यह बडका बाबू लोग अवैध रूप से चिपके हुए है.. पावर कार्पोरेशन मे

  • आखिर ऐसा क्या है जो उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन और उसके सहयोगी अन्य निगमो मे..
  • यह बडका बाबू लोग अवैध रूप से चिपके हुए है..
  • उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन लिमिटेड मे तैनात बडकऊ ने दी बुला कर दी धमकी..

लखनऊ। सोचने वाली बात है कि क्यो आन्दोलन करने की जरूरत पड गयी संयुक्त संघर्ष समिती को। क्यो आधिकारी और कमर्चारी आंदोलनरत है तो जवाब है उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन यानि कि प्रदेश की उन्नती की रीड की हड्डी अगर ऊर्जा नही तो कुछ भी नही हर तरफ अधेरे का साम्राज्य होता उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन मे बैठे अनुभवहीन प्रबन्धन की मनमानी के कारण ऊर्जा विभाग के धाटे मे ले जाने का जिम्मेदार आखिर कौन है।

आज से 22 साल पहले उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद का विधटन हुआ और  जन्म हुआ उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन लिमिटेड, उत्तर प्रदेश ट्रांसमीशन कार्पोरेशन लिमिटेड, और उत्तर प्रदेश विद्युत उत्पादन निगम और केस्को का इस समय भी बडा आन्दोलन हुआ विरोध मे जेले भरी गयी सरकार को समझौते के लिए बाध्य होना पडा लेकिन कुछ जयचन्दो की वजह से जीती हुई बाजी पलट गयी क्यो कि नेताओ के मुह पर खूब जोर का चादी का जूता चला था समझौता हुआ और अस्तित्व मे आया उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन जो चलना तो चाहिए था कम्पनी ऐक्ट के बने मेमोरेंडम आफ आर्टिकल के अनुसार लेकिन उत्तर प्रदेश की दालफीता शाही ने इसको लागू ही नही होने दिया।

जिन पदो पर अनुभवी अभियन्ताओ को बैठना चाहिए था वहाँ बडका बाबूओ ने कब्जा कर लिया जिन न नेताओ को इसका विरोध कर अपनी अगली पीढी को इस अन्याय के बारे मे शिक्षित चाहिए था वो नामालूम किस वजह से खामोश रहे यहाँ तक कि अपने ही अभियन्ता साथी के प्रबन्धनिदेशक उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन बनने पर अन्दर ही अन्दर विरोध भी कर रहे थे जब सरकार बदली तो इस विषय मे हो रही चर्चा मे कुछ लोगो ने मेमोरेंडम आफ आर्टिकल का जिक्र किया। जिसको की बडी ही मुश्किल से उपभोक्ता सरक्षण उत्थान समिति के उपाध्यक्ष ने खोज निकाला और जनता के भले के लिए प्रथम जनहित याचिका माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद मे दाखिल की जो कि वर्तमान समय मे न्यायालय मे विचाराधीन है लेकिन पत्रकारिता के माध्यम से उपभोक्ता सरक्षण उत्थान समिति के उपाध्यक्ष ने अभियन्ताओ और कर्मचारियो को जाग्रत करना शुरू कि और अध्यक्ष पावर कार्पोरेशन, प्रबंध निदेशक पावर  कार्पोरेशन, प्रबंध निदेशक पारेषण, प्रबंध निदेशक उत्पादन निगम और प्रबंध निदेशक समस्त डिस्कामो मे बैठे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारीयो यानि कि बडका बाबूओ को अवैध रूप से नियुक्त लिखना शुरू किया जब अभियन्ता और कर्मचारी जब यह पूछते कि बडका बाबू अवैध कैसे तो उनको मेमोरेंडम आफ आर्टिकल के बारे मे शिक्षित करने की एक मुहीम चलाई जिसमे उनका साथ उपभोक्ता सरक्षण उत्थान समिती के अध्यक्ष और प्रबंध सम्पादक समय के उपभोक्ता ने दिल खोल कर दिया धीरे धीरे मेहनत रंग लाई सब एक दूसरे को मेमोरेंडम के बारे मे शिक्षित करने लगे और अभियन्ता व कर्मचारी अपने अधिकारो की बात करने लगे जिसे वर्तमान समय मे  एक आदोलन का रूप ले लिया है अवैध रूप से बैठे बडका बाबू और उनके चहेते की कुर्सीया डगमगाने लगी है जिसकी वजह से उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन के अध्यक्ष रूप मे अवैध रूप से बैठे  सबसे बडे बडकऊ / अध्यक्ष ने सयुंक्त सघर्ष समिती के पदा अधिकारियो को वार्ता के लिए अपने कार्यालय बुला। मजे की बात अपनी ही अवैध नियुक्ति को वैध साबित करने की असफल कोशिश।  

जो खुद ही अवैध रूप से बैठे है वो क्या वार्ता कर के हल निकालेगे। फिलहाल यह आन्दोलन ही उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन मे समस्त अवैध रूप से बैठे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अनुभव हीन अधिकारियो को हटाने के लिए और उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन मे मेमोरेंडम आफ आर्टिकल लागू करने के लिए ही तो हो रहा है जो इन बडके बाबूओ के कारण पिछले 22 सालो से लागू ही नही होने दिया 

अब जब समय का उपभोक्ता समाचार पत्र और उपभोक्त सरक्षण उत्थान समिति के प्रयासो के जरिए अभियन्ता और कर्मचारी जागे है तो जनाब इस आन्दोलन को बडकऊ तमाशा बता कर बन्द करने के लिए कहा रहे है जब कि जनाब खुद ही अवैध रूप से विराजमान है और खुद ही तमाशा कर रहे है अरे जनाब आप इतने ही काबिल है. 

अवनीश अवस्थी की तरह चयन समिती की तरह विज्ञापन के जरिए चयन समिती के माध्यम से चयनित हो कर आते और तब चलाओ उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन यही तो सयुंक्त संघर्ष समिति की मुख्य माग है। 

वैसे इस बार आन्दोलन कोई ना कोई इतिहास जरूर लिखेगा क्यो कि चर्चा तो यहाँ तक है कि अभियन्ता संघ के महासचिव ने तो यहाँ तक कह दिया कि  मेमोरेंडम आफ आर्टिकल लागू कराए बिना इस आन्दोलन मे कोई समझौता नही करेगे भले ही जेल क्यो ना जाना पडे 

इस बार अभियन्ताओ और कर्मचारीयो के तेवर देख कर तो ऐसा लगता है जैसे सन् 2000 वाली हडताल से बढ कर यह कार्य बहिष्कार होगा और यह लड़ाई कोई इतिहास लिख कर ही खत्म होगी और यह अवैधरूप से नियुक्त बडका बाबूओ को यह कब्जाऐ हुएपद छोडने ही पडेगे बशर्ते सन् 2000 की तरह कोई जयचंद ना पैदा हो जाऐ इस बात का युवा नेतृत्व को खास ध्यान देना होगा। 

फिलहाल 29 नवम्बर की तारीख को निकले मशाल जलूस के बाद यह आदोलन क्या रंग लाएगा अब यह देखना होगा प्रबन्धन और सघर्ष समिती के बीच हो रही न्याय की लडाई मे ऊट किस करवट बैठता है यह तो आने वाला समय ही बताऐगा  कि अवैध रूप से नियुक्त वडाका बबाओ को हटाने व मेमोरेंडम आफ आर्टिकल लागू कराने मे यह आदोलनसफल होत है या जयचंद इस बार भी मलाई मारने मे सफल होग फैसला आदोलनसे होग या न्यायालय मे। 


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