खून व पसीने से कमाई गयी, आर्थिक ब्यवस्था के दान पर निर्भर है?
Raj Kumar maurya
- अलौकिक एक काल्पनिक ब्यवस्था है जिसका भरण-पोषण लौकिकता के खून व पसीने से कमाई गयी, आर्थिक ब्यवस्था के दान पर निर्भर है।
- जिस दिन लौकिकता में आर्थिक दान की जागरूकता बढ़ी, उसी दिन से अलौकिकता के पतन व देश के विकास का द्वार खुल जायेगा।
- बहुजन समाज ही अलौकिकता का पोषक है..
- ब्यवस्था जागरूकता की कमी..
जो सरकार मंदिर, पूजा, आस्था, अध्यातत्मिकता पर बल देने लगे व जनमानस इसी को देश का विकास समझने लगे, तो ऐसी ब्यवस्था का उदय होना लाजमी है।
जबकि आजादी के बाद देश में यथा शक्ती, शिक्षा, स्वास्थ्य, तकनीक, मेहनत, समानता, इत्यादि पर विशेष ध्यान दिया गया। बढ़ती अर्थ ब्यवस्था का हक सभी को न मिल सके, बाबरी मस्जिद से धार्मिक उन्माद शुरू हुआ।
अब तक बहुत कुर्बानी हो चुकी, बहुत बाकी है। आज देश को विकसित बनाने की सोच लिये, लाल किले के प्राचीर से के विचारों की परिपूर्ती के लिये, जनमानस को, जाति, धर्म, सीमा, समाज व राजनीतिक कलह से ऊपर उठ कर, मानवतावादी वसुधैवकुटूम्बकम के विचारों को अपनाना होगा। सभी समस्याओ का एक ही अस्त्र है।
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