हमें एक दुश्मन चाहिए?

सुनीता कुमारी

हम सभी को जीवन में एक ऐसे दोस्त की जरूरत होती है जिससे हम अपनी दिल की सारी बात बेफिक्र होकर कह सके, जो हमारी मुश्किलों में हमारा साथ दे, हमारा सही मार्गदर्शन कर सके.जब भी हमें जरूरत हो वो हमारे साथ खड़ा हो। 

बहुत किश्मत वाले होते हैं वे लोग जिन्हें सच्चे दोस्त का साथ नसीब होता है। उनकी सारी मुश्किलें झट से आसान हो जाती है।दोस्तों के कारण जीवन में हंसने मुस्काराने की वजह मिलती है। 

हम मनुष्य को जिस तरह सच्चे दोस्त की अवश्यता होती है उसी तरह हमें जीवन में चंद दुश्मनों की भी अवश्यकता होती है?जिसे हम हररोज भला बुरा कह सके हर रोज उसे जी भरकर कोस सके? 

बात थोड़ी अजीब है, शायद मेरी बातों से आप सहमत न हो मगर यह बिल्कुल सत्य है, जिस तरह हमें दोस्त की अवश्यकता होती है, उसी तरह हमें दुश्मन की भी अवश्यकता होती है? 

सच्चे दोस्त हमें मुश्किल से मिलते हैं मगर हमें दुश्मन थोक के भाव में आसानी से मिल जाते है, जिन्हें हम जी भरकर कोसते रहते है, उसे भला बुरा कहते रहते है, एवं  वही  ह भविष्य में हमारे जीवन में दुख, बेचैनी और परेशानी का कारण बन जाते हैं  हमारा जीना मुश्किल हो जाता है, हम तरह तरह के उपाय ढूंढने लगते हैं। 

जब हम दोस्त बना रहे होते है तो हमें पता होता है कि, हम दोस्ती कर रहे है, मगर जब हम दुश्मन बना रहे होते हैं तो हमें आभास ही नही होता है कि, हम खुद के लिए दुख और परेशानी का कारण जमा कर रहे है?

हम हमारे जीवन में जिन्हें पसंद नही करते चाहे वह कोई रिश्तेदार हो, पड़ोसी हो, या कोई आफिस का सहकर्मी हो उसे मनुष्य स्वभाव के अनुसार देखना भी पसंद नही करते हैं.उसकी उपस्थिति हमें अच्छी नही लगती.नापसंद करने के बहुत सारी वजह भी हमें मिल जाती है यथा ---

"वो हमारी बराबरी का नही है? 

वो हमारी तरह समझदार नही है? 

उसके पास हमारे जितना धन नही है? आदि अनेक कारण होते है.क्योंकि जिन्हें हम पसंद नही करते उनकी कोई भी बात हमें अच्छी नही लगती.

उनकी हर गतिविधि में हमें खामी नजर आती है.

जिस कारण किसी भी मौके पर हम उनसे तल्खी से बात करते हैं, मौका मिलते ही उसपर तंज कसते है, 

उन्हे उनकी कमजोरी गिनाते है? 

बदले में हमें  उनसे वही सब मिलता है  जो हम उन्हें देते हैं? और फिर वह व्यक्ति हमारे दुख का सबसे बड़ा कारण बन जाता है? 

घर परिवार, देश, समाज हर जगह यही बात लागू होती है। इसी भावना के कारण परिवार में, दस लोग हो तब भी झगड़े होते हैं, चार लोग हो तब भी झगड़े होते हैं. मुर्ख लोगों की बस्ती हो तो लाठी डंडे से झगड़ते है, पढ़े लिखों की बस्ती हो तो शीतयुद्ध चलता है, बाकी दो समुदाय देशों, दो धर्म, दो देश की लड़ाई तो जगजाहिर हैं। 

बहुत सारे लोग हमारे जीवन में वैसे भी होते है जो हमें जानबूझकर कर भी परेशान करते है क्योंकि वो हमें पसंद नही करते, और हम काफी लम्बे समय तक उनके कुदृष्टि के शिकार होकर परेशान होते रहते हैं.जीवन में सुख और शांति के लिए जरुरी है कि, हम न तो वैसे शिकारी बने जो अपने अंहकार को पोषित करने के लिए दुश्मन की फौज खड़ी कर ले, और न ही कमजोर और दब्बू बने जिससेे लोगों के गलत नियत के शिकार बन जाए।

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