नारी की व्यथा

 कविता   


 
नूतन राय मुंबई महाराष्ट्र

युग बदला पर ना बदली,

 नारी की करुण कहानी।

 आंचल में  ममता है और ,

आंखों में नींद का पानी ।।


पीरअजब सी उठती मन में, किसने ये रीत बनाई ।

ससुराल मायका दोनों में,

क्यों?  कहते लोग पराई।।


मां बाप के मान पर आँच  ना आए,

 चुपचाप ये दुःख सहती है ।

 दहेज लोभीयों के घर में, अक्सर जिंदा  जलती है ।।


नारी के बिना नहीं हो सकता, सृजन जगत का।

 क्यों? इस जग में,

 आधा-आधा  है अस्तित्व उसी का।।


 कहीं पराए घर से आई

कहीं पराया धन कहते।

जीवन अक्सर बीते उसका,  दुःख दर्द और ताने सहते।

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