गरीबी पर भेदभाव क्यों?
- सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े समाज की श्रेणी में गरीब सवर्णों को आरक्षण सटीक कदम
- सात दशक पहले शुरू हुए इस मूवमेंट की प्रक्रिया पर फ़िर से समीक्षा कर वर्तमान स्टेटस का संज्ञान लेना ज़रूरी?
किशन भावनानी
कुदरत द्वारा रचित इस खूबसूरत सृष्टि में मानवीय योनि की रचना करते समय सृजनकर्ता नें सोचा भी नहीं होगा कि यह बुद्धिजीवी प्राणी इतना आगे बढ़ जाएगा कि अपनों के बीच ही जात पात धार्मिक भेदभाव छुआछूत जैसी अनेकों कुप्रथाओं की स्थिति पैदा करेगा और अपनों में से ही अन्य मानवीय जीवो में बैकवर्ड सवर्ण ट्रांसजेंडर सहित अनेकों वर्गों में बांटते चले जाएंगें और जाति धर्म पर दंगों से लेकर आरक्षण फिर उससे भी चार कदम आगे आरक्षण पर लड़ाई में उलझ कर रह जाएंगे।
आज हम इस विषय पर सोचने को मजबूर हो गए हैं कि हम अपने साथ आर्थिक रूप से अति पिछड़े गरीबों को भी क्यों ना मुख्य विकासधारा में लाएं? क्या उनका कसूर सिर्फ इतना है कि उन्हें आरशिक्त क्यों नहीं किया गया? जैसे उनके प्रश्न आज अनेकों के मन में घूम रहे हैं कि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े समाज के साथ हमारे गरीब सवर्ण समाज को भी मुख्यधारा में लाना है, जिसके लिए सरकार द्वारा एक रोडमैप लाया गया था, जिसके खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अनेकों पिटीशन दाखिल की गई थी जिसपर माननीय उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई पूरी कर 27 सितंबर 2022 को फैसला सुरक्षित रख लिया था और अब 7 नवंबर 2022 को 5 जजों की संविधान पीठ ने 5:3 से आर्थिक रूप से पिछड़े (ईडब्ल्यूएस) के लिए शिक्षा और शासकीय सेवाओं में 10 फ़ीसदी आरक्षण के फैसले पर मुहर लगा दी। इसीलिए आज हम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और टीवी चैनलों परआई जानकारी के सहयोग से चर्चा करेंगे कि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े समाज की श्रेणी में गरीब सवर्णों को आरक्षण सटीक कदम है।
इस मामले की करें तो उच्चतम न्यायालय द्वारा शासन द्वारा लाए 103 वें संविधान संशोधन ईडब्ल्यूएस को 10 फ़ीसदी आरक्षण लागू करने के फैसले पर मुहर लगा दी है। जिसका कुछ राजनैतिक वर्ग विरोध कर रहे हैं जिसमें एक बड़ी पार्टी के नेता द्वारा दिए गए बयान को रेखांकित किया जाना समय की मांग है कि क्या गरीब पर भी भेदभाव जरूरी है? आखिर गरीब की हम जात पात क्यों देखें?
अगर गरीब को देश के विकास की मुख्यधारा में लाया जाता है तो उस में हर्ज क्या है ? जैसे अनेकों सवाल लोगों के दिलों में हैं मेरा मानना है कि बिना किसी जात पात के हर वर्ग के गरीब को हाथ से हाथ मिला कर उसको आगे बढ़ाने में हर वर्ग को आगे आना चाहिए।
ईडब्ल्यूएस लागू करने की करे तो, ये व्यवस्था 2019 में यानें पिछले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्री सरकार ने लागू की थी और इसके लिए संविधान में 103 वां संशोधन किया गया था। 2019 में लागू किए गए ईडब्लूएस कोटा को तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी समेत कई याचिकाकर्ताओं ने इसे संविधान के खिलाफ बताते हुए अदालत में चुनौती दी थी।
आखिरकार, 2022 में संविधान पीठ का गठन हुआ और 13 सिंतबर को चीफ जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस दिनेश महेश्वरी, जस्टिस रवींद्र भट्ट, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पादरीवाला की संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की। सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस ) को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखने का फैसला 7 नवंबर 2022 को सुनाया है।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटे से संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं हुआ। संविधान पीठ ने ये फैसला 3-2 से सुनाया है। कोर्ट में सरकार की ओर से कहा गया कि ईडब्ल्यूएस तबके को समानता का दर्जा दिलाने के लिए ये व्यवस्था जरूरी है. केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि इस व्यवस्था से आरक्षण पा रहे किसी दूसरे वर्ग को नुकसान नहीं है। साथ ही 50 प्रतिशत की जो सीमा कही जा रही है, वो कोई संवैधानक व्यवस्था नहीं है, ये सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से आया है, तो ऐसा नहीं है कि इसके परे जाकर आरक्षण नहीं दिया जा सकता है।
हालांकि इस केस में आरक्षित वर्ग को कोई फर्क नहीं पड़ेगा और सीमा 50 फ़ीसदी ही रहेगी। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि आरक्षण का मकसद सामाजिक भेदभाव झेलने वाले वर्ग का उत्थान था, अगर गरीबी आधार तो उसमें एससी एसटी ओबीसी को भी जगह मिले। ईडब्लूएस कोटा के खिलाफ दलील देते हुए कहा गया कि ये 50 फीसदी आरक्षण की सीमा का उल्लंघन है।
संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 50 प्रतिशत कोटा को किसी भी रूप में बाधित नहीं करता है। कोर्ट ने कहा कि गरीब सवर्णों को समाज में बराबरी तक लाने के लिए सकारात्मक कार्रवाई के रूप में संशोधन की आवश्यकता थी।
टीवी चैनलों के अनुसार जस्टिस माहेश्वरी ने अपने फैसले में कहा कि आरक्षण गैरबराबरी को बराबरी पर लाने का लक्ष्य हासिल करने का एक औजार है। इसके लिए न सिर्फ सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग को समाज की मुख्य धारा में शामिल किया जा सकता है बल्कि किसी और कमजोर क्लास को भी शामिल किया जा सकता है। जबकि जस्टिस पारदीवाला- मैं इस संशोधन को बरकरार रखने का फैसला देता हूं। ईडब्ल्यूएस कोटा सही है।
मैं जस्टिस माहेश्वरी और जस्टिस त्रिवेदी के फैसले के साथ हूं। हालांकि ईडब्ल्यूए स कोटा अनिश्चितकाल के लिए नहीं बढ़ाना चाहिए। जो लोग आगे बढ़ गए हैं उन्हें बैकवर्ड क्लास से हटाया जाना चाहिए जिससे जरूरतमंदों की मदद की जा सके। बैकवर्ड क्लास तय करने की प्रक्रिया पर फिर से समीक्षा करने की जरूरत है जिससे आज के समय में यह प्रासंगिक रह सके। निहित स्वार्थ के लिए आरक्षण का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए।
यह सामाजिक और आर्थिक असमानता को खत्म करने के लिए है। यह मूवमेंट सात दशक पहले शुरू हुआ था और विकास एवं शिक्षा ने इस खाई को पाटने की कोशिश की है। इस फैसले ने अब एक नई लकीर खींच दी है कि सिर्फ सामाजिक और शैक्षिक नहीं, आर्थिक पिछड़ापन भी आरक्षण का आधार होगा। 75 साल के बाद हमें आरक्षण पर फिर से गौर करने की जरूरत है।
सुप्रीम कोर्ट पहले भी सरकार को आरक्षण के लिए समाज के अन्य कमजोर वर्गों की पहचान करने को कह चुका है। उदाहरण के तौर पर अप्रैल 2014 में किन्नरों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को देखा जा सकता है। तब कोर्ट ने महिला, पुरुष से इतर लिंग की तीसरी श्रेणी ट्रांसजेंडर को मान्यता दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि किन्नरों को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा समुदाय माना जाए और उन्हें नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण दिया जाए। सितंबर 2018 में उत्तराखंड हाई कोर्ट ने भी राज्य सरकार को शिक्षण संस्थाओं और सरकारी नौकरी में किन्नर समुदाय को आरक्षण देने के लिए उचित नियम बनाने को कहा था। बिहार जैसे कुछ राज्य किन्नरों के लिए आरक्षण की व्यवस्था कर चुके हैं। बिहार सरकार ने पुलिस भर्ती में किन्नरों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि गरीबी पर भेदभाव क्यों ?सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े समाज की श्रेणी में गरीब सवर्ण को आरक्षण सटीक कदम है। सात दशक पहले शुरू हुए इस मूवमेंट की प्रक्रिया पर फ़िर से समीक्षा कर वर्तमान स्टेटस को संज्ञान में लेना ज़रूरी है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें