देश व वचन के लिए पुत्र प्रेम त्यागने वाली "माँ" का हुआ मंचन

  • जयंती पर याद किए गए मुंशी प्रेमचंद जी..
  • सृजन शक्ति वेलफेयर सोसायटी द्वारा देश व वचन के लिए पुत्र प्रेम त्यागने वाली *माँ* का हुआ  मंचन..
  • एक सैनिक की पत्नी के बलिदान को दर्शा गया ये नाटक..

लख़नऊ. महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती व आज़ादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर उनकी लिखी प्रसिद्ध कहानी *माँ* का मंचन सृजन शक्ति वेलफ़ेयर सोसाइटी, लख़नऊ  द्वारा 35 पीएसी के हॉल में मंचन किया गया। जिसे बहुत ही मज़बूती  के साथ  दर्शको  को बांधे रखने का मार्मिक अभिनय किया  इस नाटक की मुख्य भूमिका निभा रही  रंगकर्मी डॉ सीमा मोदी ने। नाट्यलेखन के के अग्रवाल ने किया व परिकल्पना व निर्देशन डॉ सीमा मोदी का रहा। 

मुख्य अतिथि में किरण बाला चौधरी,  राज्य सूचना आयुक्त, महेंद्र मोदी, पूर्व पुलिस महानिदेशक, सुप्रसिद्ध  जल गुरु,   डॉ के0एस0 प्रताप कुमार अपर पुलिस महानिदेशक पीएसी, डॉ0 आर के स्वर्णकार, अपर पुलिस महानिदेशक उत्तर प्रदेश पुलिस प्रोन्नति भर्ती बोर्ड, डॉक्टर अखिलेश मिश्रा IAS, आनंद कुमार IAS अविनाश चंद्रा, पवन कुमार IAS , वरिष्ठ रंगकर्मी व निर्देशक  सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ, आ0समीर शेख मौजूद रहे। 




"मां" मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित एक अत्यंत मार्मिक कहानी है..




दीप प्रज्वलन के बाद मुंशी जी की फ़ोटो पर पुष्पांजलि की गई साथ ही संस्था का सुविनिओर का विमोचन किया गया "मां" मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित एक अत्यंत मार्मिक कहानी है, जिसमें अपनी देश के प्रति निष्ठा एवं स्वतंत्रता सैनानी पति को दिये गये वचन को निभाने के लिए एक भारतीय नारी अपने पुत्र प्रेम का बलिदान कर देती है..

"करुणा"( डॉ सीमा मोदी)  आज, सात वर्षों की सज़ा काट कर, अंग्रेज़ों की जेल से लौट रहे, अपने स्वतंत्रता सेनानी पति आदित्य ( नवनीत मिश्रा)  की  प्रतीक्षा कर रही है। उसकी कल्पना है कि इन्कलाब ज़िंदा बाद के नारों के बीच, भीड़ से घिरे आदित्य को अंग्रेज़ पुलिस ससम्मान घर लेकर आ रही होगी। किंतु शाम होते होते, घर पहुंचता है, तपेदिक की बीमारी से ग्रसित, जेल की यातनाओं से टूटा हुआ, अकेला आदित्य। उसके साथ न तो कोई संगी साथी है और न ही अंग्रेजी पुलिस का कोई आदमी। घर पहुंच कर आदित्य अपने पुत्र प्रकाश ( आराध्या) को भी एक वीर स्वतंत्रता सैनानी बनाने का वचन लेकर करुणा की बाहों में संसार त्याग देता है। 

बड़ा होकर प्रकाश (कबीर) यूं तो एक कुशाग्र एवं मां से स्नेह करने वाला पुत्र है किंतु देश सेवा एवं सामाजिक कार्यों में उसकी कोई रुचि नहीं है। यहां तक कि वो मां की इच्छाओं के विरुद्ध, अंग्रेज़ी सरकार के वजीफ़े पर, उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विलायत चला जाता है। पुत्र की इस अवहेलना एवं जीवन के संघर्षों से व्यथित करुणा धीरे धीरे टूटती  जाती है। 

प्रकाश को पति की आशाओं का पुत्र न बना सकने से आहत करुणा, अपने को आदित्य का दोषी मानती है एवं प्रकाश से अपने सारे संबंध तोड़ लेती है। यहां तक कि उसके द्वारा भेजे गये पत्रों को भी बिना पढ़े फाड़ कर फेंक देती है। 

पुत्र प्रेम से विचलित  करुणा, एक रात प्रकाश के फाड़े हुए पत्र को जोड़ने का प्रयास करते करते सो जाती है और स्वप्न में उसको मजिस्ट्रेट के रुप में, अंग्रेजी सरकार से विद्रोह के आरोप में अपने पिता को मृत्युदंड सुनाते हुये देखती है।

इस भयानक स्वप्न से सिंहरित करुंणा चीख कर उठ बैठती है और रात भर में जोड़े हुए पत्र को पुनः फाड़कर अपने पुत्र को "मृत्यु दण्ड " सुनाती है। 

मंच पर  कलाकार नवनीत मिश्रा ने मुख्य स्वतन्त्रता सेनानी की भूमिका निभाकर किरदार को जीवंत कर दिया , बेटे की भूमिका में छोटा प्रकाश आराध्या ,बड़ा प्रकाश अहमद रशीदी थे, घर का सेवक विनय सिंह, भिखारी  की भूमिका योगेश पाल  ने निभाई।पुलिस की भूमिका में अनन्या सिंह, सर्वेश कुमार, सनी साहनी थे वहीं  क्रांतिकारी की भूमिका विनायक तिवारी, योगेश पाल,  अभय शुक्ला, श्रुति सिंह, मुस्कान, आनन्द, अनुराग रहे।

प्रकाश परिकल्पना मनीष सैनी का  रहा व संगीत परिकल्पना व  संचालन राहुल शर्मा ने की। वेशभूषा में  अनन्या सिंह, रूप सज्जा बिमला बरनवाल , प्रस्तुति नियंत्रक सौम्या मोदी का रहा।प्रस्तुत्त कर्ता शुभम आदित्य व डॉ सीमा मोदी। सह निर्देशन नवनीत मिश्रा का रहा। सम्पूर्ण परिकल्पना व निर्देशन डॉ सीमा मोदी का रहा।

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