हमारे कर्म ही हमारा जीवन निधारित करते है
स्नेहा दुधरेजीया
पोरबंदर गुजरात। अक्सर समाज हमारे समाज में कहा सुना जाता है कि, पूर्वजन्म जैसी कोई बात नही होती है सब मनगढंत है? फिर एक सवाल सामने आता है कि, अगर ऐसा नही है तो,लोगो की जिंदगी अलग-अलग क्यों है?
किसी इंसान के पास धन दौलत ऐशो आराम सब है, यदि नही भी है तो मेहनत करके हासिल कर लेता है।वही कुछ इंसान धनवान से निर्धन बन जाते है ऐसा क्यों?
किसी के पास श्रवण जैसा पुत्र होता है तो किसी के पास कंस के जैसा क्यों??
इस बात के लिए निश्चय ही हमारे कर्म जिम्मेदार होते है।बस हमें पता ही नही होता कि, हमने गलती कहा की?
पता भी होता है तो भी उसकी अनदेखी करते है।जिस तरह हवा दिखाई नही देती उसी तरह हमारे कर्म और हमारे ईश्वर हमें दिखाई नही देते है।
धरती पर हवा की तरह हमारे अच्छे बुरे कर्म भी है और पुनर्जन्म का फल भी है। जिसका भागीदार हर किसी को बनना पड़ता है।
जीवन में सारे सुख और सारे दुख हमें हमारे कर्म से ही मिलते है।जन्मों के कर्मों से ही हमें इस जन्म में माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका, मित्र-शत्रु, सगे-सम्बन्धी इत्यादि संसार के जितने भी रिश्ते नाते हैं, सब मिलते हैं। क्योंकि इन सबको हमें या तो कुछ देना होता है या इनसे कुछ लेना होता है।
वैसे ही संतान के रूप में हमारा कोई पूर्वजन्म का 'सम्बन्धी' ही आकर जन्म लेता है। जिसे शास्त्रों में चार प्रकार से बताया गया है जिसमेपहला ऋणानुबन्ध पुत्र:- पूर्व जन्म का कोई ऐसा जीव जिससे आपने ऋण लिया हो या उसका किसी भी प्रकार से धन नष्ट किया हो, वह आपके घर में संतान बनकर जन्म लेगा और आपका धन बीमारी में या व्यर्थ के कार्यों में तब तक नष्ट करेगा, जब तक उसका हिसाब पूरा ना हो जाये।
(2)दुसरा शत्रु पुत्र - पूर्व जन्म का कोई दुश्मन आपसे बदला लेने के लिये आपके घर में संतान बनकर आयेगा और बड़ा होने पर माता-पिता से मारपीट, झगड़ा या उन्हें सारी जिन्दगी किसी न किसी प्रकार से सताता ही रहेगा। हमेशा कड़वे बोल बोलकर उनकी बेइज्जती करेगा व उन्हें दुःखी रखकर खुश होता रहेगा।
(3)तीसरा उदासीन पुत्र-इस प्रकार की संतान ना तो माता-पिता की सेवा करते है और ना ही कोई सुख देता है। बस, उनको उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ देता है। विवाह होने पर यह माता-पिता से अलग हो जाते हैं।
(4)चौथा सेवक पुत्र- पूर्व जन्म में यदि आपने किसी की खूब सेवा की है तो वह अपनी की हुई सेवा का ऋण उतारने के लिए आपका पुत्र या पुत्री बनकर आता है, और आपकी सेवा करता है। जो बोया है, वही तो काटोगे। अपने माँ-बाप की सेवा की है तो ही आपकी औलाद बुढ़ापे में आपकी सेवा करेगी, वर्ना कोई पानी पिलाने वाला भी पास नहीं होगा। आप यह ना समझें कि यह सब बातें केवल मनुष्य पर ही लागू होती हैं। इन चार प्रकार में कोई सा भी जीव आ सकता है। जैसे आपने किसी गाय कि निःस्वार्थ भाव से सेवा की है तो वह भी पुत्र या पुत्री बनकर आ सकती है।
यदि आपने गाय को स्वार्थ वश पालकर उसको दूध देना बंद करने के पश्चात घर से निकाल दिया तो वह ऋणानुबन्ध पुत्र या पुत्री बनकर जन्म लेगी। यदि आपने किसी निरपराध जीव को सताया है तो वह आपके जीवन में शत्रु बनकर आयेगा और आपसे बदला लेगा। इसलिये जीवन में कभी किसी का बुरा ना करें। क्योंकि प्रकृति का नियम है कि, आप जो भी करोगे, उसे वह आपको इस जन्म में या अगले जन्म में सौ गुना वापिस करके देगी। यदि आपने किसी को एक रुपया दिया है तो समझो आपके खाते में सौ रुपये जमा हो गये हैं। यदि आपने किसी का एक रुपया छीना है तो समझो आपकी जमा राशि से सौ रुपये निकल जाएगा। जरा सोचिये, "आप कौन सा धन साथ लेकर आये थे और कितना साथ लेकर जाओगे?
इतिहास उठाकर देख लो जो चले गये, वो कितना सोना-चाँदी साथ ले गये ? मरने पर जो सोना-चाँदी, धन-दौलत बैंक में पड़ा रह गया, समझो वो व्यर्थ ही कमाया। औलाद अगर अच्छी और लायक है तो उसके लिए कुछ भी छोड़कर जाने की जरुरत नहीं है, खुद ही खा-कमा लेगा और औलाद अगर बिगड़ी या नालायक है तो उसके लिए जितना मर्जी धन छोड़कर जाओ, वह कुछ दिनों में सब बरबाद करके ही चैन से बैठेगा।"
मैं, मेरा, तेरा और सारा धन यहीं का यहीं धरा रह जायेगा, कुछ भी साथ नहीं जायेगा। साथ यदि कुछ जायेगा भी तो सिर्फ आपके कर्म ही साथ जायेंगे। इस लिए मनुष्य को यह एक बात बड़ी ध्यान रखनी है अपना मनुष्य जीवन सार्थक करके जीवन भवसागर पार करना है। और परमात्मा परमेश्वर भगवंत के धाम में उनके श्री चरणों में अपना स्थान बनाना है, और मोक्ष प्राप्त करना है अगर आपको मोक्ष प्राप्त हुआ तो समझो आपके पहले आपके पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होगा क्योंकि आप उनके ऋणी है, आपके माता पिता पूर्वज ही नहीं होते तो आप कहां से आते और आप यहां तक कैसे पहुंचते इस लिए आपके साथ आपके पूर्वजों का भी कल्याण होता है आपके नेक कर्म से ।यह बात मनुष्य को हर हमेशा याद रखना चाहिए।इसलिए जितना हो सके सतकर्म करो।
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