एक सीख
महाराष्ट्र, नालासोपार। दिल्ली में घटी ये घटना बालक-बालिकाओं की आंखों के लिए एक संदेश है। दो चार मिलने या दो चार मिली-मीठी बातों को सुनकर जन्म देने वाले मां-बाप को भूल जाते हैं। एक अजनबी इंसान के लिए खून का रिश्ता तोड़ने में एक पल नहीं।
ऐसे लोगों के साथ बार-बार यही होता है, इस घटना से आज की युवा पीढ़ी को सबको लेना चाहिए। आजकल के बच्चे छोटे-छोटे पाठ अपनी संस्कृति अपनी सभ्यता अपने आदर्शों को भूल जाते हैं।आदर्श और संस्कारों की बात करने वाले लोग उन्हें भाते नहीं। ऐसे वीडियो को माता-पिता पुरानी सोच वाले होते हैं। ऐसी सोच वाले बच्चे मां-बाप अनदेखे कर के खुद का जजमेंट खुद लेते हैं।
..ऐसे बच्चों के लिए श्रद्धा हत्याकांड एक शबक है, एक सीख है। श्रद्धा ने अपने माता-पिता का विरोध किया, किसी एक व्यक्ति के साथ भरोसा किया और विश्वास किया। विश्वास, विश्वास में बदल गया..!
परंपरा के अनुसार श्रद्धा के शरीर को अंतिम संस्कार भी नसीब नहीं हुआ। एक बरहम इंसान को एक पल ना लगा उसका गला घोंट कर उसके 35 टुकड़े करने में।उसने ये तक नहीं सोचा था कि इस लड़की ने अपना रिश्ता, माता-पिता के लिए सबके लिए छोड़ दिया है। जिसके लिए सारे रास्ते छोड़ दिए उसने पूरी दुनिया से अपना रिश्ता खत्म कर दिया।
मन की चिंता बढ़ जाती है, यह सोच कर कि क्या होगा जो आज के बच्चों को क्यों नहीं जोड़ेगा माता-पिता के दर्द को उनकी परेशानियों को। क्यों एक अजनबी व्यक्ति के लिए एक पल में वो सारे रिश्ते-नाते तोड़ देते हैं इसलिए उनका वजूद है।
आज समझ की युवा पीढ़ी से सोच, कदम सींक।अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए ताकि आगे से कोई भी ऐसा कदम उठाने से पहले सौ बार सोचे। जब तक कि इन अपराधियों की शरण न मिली हो, तब तक सीपी को रोका जा सकता है। ऐसी चंचल के मरीज देश में फलते-फूलते जायें और उन ब्राओं की तरह श्रद्धा करें जो उनके शिकार रहेंगे। ना जाने कितने में बत्ती हूँ।
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