विधायक पीतमराम की छवि को भुनाने में लगी सपा

भाजपा की किलेबंदी और  बसपा की  सेंधमारी 

मुरारी श्रीवास्तव

पूरनपुर, पीलीभीत. तो क्या मुकाबला  भाजपा और सपा के बीच तय माना जाये? अगर यह चर्चा सही है कि व्यापारी और उलमा सपा के मंच पर हैं तो बिखरे मुस्लिम  बोटों को समेटने  में  सपा की बढ़ रही चिंता समाप्त हो जायेगी। बैसे भी मुस्लिम मतदाताओं का पूरा रुझान सपा की घण्टी बजाने में है। 

वहीं दूसरी तरफ व्यापारी वर्ग अपने हितों की सुरक्षा के प्रति पहले से ही चिंतित था। व्यापारी असमंजस की स्थिति में है कि काफिले का रुख किधर मोड़ा जाये।अगर परिस्थितियों का सही अबलोकन किया जाये तो यैसा प्रतीत होता है कि व्यापारी सपा में ज्यादा सुरक्षित महसूस कर  रहा है।

भाजपा की किलेबंदी और बसपा की सेंधमारी  के बीच सपा हमेशा कबूतर की तरह ऊंचाई पर बैठकर दाने पर नजर रखे हुए है। इसमें भी शक नही है कि भाजपा आइडियोलॉजी वोट सदैव संगठित रहा है। परंतु सपा की विभिन्न तरीकों से घर घर पहुंचने की रणनीति व गरीबों के उत्थान के प्रति उसकी सजगता उसे और भी मजबूती प्रदान कर रही है। 

जहां तक वोटों पर  प्रत्याशिओ  पर व्यक्तिगत पकड़ की बात की जाये तो  तो कहना बहुत मुश्किल होगा कि भाजपा सपा बसपा का कोई भी प्रत्याशी यैसा नही है जो अपनी छवि, शख्सियत जनप्रिय होने का खिताब लेकर चुनाव लड़ रहा हो। लेकिन  व्यक्तिगत पकड़ रखने बाले तजुर्वेकार सपा के पूर्व विधायक पीतम राम को यह महारथ जरूर हासिल थी। उनके न होने पर उनकी बहू आरती महेंद्र  पूरनपुर विधानसभा छेत्र से सपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में है और पूरी दम खम से चुनाव लड़ रही है। 

यहाँ के लोगों की मानें तो अगर पूर्व विधायक पीतमराम होते तो सपा प्रत्याशी को इतनी मशक्कत नही करनी पड़ती और हो न हो यह चुनाव एकतरफा भी हो सकता था ।फिलहाल इस समय सपा, बसपा व भाजपा  के प्रत्याशियों के बीच त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बनी हुई है और सभी प्रत्याशी भीतरघात व  जनता के भारी विरोध से जूझ रहे हैं।

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