एक सोनारी के मकड़जाल में फंसे तीन अनाड़ी





बीकेटी विधानसभा का चुनावी हाल

विशेष संवाददाता

लखनऊ। बीकेटी विधानसभा में इस बार तीन अनाड़ी एक सोनारी के जाल में फंस गए हैं। अब देखना है कि अनाड़ी किस तरह सोनारी को मात दे पाते हैं या फिर एक बार फिर सोनारी तीनों को चुनावी दांव पेच में फसा लेगा। 

2007 में बसपा की लहर में नकुल दुबे को छोड़ दिया जाए तो 1991 से एक बार बीजेपी और दूसरी बार सपा का प्रत्याशी जीता चला रहा है इस बार भी कुछ ऐसे ही आसार लग रहे हैं क्योंकि पूर्व विधायक रामपाल त्रिवेदी के पुत्र अविनाश त्रिवेदी को बीजेपी ने पिछली बार टिकट दिया और वह चुनाव जीतकर विधायक बन गए लेकिन काफी काम कराने के बावजूद बीजेपी ने उनका टिकट काटकर क्षेत्र के एक पूर्व प्रधान और एक वरिष्ठ पत्रकार के भाई योगेश शुक्ला को पहली बार चुनाव मैदान में उतारा है इसी तरह बसपा ने पूर्व में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री रहे क्षेत्र के ही सलाउद्दीन सिद्दीकी को पहली बार चुनाव मैदान में उतारा है। 

कांग्रेस पार्टी की बात की जाए तो उसने करीब पिछले 2 साल से क्षेत्र में काम करने वाले ललन कुमार को चुनाव मैदान में उतारा है उनके क्रियाकलापों से पार्टी के ही कार्यकर्ता संतुष्ट नहीं हैं क्योंकि उन्होंने हमेशा संगठन से अलग हटकर बाहर से हायर किए गए लोगों कोही बढ़ावा दिया। इसके अलावा भाजपा से पहली बार 1991 में विधानसभा का चुनाव जीते गोमती यादव दोबारा 1996 में पुनः बीजेपी से ही विधायक बने और उसके बाद उन्होंने 2012 में भाजपा छोड़कर सपा की सदस्यता ले ली और इसी क्षेत्र से सपा के टिकट पर चुनाव जीत गए लेकिन 2017 में भाजपा की लहर में चुनाव हार गए उस समय यह तीसरे स्थान पर थे।

सपा ने इन पर एक बार फिर पर भरोसा कर मैदान में उतारा है। क्षेत्र के समीकरणों की बात की जाए तो जिस तरह से भाजपा सपा और कांग्रेस ने टिकट मांगने वालों को दरकिनार कर नए प्रत्याशियों को उतारा है उससे जहां पुराने ट्रैक्टर थी अंदर ही अंदर अपनी खुन्नस निकाल रहे हैं वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के गोमती यादव इसका लाभ उठाने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं। लोगों का मानना है कि अविनाश त्रिवेदी का टिकट कटने से भाजपा के कुछ कार्यकर्ताओं में नाराजगी है इसी तरह बसपा की सरकार ना बनते देख बसपा के कार्यकर्ता भी इधर-उधर भटक रहे हैं जिसमें सबसे अधिक सपा की ओर जाते हुए बताए जा रहे हैं। 

यह सीट पहले महोना के नाम से थी लेकिन पिछले परिसीमन के समय जिले में 8 की जगह जब 9 विधानसभा सीटें बनी तब मोहना विधानसभा को समाप्त  कर नई विधानसभा बीकेटी और उत्तर बना दी गई इसलिए यदि पिछले चुनाव की बात की जाए तो 1974 के बाद यहां लगातार कोई भी विधायक नहीं जीत सका या पार्टी ने उसे टिकट ही नहीं दिया। पिछले समीकरणों को देखने से ऐसा लग रहा है कि इस बार भी पिछला इतिहास दोहराया जाएगा

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