दबंगों ने दलित महिला प्रधान को हटाने के लिए लगाए फर्जी आरोप



संवाददाता 
खनऊ। संविधान और कानून के तहत अगर महिलाओं और दलितों को आरक्षण न मिला होता तो दबंग सवर्ण किसी दलित को गांव का प्रधान तक नहीं बनने देते। 


यदि ऐसे गांव में जहां सवर्णों का वर्चस्व हो वहां की प्रधान दलित महिला हो जाए तो उसे अपने इशारे पर चलाने के लिए हर प्रकार का दबाव बनाते हैं और यदि उनकी बात न माने तो उसे फर्जी आरोप लगाकर हटाने के लिए हर प्रयास करते हैं। 


ऐसा ही एक मामला राजधानी के विकासखंड माल की ग्राम पंचायत बसंतपुर का सामने आया है जहां की प्रधान ममता कनौजिया हैं जो अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत आती हैं। 


उन्हीं के गांव के कुछ दबंगों ने एक दलित राजू रावत को मोहरा बनाकर उसके रिश्तेदार जो दूसरे विकासखंड के रहने वाले हैं उसके माध्यम से सूचना के अधिकार के तहत वित्तीय वर्ष 2021- 22 में कराए गए कार्यों एवं सरकार द्वारा प्राप्त धनराशि का विवरण मांगा, उसके बाद उसने बिना जांच पड़ताल किए दूसरों के कहने पर प्रधान पर 4 कामों को कराए बिना पैसा निकालने का आरोप लगाया परंतु उनमें से स्ट्रीट लाइट मौके पर पाई गयी और दो जगह इंटरलॉकिंग लगी थी लेकिन उनमें से एक का विवरण दूसरे गांव के स्थान से मेल खा रहा था इसलिए उसने जहां की शिकायत की वहां न होकर दूसरी जगह काम पूरा पाया गया। 


इसके अलावा एक जगह केवल सामग्री का पैसा निकाला गया जो मौके पर मौजूद है और एक जगह दूरी 174 मीटर प्रस्तावित थी परंतु वित्तीय पाबंदियों के चलते हैं कोई भी प्रधान एक बार में 5 लाख से अधिक का कार्य नहीं करा सकता इसलिए उसने पहले 100 मीटर में इंटरलॉकिंग लगवाई जो जांच में 101 मीटर पाई गई और शेष कार्य अभी होना बाकी है उसके लिए धनराशि उपलब्ध नहीं थी इसलिए उसे दोबारा कराया जाएगा  जो प्रस्तावित  है उसे पूरा कार्य मान कर शिकायत की। 


संविधान और कानून के तहत अगर महिलाओं और दलितों को आरक्षण न मिला होता तो दबंग सवर्ण किसी दलित को गांव का प्रधान तक नहीं बनने देते


इन लोगों ने पिछले 3 महीने के अंदर ही रुपए मांगने का आरोप लगाया जबकि प्रधान के खिलाफ शिकायत 4 महीने पहले की गई थी और आरटीआई के तहत जानकारी 8 महीने पहले मांगी गई थी ऐसी स्थिति में क्या कोई भी प्रधान और उसका परिवार शिकायत करता के परिवार से ही रुपए मांग सकता है इससे यह साफ पता चलता है कि द्वेष भावना की दृष्टि से झूठे आरोप लगवाए गए हैं। 
संविधान और कानून के तहत अगर महिलाओं और दलितों को आरक्षण न मिला होता तो दबंग सवर्ण किसी दलित को गांव का प्रधान तक नहीं बनने देते..
आवास के लिए शिकायत करने वाले तीन व्यक्तियों में से दो व्यक्ति शिकायत करने वाले के परिवार के ही हैं। बाकी गांव के किसी व्यक्ति ने इस तरह के आरोप नहीं लगाए हैं। 

तत्कालीन सचिव सुनील कुमार सिंह ने कहा कि किसी भी प्रकार के वित्तीय अनियमितता नहीं की गई है यदि अधिकारियों ने किसी भी व्यक्ति के दबाव में गलत नोटिस दी तो पहले उसका जवाब दिया जाएगा और फिर भी न मानने पर कानून और कोर्ट का सहारा लेंगे। जबकि ग्राम प्रधान ममता कनौजिया ने आरोपों से साफ इनकार किया और दबंगों पर दलित उत्पीड़न का आरोप लगाया।

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