आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेगा भारत
केंद्र सरकार ने यूरिया के दुरुपयोग और हमारी सेहत को ध्यान में रख उठाए ये कदम, सामने आए उत्साहजनक परिणाम
यूरिया के उपयोग को कम करने के लिए बीते कुछ साल में केंद्र सरकार द्वारा तमाम कदम उठाए गए गए हैं। इसका उत्साहजनक परिणाम आया है।
वहीं अब सरकार लिक्विड ‘नैनो यूरिया’ के उपयोग को बढ़ाने की ओर अग्रसर है। दरअसल, लिक्विड ‘नैनो यूरिया’ के इस्तेमाल के नवीनतम कदम से रासायनिक उर्वरक के उपयोग में और भी कमी आएगी जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी लाभकारी साबित होगा। दूसरा, इससे मिट्टी और उत्पादन को भी किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होगा।
याद हो, हाल ही में पीएम मोदी ने गुजरात के कलोल में पहले लिक्विड नैनो यूरिया (LNU) संयंत्र का उद्घाटन किया था। तब पीएम मोदी ने इस संबंध में कहा था हमने कामचलाऊ उपाय नहीं, समस्याओं का स्थायी समाधान खोजा है। वाकयी यह ‘नैनो यूरिया’ किसान, प्रकृति और इंसान तीनों के लिए वरदान साबित होगा।
आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेगा भारत
उल्लेखनीय है कि देश में फर्टिलाइजर की जरूरत का एक चौथाई विदेश से आयात किया जाता है। नैनो तरल यूरिया के इनोवेशन से हम आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेंगे। गुजरात में नैनो तरल यूरिया प्लांट दुनिया का पहला नैनो लिक्विड यूरिया प्लांट है जो आने वाले समय में फर्टिलाइजर की समस्याओं का स्थाई समाधान बनेगा।
उर्वरक की खपत में 8% प्रति हेक्टेयर की आई कमी
हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, 2017 में यूरिया बैग के आकार को 50 किलोग्राम के पहले के मानदंड से घटाकर 45 किलोग्राम करने के सरकार के फैसले से उर्वरक या नाइट्रोजन (N) की खपत में 8% प्रति हेक्टेयर की कमी आई है। उर्वरक मंत्रालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया है।
क्या कहती है स्टडी?
• इस संबंध में ग्लोबल कंसल्टेंसी फर्म, माइक्रोसेव कंसल्टिंग, ने किसानों पर निर्णय के प्रभाव और रासायनिक उर्वरक के उपयोग का आकलन किया और इसके निष्कर्ष उम्मीद से ज्यादा अच्छे आए हैं।
इस पहल से जो निष्कर्ष आए वो सरकार की अपेक्षा के काफी करीब नजर आते हैं। ज्ञात हो, उर्वरक मंत्रालय ने संसद को बताया था कि यूरिया बैग के आकार में कमी से रासायनिक मिट्टी के पोषक तत्व की खपत में 10% की कमी आएगी। यह अच्छी बात है कि परिणाम सरकार की उम्मीद के बेहद करीब आए हैं।
इन पर किया गया था अध्ययन
• इस अध्ययन में, 12,275 उत्तरदाताओं का साक्षात्कार लिया गया और उनमें से 85% से अधिक विशेष रूप से जमींदार थे। उनमें से ज्यादातर छोटे और सीमांत किसान थे जो औसतन 1.34 हेक्टेयर भूमि पर खेती करते थे।
क्या नतीजे आए सामने?
• रिपोर्ट में कहा गया है कि यूरिया की खुदरा इकाई (50 किलो बैग से 45 किलो बैग) में बदलाव से यूरिया की खपत में 15 किलो प्रति हेक्टेयर यूरिया और 7 किलो प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन की कमी आई है।
सरकार की पहल के बिना कितनी बढ़ जाती यूरिया की खपत?
यदि सरकार की ओर से इस दिशा में कोई अहम कदम न उठाया गया होता और ऐसी पहल न की गई होती तो यूरिया की खपत 2020-21 तक 11% के बजाय 19% तक बढ़ जाती। अध्ययन में पाया गया कि सभी राज्यों में अधिकांश किसान यूरिया बैग की खुदरा इकाई में बदलाव के बावजूद प्रति हेक्टेयर भूमि में यूरिया बैग की समान संख्या का उपयोग करते रहे। ऐसे में बेहतर रिजल्ट निकलकर सामने आए।
यूरिया के इस्तेमाल पर लिमिट क्यों चाहती है सरकार?
दरअसल, केंद्र सरकार यूरिया के दुरुपयोग को रोकना चाहती है क्योंकि इससे हमारी सेहत पर नकारात्मक असर हो रहा है। इसलिए सरकार लगातार इस दिशा में कदम उठा रही है।
सरकार द्वारा पहले नीम कोटिंग को अनिवार्य किया गया, फिर पीओएस मशीनों से बिक्री के बाद ही कंपनियों को सब्सिडी देने की व्यवस्था की गई और फिर बोरियों की बिक्री सीमा कम करने की बात सामने आई।
वहीं फिर यूरिया बैग के आकार को 50 किलोग्राम के पहले के मानदंड से घटाकर 45 किलोग्राम किया गया और अब लिक्विड ‘नैनो यूरिया’ के उपयोग को बढ़ाकर रासायनिक उर्वरक के उपयोग में कमी लाने की बात सामने आ रही है।
इस प्रकार यूरिया के कम से कम इस्तेमाल किए जाने को लेकर सरकार किसानों को सजग करने का कार्य कर रही है। इससे किसानों की सेहत का खयाल रखा जा सकेगा।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें