जैसा बोलने लगना या उसी को अपनी राय भी बताना। ऐसा लोगों की समाज में कोई इज्जत नहीं होती। सभी इनका मज़ाक बनाते हैं। वह व्यक्ति जिसका अपना कोई सिद्धान्त न हो, पता नहीं कब किसके साथ हो जाय।

अवसरवादी, अस्थिर चित्त व्यक्ति, किसी सिद्धान्त अथवा विचार धारा पर कायम न रहने वाला। वाक्य प्रयोग :वर्तमान युग के अधिकांश नेता बिन पेंदी के लोटे जैसे होते हैं। विधान सभा के उप चुनाव में पार्टी से टिकट न मिलने पर क्षुब्ध नेताजी के दूसरी पार्टी में शामिल होने पर पार्टी अध्यक्ष ने कहा बिन पेंदी का लोटा कभी वफ़ादार नहीं हो सकता है। ऐसी ढुलमुल मानसिक स्थिती वाले व्यक्ती स्थिरता देनेवाली पेंदी- समतल दृष्टी या तात्विक धारणा का अभाव जिसके स्वभाव में हो वह व्यक्ती बिन पेंदी का लोटा है। इसमें सामाजिक, नैतिक , धार्मिक , राजनैतिक सभी बर्ताव शामिल है। 

साथियों ऐसा व्यक्ती जो कोई ठोस निर्णय नही कर पाता।यह स्वभाव केवल जानकारी के अभाव से या अज्ञान से नही बल्की स्वार्थ से भी प्रेरित होता है। जहाँ फायदा होगा उसी पक्ष में शामिल होने की यह प्रवृत्ती है। बिन पेंदी का लोटा मुहावरे का प्रयोग ऐसे व्यक्तियों के लिए किया जाता है जिनकी अपनी कोई विचरधारा और सिद्धांत नहीं होता ऐसे व्यक्ति अवसर की अनुकूलता अनुसार कभी इधर तो कभी उधर लुढ़कते रहते हैं। अवसर मिलते ही सभी आदर्श तत्वों को तिलांजली दे कर दल बदलने वाले दलबदलू राजनेता पर यह मुहावरा सही चरितार्थ होता है जो अब जनता समझ चुकी है, ऐसी चंचल मनोवस्था बिन पेंदी के लोटे की रूपक प्रतिमा में निहीत है ! लोटा' मुहावरे का अर्थ क्या है?बिन पेंदी का लोटा, जिधर फायदा देखा उधर ही लुढ़क गए मेरा व्यंग्यात्मक ऐसा कहना है कि, अभी भारत को जितना खतरा चीन से है उतना ही ख़तरा हमें ये लोग पहुंचा सकते हैं । जिनका अपना कोई स्थायित्व ही नहीं होता , जब जिसने जो बोल दिया, उसी की हां में हां मिलाने लग जाते हैं। 

साथियों बात अगर हम लोटे को आधार बनाकर ऐसे व्यक्तियों पर व्यंग्य की करें तो किसी ने खूब ही लिखा है, प्राचीन काल से लेकर आज तक लोटा अपनी सेवाएं दे रहा है। आज भी हम इसका उपयोग अपने दैनिक जीवन में करते ही है, भले कितने ही तरह तरह के जग घरों में प्रवेश कर गये, लेकिन लोटे के बिना काम चलता ही नहीं है। हम इसका आधुनिक उपयोग भी कर सकते है। इसमें छेद करके छोटे स्पीकर लगा कर इको साउंड पैदा किया जा सकता है। घुंघरू की खनक के साथ गाने सुने जा सकते हैं। 

लोटे में नलकी लगाने के बाद इसका नाम बदल कर सागर हो जाता है, जो नलकी से तरल पेय पदार्थ पीने के काम आता है। इसमें नलकी लगने के बाद यह प्राकृतिक चिकित्सा में जल नेति करने के काम आता है।अब बात आती है लोटे के पेंदे की!! तो लोग पेंदा वाला लोटा ही लेना ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि लुढकेगा नहीं और उसमे रखी वस्तु गिरेगी नहीं, बरबाद नहीं होगी, इसी से कहावत भी बनी है बिन पेंदे का लोटा! अब यहाँ पर लोटा मनुष्यों पर सवार हो गया,बिन पेंदे का लोटा कहने से समझ में आ जाता है कि अमुक व्यक्ति विश्वसनीय नहीं हैं। यह कहीं पर भी हमको धोखा दे सकता है। हमारी बनी बनाई खीर बिखेर सकता है।रायता भी फैला सकता है, इसलिए इससे दूर रहा जाये। 

अस्थिर चित्त व्यक्ति किसी की भी चुगली कर सकता है और समबन्धितव्यक्तियों के बीच वैमनस्य फैला सकता है। इसलिए उसे इस ख़िताब से नवाजा गया है। इसलिए लोटा बनने वाले इसमें पेंदा लगना नहीं भूलते।

साथियों पहले के ग्रामीणों के घरों में कपडे रखने की आलमारी या पेटी नहीं होती थी इसलिए वो लोटे के बड़े भाई मटके का उपयोग अपने रोजमर्रा के पहनने या विशेष अवसर पर पहने जाने वाले कपड़ों को रखने में करते थे। लेकिन सूती के कपडे मटके में रखने के कारण सलवटों से भरे रहते थे।अब उन्हें पहनने लायक बनाने में भी लोटा ही काम आता था। मोटे पेंदे के लोटे में गरम कोयले भरकर उन कपड़ों की सलवटे दूर की जाती थी और व्यक्ति मजे से बाबु साहब बनकर विशेष अवसरों पर सज जाता था। पहले इसे कपड़ों पर लोटा करना कहते होंगे, जिसे आज प्रेस  करना या इस्त्री करना कहते हैं, अब समझने वाले समझ गए जो ना समझे वो अनाड़ी है। यह लोटा बड़े काम की चीज है, अगर इसमें पेंदा लगा हो तब, जीवनपर्यंत लोटा कभी साथ नहीं छोड़ सकता अगर वो पेंदे वाला हो!!बच्चा पैदा होता है तो उसको प्रथम स्नान लोटे से ही कराया जाता है और मनुष्य के अंतिम संस्कार के समय लोटे में ही घी डाल कर कपाल क्रिया संपन्न करायी जाती है। इस तरह लोटा जन्म से मृत्यु तक साथ निभाता है, लोटे का कर्ज कभी लौटाया नहीं जा सकता, इसकी महिमा अपार है। बशर्ते लोटा पेंदे वाला हो।

होठों पर कुछ और मन में और हो जहां 

वफ़ा की उम्मीद बेमानी है वहां 

आज है यहां कल होगा कहां 

कयास लगानां ही बेमानी है वहां 

बात-बात पर वफ़ा की दुहाई दिए जाते हो 

बिन पेंदी की तरह लुढ़क जाते हो 

चिराग बुझते ही जिनके दिए बदल जाते हैं 

बिन पेंदी के लोटे की तरह लुड़क जाते हैं

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि बिन पेंदी का लोटा क़भी वफादार नहीं हो सकता।वर्तमान डिजिटल युग में राजनीतिक क्षेत्र में अवसरवादी, अपनी विचारधारा को  तिलांजलि देकर अस्थिर चित्त व्यक्तियों की संख्या बढ़ना चिंतनीय है। 


*-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र*

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