आखिर कब तक स्त्रियां होती रहेंगी लांछित?
- सीमा मोदी उर्फ देवी रानी पर लगा लाँछन
- कब तक स्त्रियां होती रहेंगी लांछित? इसलिए..
- नारी का करना सम्मान तभी बनेगा देश महान..
- जो करे अपमान, वो पुरुष है पशु समान..
प्रियंका सिंह
लखनऊ। ऊर्जा से भरपूर उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के सहयोग से आयोजित सृजन शक्ति वेलफेयर सोसायटी द्वारा महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद जी की लिखी कहानी लाँछन की नाट्यप्रस्तुति उर्दू अकादमी में हुआ। सम्पूर्ण परिकल्पना एवं निर्देशन डॉ सीमा मोदी का रहा, मंच प्रस्तुतिकरण परिकल्पना आकाश पांडेय ने की।
मुख्य अतिथि जितेंद्र कुमार आईएएस, विशिष्ट अतिथि लल्लन राय (आईजी से नि), पवन कुमार (आईएएस) हरि (आईएएस), चौधरी कैफुलवारा (चैयरमैन उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी, मोहम्मद कलीम, सचिव उर्दू अकादमी एस रिज़वान, पूर्व सचिव उर्दू अकादमी सचिव, बी अन ओझा, अध्यक्ष, सृजन शक्ति वेलफेयर सोसाइटी), शिव कुमार, तनुज जी सीनियर टीचर आर्ट ऑफ लिविंग, डॉ सचान के मौजूद रहे। पूरा कार्यक्रम आर्ट ऑफ लिविंग के सुप्रसिद्ध ऋषि नित्यप्रज्ञा को समर्पित रहा। पुराने जमाने से ही स्त्री को रौंदा जाता रहा है उसके व्यवहार पर प्रश्नचिन्ह लगाए जाते रहे है। स्त्री कैसे उन परिस्थितियों से संभालने और सुलझाने की कोशिश करती है इन सब बातों पर केंद्रित है नाटक लांछन।
महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद ने अनेक कालजयी कृतियों की रचना की है। उन्हें आमजन विशेषकर मध्यम वर्ग से विशेष प्रेम था उन्हें यह भली-भांति ज्ञात था के भारत के असली आत्मा उसके मध्यम वर्ग में ही बसती है मध्य समाज का इतना जीवंत व सजीव चित्रण करते थे वैसा कम ही देखने को मिलता है कहानी लांछन , मध्यम वर्ग की तमाम विशेष दुख प्रेम लड़ाई इत्यादि को समेटे एक विशिष्ट कृति है।
इस कहानी के मुख्य पात्र श्याम किशोर एवं देवी रानी है , ।जिसे वरिस्ठ रंगकर्मी आकाश पांडेय व डॉ सीमा मोदी ने सजीव प्रस्तुति देकर दर्शकों की आँखे नम कर दी। श्याम किशोर अपनी पत्नी देवी रानीऔर बेटी शारदा के साथ एक किराए के मकान में रहते हैं उनकी पत्नी देवी एक मध्यमवर्गीय आम गृहणी है जो पूरे परिवार को संभालती हैं एवं श्याम बाबू का पूरा ख्याल रखती है। देवी सुंदर होने के साथ मिलनसार एवं सामाजिक है घर में काम करने वाले और नौकरों एवं पड़ोसियों से भी उसका व्यवहार अच्छा है । मुन्नु मेहतर है और पूरे मोहल्ले के सभी घरों में साफ-सफाई का काम करता है।
वह स्वभाव का चंचल है एवं हर किसी से अपना दुख रोने लगता है। उसका एकमात्र उद्देश्य लोगों से सहानुभूति प्राप्त करना, उनसे कुछ पैसे, खाना-पीना लेना होता है। वो दिल का बुरा नहीं है और किसी का भी बुरा नहीं सोचता है। एक किरदार रज़ा मिया का है और जूते की दुकान है अच्छा परिवार है और शारदा को बहुत प्यार करते हैं बिल्कुल अपने बेटी की तरह मानते हैं शारदा भी उनसे काफी हिली मिली है जो कि हमसे प्यार करती हो, उन्हें राजा भैया बुलाती है एक दिन रजा शारदा के लिए मुन्नू के हाथ से खिलाना भिजवा देते हैं।
यह बात श्याम बाबू को पता चल जाता और उन्हें बेहद नागवार गुजरती है वह गुस्से से आगबबूला हो जाते हैं उसके लिए वह अपनी पत्नी को दोषी मानते हुए उस पर शक करने लगते हैं और दोनों इसी बात को लेकर तकरार हो जाती है। बात मारपीट तक जा पहुंची है उन्हीं दिनों तक एक दुर्घटना मे शारदा की मृत्यु हो जाती है। लेकिन श्याम बाबू के उपर इस घटना से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है।
रज़ा मियां के मातम कुर्सी के लिए घर आने पर वह भड़क जाते हैं और देवी से मारपीट करते हैं तब मजबूर होकर वो एक रात घर से निकल जाती है। फिर भी उसे श्याम बाबू की चिंता लगी रहती है। इधर जब श्याम बाबू घर लौटते हैं तो देखते हैं कि घर का दरवाजा खुला है और देवी कहीं चली गई है। श्याम बाबू को अपनी ग़लती का एहसास होता है और देवी रानी को खोजते हुए उसके पास पहुंचते है ओर माफी ममाँगते है।
मुख्य किरदार में आकाश पांडेय श्याम बाबू के रोल में डॉ सीमा मोदी, देवी रानी ने किरदार को जीवंत किया, साथ ही धुन मिश्रा बच्ची बनी, सूत्रधार अमरेंद्र, मुन्नु, अतुल पटवा, पंडित आनन्द चतुर्वेदी ने किरदार को ने बखूबी निभाया, रज़ा मियां मोनिस सिद्दीकी, दरोगा अभिनव सिंह, पड़ोसी, योगेश, प्रज्ञा, रजनीकांत, श्रुति, आरती ने निभाया। प्रकाश संचालन राज ने किया संगीत संचालन रजत, वेशभूषा विमला बरनवाल, निर्मला बरनवाल, मंच व्यवस्था नवनीत मिश्रा, शुभम शुक्ला, प्रस्तुति नियंत्रक सौम्या मोदी का रहा।
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