'सेवक साहित्य श्री सम्मान' से सम्मानित होंगे भोलानाथ कुशवाहा
Anand Kumar Singh
मिर्जापुर। नगर के वरिष्ठ साहित्यकार श्री भोलानाथ कुशवाहा को वाराणसी की गौरवशाली साहित्यिक संस्था 'साहित्य संघ वाराणसी' अपने वार्षिक अधिवेशन के अवसर पर आगामी 11 दिसंबर 22 को 'सेवक साहित्यश्री सम्मान' से सम्मानित करेंगी।
यह समारोह श्री कमला शंकर चौबे आदर्श सेवा विद्यालय इन्टर कालेज नरहरपुरा, ईश्वरगंगी, वाराणसी में आयोजित होगा।
यह जानकारी साहित्य संघ वाराणसी के मंत्री श्री जितेन्द्रनाथ मिश्र ने श्री कुशवाहा को दी है।
श्री मिश्र वाराणसी की लोकप्रिय पत्रिका 'सोच विचार' के सम्पादक भी हैं। ज्ञात हो कि उक्त सम्मान श्री भोलानाथ कुशवाहा को उनके लम्बे साहित्य लेखन के लिए दिया जा रहा है।उनकी अब तक सात पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें चार कविता संग्रह- कब लौटेगा नदी के उस पार गया आदमी,जीना चाहता हूँ,इतिहास बन गया, वह समय था। इसके अलावा एक नाटक 'ईशा', एक कहानी संग्रह 'लोक डाउन' व एक दोहा संग्रह 'जन मन' भी प्रकाशित है।उनका एक हाइकु संग्रह 'टूटी लहर' प्रकाशन हेतु प्रेस में है। श्री कुशवाहा ने हिंदी की कई विधाओं में लेखन किया है। उनका नाटक 'ईशा' उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा मोहन राकेश सर्जना पुरस्कार से सम्मानित हो चुका है। इसके साथ ही उनके कविता संग्रह 'कब लौटेगा नदी के उस पार गया आदमी' को जयपुर का राजेंद्र बोहरा स्मृति काव्य पुरस्कार मिल चुका है। उन्हें हिन्दी साहित्य परिषद प्रयाग का 'हिन्दीश्री', मिर्जापुर साहित्य संगम का 'निराला साहित्य' , रीड पब्लिकेशन का 'नंदल हितैषी', वर्ड लिटरेरी फोरम फार पीस एण्ड ह्यूमन राइट्स का 'नेशनल अम्बेसडर आफ पीस' समेत अनेक सम्मान समय-समय पर मिलते रहे हैं।
नगर के बाँकेलाल टंडन की गली,वासलीगंज निवासी 72 वर्षीय श्री कुशवाहा ने अपने साहित्य लेखन की यात्रा इलाहाबाद से कविता से शुरू की थी। उनकी कविताएँ देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं।
उन्होंने साहित्यिक पुस्तकों की भूमिकाएँ लिखने के साथ समीक्षाएँ भी की हैं, जो प्रकाशित होती रही हैं। आकाशवाणी के इलाहाबाद, वाराणसी, बरेली, दिल्ली केंद्रों से उनकी कविताएँ प्रसारित हो चुकी हैं। दूरदर्शन के इलाहाबाद व वाराणसी केंद्रों ने उनकी कविताओं का प्रसारण किया है।
श्री भोलानाथ कुशवाहा का लेखन सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है।
वह समाज के साथ व्यक्ति के बदलाव को मुख्यरूप से अपना विषय बनाते है। वह आज के यथार्थ की जमीन पर खड़े रचनाकार हैं। वह मानते हैं कि इस सृष्टि में आदमी प्रमुख है इसलिए सारा कुछ उसकी सुख-सुविधा को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए और उसे भी अनुशासित रहना चाहिए ।
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