विशेष विवाह अधिनियम का महत्व

जबलपुर। विधिक सेवा प्राधिकरण जबलपुर द्वारा संचालित 21 दिवसीय इंटरशिप का लाभ उठा रहे एन.ई.एस.विधि महाविद्यालय जबलपुर तृतीय सेमेस्टर के विधार्थी, हमारे संवाददाता को जानकारी देते हुए विधि विधार्थी जयराज चौधरी ने बताया कि विधिक सेवा प्राधिकरण जबलपुर द्वारा संचालित 21 दिवसीय इंटरशिप में एन.ई.एस.विधि महाविद्यालय जबलपुर के विधार्थियों को विवाह रजिस्ट्रेशन कार्यालय जबलपुर का निरिक्षण कराया गया। 

विधिक सेवा प्राधिकरण जबलपुर सचिव माननीय न्यायाधीश उमाशंकर अग्रवाल के आदेशानुसार में जिला विधिक सहायता अधिकारी मोहम्मद जिलानी के निर्देशानुसार विधि विधार्थियों को विवाह रजिस्ट्रेशन कार्यालय जबलपुर का निरीक्षण कराया गया है जहां अपर कलेक्टर विमलेश सिंह के मार्गदर्शन में उषा अय्यर ने  विधि विधार्थियो जानकारी देते हुए बताया कि भारत देश में अभी भी शादी या विवाह बहुत महत्वपूर्ण संस्कार है। विवाह के बाद वर और वधु के नए जीवन की शुरुआत होती है। 

शादी-विवाह को धूमधाम से करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है पर शादी-विवाह के रजिस्ट्रेशन को लेकर लापरवाही देखने को मिलती है। जबकि शादी-विवाह का रजिस्ट्रेशन भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि शादी विवाह करना। 

मध्यप्रदेश राज्य में वर्ष 2008 में विवाह पंजीयन अनिवार्य किया गया है जिस हेतु मध्यप्रदेश शासन द्वारा प्रदेश के समस्त जिलों, तहसील, निगमों एवं पंचायत कार्यालयों के साथ लोक सेवा केन्द्रों के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जा रहा है  साथ ही उन्होंने बताया कि विवाह प्रमाण पत्र एक कानूनी बयान है कि दो लोग विवाहित मतलब उनकी शादी हुई हैं। मध्य प्रदेश राज्य सरकार कानूनी मानदंडों के आधार पर विवाह प्रमाण पत्र प्रदान करती है।  

विशेष विवाह अधिनियम (1954)

इस अधिनियम के तहत भारत में रहने वाले दूसरे धर्म के लोगों के विवाह का पंजीकरण किया जाता है। वर्ष 1954 में विशेष विवाह अधिनियम लागू हुआ, जिसमें किसी भी व्यक्ति को कुछ शर्तों के साथ किसी अन्य धर्म या जाति से संबंधित किसी व्यक्ति से विवाह की अनुमति है।

विशेष विवाह अधिनियम की धारा 4 के अंतर्गत दोनों पक्षों में से किसी एक का कोई जीवनसाथी नहीं होना चाहिये। दोनों पक्षों को अपनी सहमति देने में सक्षम होना चाहिये, अर्थात् वो वयस्क हों एवं अपने फैसले लेने में सक्षम हों। 
दोनों पक्ष उन कानूनों के तहत, जो उनके धर्म विशेष पर लागू होता है, निर्धारित निषिद्ध संबंधों, जैसे-अवैध या वैध रक्त संबंध, गोद लेने से संबंधित व्यक्ति, में नहीं होना चाहिये। इसके साथ ही पुरुष की आयु कम से कम 21 और महिला की आयु कम से कम 18 होनी चाहिये। दोनों पक्ष जिस क्षेत्र में विगत तीस दिनों से निवास कर रहे हैं उस क्षेत्र में विवाह अधिकारी को उनके विवाह हेतु अनुमति पत्र दे सकते हैं। यदि किसी को भी इस विवाह से कोई आपत्ति है तो वह अगले 30 दिनों की अवधि में इसके खिलाफ नोटिस दायर कर सकता है। 
आपत्तियों पर विचार करने के 30 दिनों की अवधि के पश्चात, विवाह के पंजीकरण पर हस्ताक्षर करने के लिये 3 गवाहों के साथ विवाह की अनुमति दी जाती है, कि यदि कोई भी व्यक्ति यह मानता है कि दोनों में से कोई भी पक्ष सभी आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं करता है तो शादी के खिलाफ आपत्ति दर्ज कर सकता है। यदि आपत्ति सही पाई जाती है तो विवाह अधिकारी विवाह हेतु अनुमति प्रदान करने से मना कर सकता है। 
हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 हिंदू विवाहों को नियंत्रित करने वाला एक संहिताबद्ध (कोडीफाइड) कानून है। 18 मई, 1955 को एक संहिताबद्ध कानून बनने पर, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 सभी हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों या सिखों के लिए लागू हो गया था। यह अधिनियम उन सभी व्यक्तियों के लिए भी उपयोगी है जो मुस्लिम, ईसाई, पारसी, या यहूदी धर्म से नहीं हैं, जैसा कि अधिनियम की धारा 2 (1) (c) द्वारा प्रदान किया गया है। 

इस लेख का उद्देश्य इस अधिनियम की धारा 5 का विश्लेषण प्रदान करना है, जो एक हिंदू विवाह के लिए उन शर्तों से संबंधित है जिन्हें विवाह को वैध मानने के लिए पूरा किया जाना आवश्यक है। इसके साथ ही, यह लेख 1955 के अधिनियम की धारा 5 की व्याख्या करने के इरादे से भारतीय अदालतों द्वारा दिए गए ऐतिहासिक निर्णयों के साथ भी आता है। विधिक सेवा प्राधिकरण जबलपुर द्वारा संचालित 21 दिवसीय इंटरशिप में एन.ई.एस. विधि महाविद्यालय जबलपुर तृतीय सेमेस्टर के विधार्थियों के इस प्रकार है - जयराज चौधरी, अक्षय कोरी, लखन कोरी, योगेश कुमार पाठक, योगिता पटेल, अरविंद प्रजापति, निकिता माप्ररकर, सौम्या खरे, कृष्णा मरावी, आंचल सिंह ठाकुर, संजय परस्ते, संतोष ठाकुर, दीपाली रॉय, अरविंद यादव।

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