राजनैतिक आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में दिव्यांगजनों की भागीदारी सुनिश्चित!

अंतरराष्ट्रीय दिवस दिवस 3 दिसंबर 2022 पर विशेष

  • समरूपजनों की समझदार व्यक्तियों को समझकर उनका कौशलता विकास करें..
  • लोकतांत्रिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में अधिकारों की भागीदारी सुनिश्चित करना मानवता का परिचय देना समय की मांग..

 किशन भावनानी

सृष्टि की अद्भुत रचना मानव के संपूर्ण शरीर में प्रत्येक अंग का अपना एक विशेष महत्व है, जिसकी शक्ति पर मानव अपनी दानी क्रियाओं और अपने दैनिक जीवन यापन में उपयोग करता है जो कि सृष्टि का नियम भी है। लेकिन इस भौतिक सुखी जीवन में विघ्न की डोरी तब जुड़ती है जब शरीर का कोई अंग सहज या दैनिक जीवन यापन के दौरान डैमेज होता है, फिर मनुष्य उसे दिवस कहता है जिसके अंग या अंग संबंधी क्रियाएं नहीं कर सकते हैं, जो उसके जीवन में कई अधिभार का कारण बनता है। वैसे तो सृष्टि की 84 लाख योनियों में हर जीव को भौतिक अंग है, परंतु जैसी मस्तिष्क की शक्ति, बुद्धिमता मानव योनि को दी है, वैसी किसी अन्य योनि में नहीं है। 

हर मानव अंग का अपना एक विशेष महत्व है। हाथ, पैर, मुंह, पेट, आंख और मस्तिष्क सभी का प्रयोग मानव अपनी बुद्धि के अनुकरण से बहुत ही ख़ूबसूरत प्रभाव से करता है। वैसे ही, जबकि आर्थिक स्तर पर धीमी गति से व्यक्तियों के लिए यह संभव भी नहीं है। चूंकि 3 दिसंबर 2022 को हम अंतर्राष्ट्रीय दिवस मना रहे हैं, इसलिए आज हम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में उपलब्ध जानकारी के आधार पर इस लेख के माध्यम से चर्चा करेंगे कि समान दिवसों की व्याख्या करने वालों को उनका कौशल विकास और राजनीतिक आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक में दयाजनों की भागीदारी सुनिश्चित करके मानवता का परिचय दें। 

हम दिवसजनों की कई विभाजित व्यक्तियों से हुई अमाताओं को समझकर उनके कौशलता विकास की तो हमें भारत के सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय के फॉर्मूले को अपनाकर विशेष रूप से दिवसजनों की सहायता करनी होगी। क्योंकि यदि हम दिव्यांगजनों के साथ-साथ सभी नागरिकों में मौजूद क्षमताओं का दोहन करने में विफल रहे हैं तो भारत का विकास गाथा अधूरा रहेगा। 

दिव्यांगजनों की विशेष आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रत्येक स्तर पर हमारी शासन प्रणाली को कार्य किया जाना चाहिए। इसके लिए हमें साथ मिलकर और तत्काल काम करना होगा। दिवसजनों और के लिए सक्षम वातावरण सृजित कर सहानुभूति और दस्तावेज सावधानीपूर्वक सहयोग विकास कर पुनर्वास के लिए सक्षम बनाना आवश्यक है। डाइटेजन और परंपराओं की सेवा भारतीय संस्कृति और परंपरा है। इनके सामने आने वालों के लिए समाज के विभिन्न स्तरों पर निर्णय की आवश्यकता आवश्यक है। 

आज के प्रौद्योगिकी युग में ऐसी कई सेवाएँ कृत्रिम मछली अंग हैं, जिसमें शामिल होने से प्रोत्साहन से, सहानुभूति और दायित्व से सक्षम वातावरण सृजित करने से दिवसजनों का खर्च विकास करने से आदि कई प्रकार से समाज के विभिन्न अधिकारियों पर प्रशासन के ज्ञापनों की चिंताएं कम किया जा सकता है। 

बस जरूरत है हमें अपनी संस्कृति, परंपराओं, सभ्यता को जागृत करने की! पूर्वउपराष्ट्रपति द्वाराएक कार्यक्रम में दिव्यांगजनों के बारे में संबोधन की तो उन्होंने दिव्यांग समुदाय के प्रति लोगों की मानसिकता में बदलाव का आह्वान किया और कहा कि उनके खिलाफ किसी भी तरह के भेदभाव को रोकना सरकार और समाज की जिम्मेदारी है। उन्होंने उनके फलने-फूलने और उत्कृष्टता हासिल करने के लिए एक वातावरण बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, उन्हें हमारी सहानुभूति कीआवश्यकता नहीं है बल्कि वे अपनी पूरीक्षमता विकसित करने के लिए हरअवसर के हकदार हैं। 

सार्वजनिक स्थानों, परिवहन और निजी भवनों को कहीं अधिक सुलभ बनाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि स्कूलों में शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को दिव्‍यांग बच्चों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील बनाना भी महत्वपूर्णहै।

उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि यह सुनिश्चित करना महत्‍वपूर्ण है कि प्रौद्योगिकी से दिव्‍यांगजनों को बाहर न किया जाए। उन्‍होंने भारत के राष्ट्रीय संस्थानों और विश्वविद्यालयों से सुलभ स्मार्ट प्रौद्योगिकी से संबंधित अपने काम में तेजी लाने का आग्रह किया। उन्होंने दिव्यांगजनों को छोटी उम्र से ही उनके कौशल की पहचान कर उन्हें आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने के लिए सर्वांगीण प्रयास करने का आह्वान किया। 

सर्वेजना सुखिनो भवन्तु और वसुधैव कुटुम्बकम के हमारे प्रमुख मूल्‍यों को याद दिलाते हुए उन्‍होंने सरकार, निजी क्षेत्र, नागरिक समाज और परिवारों सहित सभी से दिव्‍यांगजनों को सशक्त बनाने और अपने 'धर्म' यानी कर्तव्य का पालन करने के लिए पहल करने का आह्वान किया। 

उन्होंने बच्‍चों में दिव्‍यांगता संबंधी जोखिम की जल्द पहचान करने के महत्व पर जोर दिया और सभी राज्यों में हाल में स्थापित क्रॉस-डिसएबिलिटी अर्ली इंटरवेंशन सर्विस सेंटर (सीडीईआईएससी) जैसे कई केंद्र खोलने का आह्वान किया। उन्होंने एनआईईपीआईडी ​​को बच्चों में दिव्‍यांगता संबंधी जोखिम का शीघ्र पता लगाने के लिए सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी जैसे संस्थानों के साथ गठजोड़ करने का भी सुझाव दिया। 

उन्होंने बच्चों में दिव्‍यांगता संबंधी जोखिम का जल्द पता लगने पर माता-पिता को उपयुक्‍त परामर्श दिए जाने कीआवश्यकता को भी रेखांकित किया। आनुवंशिक विकारों का शीघ्र पता लगाने और उनकी रोकथाम के लिए एनआईईपीआईडी ​​और सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) जैसे संगठनों के बीच अधिक सहयोग का सुझाव दिया।

उन्होंने उन दिव्‍यांग बच्चों के माता-पिता की सराहना की जो उन्‍हें प्रेरित करते हैं और भावनात्मक तौर पर सहारा देते हैं। उन्‍होंने कहा 'मैं आपको इन विशेष बच्चों की क्षमता को अधिकतम सीमा तक विकसित करते हुए उनके पालन पोषण के लिए सलाम करता हूं। आप सब उम्‍मीद और बिना शर्त प्यार के सच्चे अवतार हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, दिव्‍यांगजन भारत की कुल आबादी में 2.21 प्रतिशत की महत्‍वपूर्ण हिस्‍सेदारी रखते हैं। जाहिर तौर पर उन्हें आर्थिक एवं सामाजिक रूप से सशक्त बनाने और विभिन्न प्रकार के दैनिक कार्य करने में उनकी कठिनाई को कम करने की आवश्यकता है। 

दिव्यांगजनों को अपनी पूरी क्षमता के विकास के लिए हर अवसर हासिल करने का हक है। उन्हें हमारी सहानुभूति की जरूरत नहीं है। उन्हें अपने अनोखे कौशल को निखारने के लिए समानुभूति, न्याय और प्रशिक्षण की आवश्यकता है  इस संदर्भ में यह सरकार और समाज की जिम्मेदारी है कि वे उनके खिलाफ किसी भी तरह के भेदभाव को रोकें और उनकी कामयाबी एवं उत्कृष्टता के लिए एक वातावरण तैयार करें। मैं इस संस्‍थान की भूमिका को एक समावेशी समाज के निर्माण के महत्वपूर्ण मिशन के हिस्से के रूप में देखता हूं।

कई दिव्‍यांगजनों ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी योग्यता एवं उत्कृष्टता को बार-बार साबित किया है। उन्होंने दुनिया को दिखा दिया है कि उनकी दिव्‍यांगता उनके सपनों को साकार करने की सीमा नहीं है। इससे साबित होता है कि यदि उन्‍हें उचित प्रोत्साहन दिया जाए और एक उपयुक्‍त वातावरण तैयार किया जाए तो वे किसी से पीछे नहीं रहेंगे। 

यह चिंता का विषय है कि बौद्धिक दिव्‍यांगजनों को कई बार भेदभाव और सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ता है जिससे समाज में उनका एकीकरण बाधित होता है। 

कई मामलों में परिवार के करीबी सदस्यों और स्थानीय समुदाय की मानसिकता को बदलने की आवश्‍यकता होती है।दिव्यांगजन समुदाय के सामने आने वाली कठिनाइयों के बारे में लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने कीआवश्यकता है। जागरूकता किसी भी गलतफहमी को दूर करेगी और उन्‍हें समानुभूति की ओर ले जाएगी। 

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन करउसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि अंतरराष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस 3 दिसंबर 2022 पर विशेष है। 

आओ दिव्यांगजनों की अक्षमताओं को समझकर उनका कौशलता विकास करें राजनैतिक आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में दिव्यांगजनों की भागीदारी सुनिश्चित कर मानवता का परिचय देना समय की मांग है। 

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