सिक्किम में बौद्ध भिक्षुओं को करमापा कहा जाता?
- बहुजन संघर्ष से उपजी उपलब्धियों को हथियाने के लिए
- समाज तरह-तरह से धार्मिक व राजनीतिक षड्यंत्र
?गुरु गोरखनाथजी बौद्ध बौद्ध परंपरा के बहुजन दार्शनिक गुरु मत्स्येन्द्र नाथ के शिष्य थे। गोरखनाथ के शिष्य भैरो नाथ थे जिनकी लड़ाई हिंदू वैष्णो देवी से हुआ था और वह इस लड़ाई में शहीद हुये।
अब गोरखनाथ मठ पर योगी का कब्जा है। गुरु मत्येंद्र नाथ का संबन्ध मछुआरा समुदाय से है। अगर देखा जाये तो चौरासी सिद्धों में कालपा लुहार जाति से थे, चमरिपा चमार जाति से थे, धोमिप्पा धोबी जाति से थे।
सिक्किम में बौद्ध भिक्षुओं को करमापा कहा जाता है और सिद्ध सन्तों के नाम में "पा" अक्षर जुड़ा हुआ है। गुरु गोरखनाथ के नाम से नेपाल में गोरखा समुदाय के लोग हैं जिनके नाम पर गोरखा रेजिमेंट बना है। गोरखपुर नेपाल से सटा हुआ जिला है।
नाथ समुदाय के जोगी बहुजन समुदाय से ही होते हैं। उत्तर भारत में इसी समुदाय से जोगी बने लोग हाथ में सारंगी लेकर गाँव-गाँव गुरु मत्येंद्र नाथ और गुरु गोरखनाथ के दर्शन को अपने लोक गीतों के माध्यम से लोगों को समझाते व बताते थे। जिसमें राजा भृतहरि का नाम अक्सर आता है। यह जोगी अब कम संख्या में दिखाई देते हैं। लेकिन सवर्णों में इनकी कोई विसात नहीं है इसीलिए नाथपंथी जोगी बहुजनों की ही बस्तियों में भिक्षाटन के लिए जाते रहे हैं।
बहुजन दर्शन का इतिहास आजीवक,जैन, बौद्ध, सिद्ध, नाथ, सतगुरु रविदास, सतगुरु कबीर, फुले, पेरियार, बाबा साहब और कांशीराम आदि तक यह आंदोलन आज भी गतिमान है। जिस तरह से बहुत से बुद्ध विहारों पर सवर्ण समुदाय का कब्जा है और कुछ जगह बुद्ध की मूर्ति को देवी देवता बनाकर प्रचारित किया जाता रहा है।
बहुजन संघर्ष से उपजी उपलब्धियों को हथियाने के लिए सवर्ण समाज तरह-तरह से धार्मिक व राजनीतिक षड्यंत्र करता रहा है।
योगी आदित्यनाथ बौद्ध भिक्खू अथवा हिंदू साधू
योगी आदित्यनाथ जी "गुरु गोरखनाथ मठ" के महंत हैं। गुरु गोरखनाथ बौद्ध धम्म की तंत्रयान शाखा के प्रमुख आचार्य थे। उनकी महानता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनके नाम पर जिले का नाम गोरखपुर रखा गया।
गुरु गोरखनाथ का मठ वस्तुतः एक बुद्ध विहार है। मठ में बुद्ध मूर्ति आज भी देखी जा सकती है।
चित्र सं. 1
इसके अतिरिक्त गर्भ गृह में बुद्ध विरासत भरी पड़ी है।
बौद्ध भिक्खू और हिंदू साधू में अंतर
बौद्ध भिक्खू-
- सिर पर बाल नहीं रखते हैं।
- दाढ़ी और मूंछ नहीं रखते हैं।
- गले में माला धारण नहीं करते हैं।
- ललाट (माथे) पर चंदन ,भस्म आदि का लेप/ तिलक नहीं लगाते हैं।
हिंदू साधु-
- सिर पर बड़े-बड़े बाल/जटाएं होती हैं।
- दाढ़ी और मूंछ बड़े- बड़े होते हैं।
- गले में रुद्राक्ष की मालाएं होती हैं।
- माथे/ललाट पर चंदन /भस्म की तिलक & लेप लगा होता है।
- योगी आदित्यनाथ का लक्षण बौद्ध भिक्खू से क्यों मिलता है?
क्योंकि योगी आदित्यनाथ कोई और नहीं बल्कि बौद्ध भिक्खू ही है?
आप सोच रहे होंगे कि योगी आदित्यनाथ बौद्ध भिक्खू होने के बाद भी ब्राह्मणवादी व्यवस्था का पोषक क्यों है?युद्ध शास्त्र का एक सिद्धांत है की जब दुश्मन इतना ताकतवर हो जिसे आमने-सामने के युद्ध में परास्त ना किया जा सके तो घुसपैठ करके आसानी से खत्म किया जा सकता है।
योगी आदित्यनाथ को जब अरबों खरबों में विदेशी फंडिंग लेनी होती है तो बौद्ध राष्ट्रों में जाकर प्रबोधन करता है कि बुद्ध के बताए हुए "आर्य अष्टांगिक मार्ग" पर चलकर ही विश्व का कल्याण हो सकता है। यह बोलकर अकूत संपत्ति भारत में लाया जाता है और फिर ब्राह्मणवादी व्यवस्था को मजबूत किया जाता है।
- ब्राह्मणवादी लोगों की घुसपैठिया नीति आज की नई नीति नहीं है।
- सिंधु घाटी सभ्यता में घुसपैठ कर उसे खत्म किया।
- मौर्य साम्राज्य में घुसपैठ कर उसका विनाश किया।
- बौद्ध धम्म में घुसपैठ कर संघ का विनाश किया।
- संतों गुरुओं महापुरुषों के द्वारा चलाए गए आंदोलन में घुसपैठ कर मुक्ति आंदोलन को भक्ति आंदोलन में परिवर्तित करके विनाश किया।
- फुले, शाहू, अंबेडकरी आंदोलन को महापुरुषों के मृत्यु के उपरांत घुसपैठ की नीति अपनाकर खत्म किया ।
- मा. कांशी राम साहब के विशालकाय आंदोलन को खत्म करने के अनेकों प्रयास फेल हो जाने पर घुसपैठ की नीति अपनाई और मा० साहब के प्रत्येक कैडर्स को बाहर निकाला गया।
- आंदोलन की विचारधारा और उद्देश्य की हत्या कर दी गई।
- विचारधारा/ उद्देश्य किसी भी आंदोलन का प्राण तत्व होता है।
विचारधारा का उद्देश्य हीन आंदोलन मुर्दे के समान होता है। जिसका अस्तित्व तो होता है परंतु परिवर्तन करने में असमर्थ हो जाता है। सनद रहे -जब 85% का व्यक्ति 15% के खेमे में जाता है तो वह अपने निजी स्वार्थ को साधने हेतु जाता है। अपने ही समाज का विनाश जितना करेगा उसी अनुपात में उसका स्वार्थ सिद्धि होगा। 15 % का व्यक्ति 85%के खेमे में बहुत ही गहरी साजिश के तहत आता है। वह अपना निजी स्वार्थ तो सिद्ध करता ही है। अपने समाज का भी हित साधता है। आपके आंदोलन को तहस-नहस करता है।
किसी पार्टी/ संगठन के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाना हमारा उद्देश्य नहीं है। बल्कि आपको सतर्क करना मैं अपना फर्ज समझता हूं। "नाथ सम्प्रदाय की हत्या: एक मठ और तीन महंत; नाथ सम्प्रदाय से आधुनिक साम्प्रदायिकता तक की संक्षिप्त कथा" नाथ सम्प्रदाय की मठ परंपरा के संस्थापक गोरखनाथ माने जाते हैं. गोरखनाथ के गुरु थे मत्स्येंद्रनाथ जिनका संबंध मत्स्यि यानी मछुआरों से था. गोरखनाथ का इतिहास देखेंगे तो इतना घपला मिलेगा कि आप दंग रह जाएंगे. उनके जन्म के बारे में तमाम कथाएं है जिनमें यह तय करना मुश्किल है कि कौन सी वाली सही है. जो सबसे प्रचलित कथा है, उसके अनुसार उनका जन्म मत्स्येंद्रनाथ की कृपा से हुआ था. मत्स्येन्द्रनाथ ने एक निःसन्तान महिला को बच्चा होने के लिए भभूति दी.
महिला ने भभूति गोबर के ढेर पर डाल दी और चलती बनी. 12 वर्ष बाद मत्स्येन्द्रनाथ को वो महिला मिल गई. बाबा ने उससे उसकी संतान के बारे में पूछा. झेंपकर उसने गोबर वाली बात बताई. मत्स्येन्द्रनाथ झल्ला उठे. उन्होंने गोबर के ढेर के पास आवाज़ लगाई और वहां से एक 12 वर्ष का लड़का सामने आया. मत्स्येन्द्रनाथ ने इस लड़के का नाम रखा गोरखनाथ. इन्हीं महंत गोरखनाथ के नाम पर गोरखपुर को उसका नाम मिला. इन्ही के नाम पर गोरखनाथ मठ की स्थापना हुई. इन्हीं के चेले थे राजा गोपीचंद और भर्तृहरि. जोगियों के अनुसार गोपीचंद ने सारंगी का अविष्कार किया तथा राजा भर्तृहरि वो व्यक्ति थे जिन्होंने गोरखनाथ के प्रभाव से राजपाठ छोड़ दिया. जोगी आज भी अपने गीतों में इनका उल्लेख करते हैं.
यहां यह ध्यान देने योग्य है कि गोरखनाथ के जन्म और जाति को छिपाया गया है और कबीरओर रैदास की तरह इन पर भी परोक्ष रूप से ब्राह्मणी की कोख से जन्म वाली कथा रैदास जी को पिछले जन्म में ब्राह्मण था ऐसा थोपने की फ़िज़ूल कोशिश की गई है. दूसरी बात जो सबसे अहम है- गोरखनाथ ने ब्राह्मणवाद, बौद्ध परम्परा में अतिभोगवाद व सहजयान में आई विकृतियों के खिलाफ विद्रोह किया. हिंदू-मुसलमान एकता की नींव रखी और ऊंच-नीच, भेदभाव, आडम्बरों का विरोध किया. यही कारण है कि नाथ सम्प्रदाय में बड़ी संख्या में सनातन धर्म से अलगाव की शिकार अस्पृश्य जातियां इसमें शामिल हुईं.
नाथपंथियों में वर्णाश्रम व्यवस्था से विद्रोह करने वाले सबसे अधिक थे. हिंदू और मुसलमान दोनों धर्मों के लोग बल्कि कहीं-कहीं तो मुसलमान बड़ी संख्या में नाथ संप्रदाय में शामिल हुए. गोरखनाथ का प्रभाव कबीर, दादू , जायसी और मुल्ला दाऊद जैसे अस्पृश्य जातीय और गैर-हिन्दू कवियों पर भी माना जाता है. इससे इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि गोरखनाथ और उनके गुरु किसी ऊंची जाति से तो कतई नहीं थे.
तीसरी अहम बात. गोरखनाथ के बाद आप उनके उत्तराधिकारियों श्री वरद्नाथ तत्पश्चात परमेश्वर नाथ एवं गोरखनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करने वालों में प्रमुख बुद्ध नाथ जी (1708-1723 ई), बाबा रामचंद्र नाथ जी, महंत पियार नाथ जी, बाबा बालक नाथ जी, योगी मनसा नाथ जी, संतोष नाथ जी महाराज, मेहर नाथ जी महाराज, दिलावर नाथ जी, बाबा सुन्दर नाथ जी, सिद्ध पुरुष योगिराज गंभीर नाथ जी, बाबा ब्रह्म नाथ जी महाराज तक के इतिहास में कुछ खास नहीं मिलेगा. ये कौन थे, किस पृष्ठभूमि से थे इसके बारे में आज पता लगाना मुश्किल है.
अब आते हैं अंतिम बात पर. आपको अचानक से गोरखपुर मठ का इतिहास राजस्थान के ठाकुर नान्हू सिंह यानी दिग्विजयनाथ से मिलना शुरू हो जाएगा. यह हिन्दू महासभा के सदस्य थे. इस महंत के मठ प्रमुख बनने के बाद मुस्लिम और अस्पृश्य जाति के जोगियों की संख्या में गिरावट आने लगी. दिग्विजयनाथ के बाद एक दूसरा ठाकुर अवैद्यनाथ यानी कृपाल सिंह बिष्ट (पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड) बनता है. इनके बाद तीसरा ठाकुर आदित्यनाथ यानी अजय सिंह बिष्ट (पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड) मठ प्रमुख बनता है. पौड़ी गढ़वाल के इन दोनों ठाकुरों का क्या रिश्ता है किसी को नहीं पता. इन तीनों ठाकुरो के आने के बाद 3 बातें देखने को मिलती हैं –
- मुस्लिम और अस्पृश्य जाति के जोगियों का सफाया हो जाता है.
- क्रमशः एक ही जाति (ठाकुर) के मठ प्रमुख बनने की परंपरा कायम होती है.
- नाथ सम्प्रदाय गोपीनाथ और भर्तृहरि के गीत गाना को प्रायः छोड़कर, हिन्दू मुस्लिम एकता, ऊंच नीच, आडंबरों का विरोध छोड़कर, क्षत्रिय राम की बात करने वाला कट्टर हिन्दू सम्प्रदाय बन जाता है.
जार्ज वेस्टन ब्रिग्स की पुस्तक ‘गोरखनाथ एंड दि कनफटा योगीज’ में उल्लिखित 1891 की जनसंख्या रिपोर्ट और इसी वर्ष की पंजाब की जनसंख्या रिपोर्ट के अनुसार 28,816 गोरखनाथी और 78,387 योगी में 38,137 मुसलमान योगी थे. आज हालत ये है कि उत्तर भारत , खासकर पूर्वांचल से उनका पूरी तरह सफाया हो गया है.
गोरखपुर में जो बचे खुचे मुसलमान जोगी थे वो हिन्दू युवा वाहिनी के डर से भगवा वस्त्र पहनना और सारंगी बजा कर गीत गाना छोड़ चुके हैं. इस तरह एक सामंती जाति के मठाधीशों ने, नाथ सम्प्रदाय की हत्या कर दी. उसे उसके असल वारिसों से छीन लिया. नाथ सम्प्रदाय की हत्या के बाद, साम्प्रदायिकता का नया युग: आपने पढ़ा कि किस तरह गोरखनाथ मठ के तीन ठाकुरों क्रमशः दिग्विजयनाथ (नान्हू सिंह), अवैद्यनाथ (कृपाल सिंह बिष्ट) और आदित्यनाथ (अजय सिंह बिष्ट) ने नाथ सम्प्रदाय की हत्या की और उसे कट्टर हिंदुत्व का रंग दिया.
अब हम देखेंगे कि किस तरह इन्होंने साम्प्रदायिकता को जन्म दिया जिसका परिणाम यह रहा कि आज़ादी के बाद भारत हिन्दू-मुसलमान जंग का मैदान बन गया! इसकी शुरुआत होती है राजस्थान के राजपूत महंत दिग्विजय नाथ (नान्हू सिंह) से. गोरखनाथ मठ से राजनीति में भाग लेने वाला यह पहला महंत था. अपने शुरूआती दिनों में यह कांग्रेस में था लेकिन असहयोग आंदोलन की समाप्ति के बाद इसने हिन्दू महासभा का दामन थाम लिया. इसे 1935 में गोरखनाथ मठ का महंत बनाया गया. उसके बाद इसने 1935 से 1969 तक उत्तर भारत में भयानक स्तर पर साम्प्रदायिकता फैलाई और "हिन्दू बनाम मुस्लिम" के विवाद को जन्म दिया.
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि नान्हू सिंह से दिग्विजयनाथ बना ये व्यक्ति, राम मंदिर की संकल्पना को जन्म देने वाला पहला व्यक्ति था. उससे पहले किसी ने भी राम मंदिर की संकल्पना प्रस्तुत नहीं की थी. उसने हिन्दू-मुस्लिम की खूनी और साम्प्रदायिक राजनीति में अपना भविष्य काफी पहले देख लिया था. इसी का परिणाम था कि उसने अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर होने का दावा किया. यह हैरतअंगेज होने के साथ-साथ हास्यास्पद भी था. शुरुआती दिनों में इसे किसी ने गंभीरता से नहीं लिया था.
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