15 साल बाद फिर बनी डबल इंजन की सरकार?

  • राजधानी के आधा दर्जन मंत्रियों की फौज भी नहीं दे सकी मलिहाबाद में विकास को जन्म..
  • 15 साल बाद फिर बनी प्रदेश में उसी पार्टी की डबल इंजन की सरकार..
  • बीते 15 साल तक विरोधी पार्टियों के सांसद और विधायक होने का रोना रोते रहे जनप्रतिनिधि..  

लेखराम मौर्य

लखनऊ। 15 साल पहले जिस पार्टी की केंद्र और राज्य में सरकार थी उसी पार्टी की इस समय भी केंद्र और राज्य में सरकार है लेकिन पिछली बार से इस बार की सरकारों में काफी अंतर है क्योंकि पिछली बार सरकार विकास के नाम पर काम कर रही थी परंतु इस बार की सरकार विकास को दरकिनार कर सिर्फ जनता को गुमराह करके सत्ता हासिल करने का काम कर रही है।




आपको बता दें कि इससे पहले 1999 से 2004 तक केंद्र में भाजपा के अटल बिहारी वाजपेई प्रधानमंत्री थे और इस बीच उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह, रामप्रकाश गुप्ता, राजनाथ सिंह की सरकार रही। 2003 में प्रदेश में मायावती की सरकार आ गई जो कुछ ही दिन रही उसके बाद प्रदेश में 2007 तक मुलायम सिंह यादव की सरकार रही। 

2004 में केंद्र में कांग्रेस पार्टी की सरकार में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री रहे जिनका कार्यकाल 10 वर्ष तक रहा उसके बाद 2014 में केंद्र में तो भाजपा की मोदी सरकार आ गई जबकि उत्तर प्रदेश में 2017 तक सपा की सरकार अस्तित्व में थी जो अखिलेश यादव के नेतृत्व में काम कर रही थी। 2017 से अब तक केंद्र और प्रदेश में एक ही पार्टी की सरकार होने के बावजूद लखनऊ जिले का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया जिसमें मलिहाबाद विधानसभा सबसे महत्वपूर्ण है। 

2017 से पहले इस क्षेत्र में जिन विकास कार्यों की सरकार से जनता मांग कर रही थी और क्षेत्र की आवश्यकता भी थी उन पर किसी भी विधायक सांसद और मंत्री ने ध्यान नहीं दिया जबकि 2017 से अब तक राजधानी के छह विधायक मंत्री रहे और जिनमें से एक उपमुख्यमंत्री के अलावा दूसरे उपमुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री भी यहीं निवास करते थे बावजूद इसके मलिहाबाद क्षेत्र में 100 बेड के एक अस्पताल के लिए जमीन तो चिन्हित हो गई लेकिन अस्पताल की इमारत के लिए जनता आज तक इंतजार कर रही है। 

सी तरह मलिहाबाद में एक राजकीय बालिका इंटर कॉलेज 1940 में जूनियर हाई स्कूल के तौर पर स्थापित हुआ था जिसको करीब 15 साल पहले इंटर कॉलेज का दर्जा तो दे दिया गया लेकिन इमारत बनवाने के लिए सांसद और विधायक ने कोई प्रयास नहीं किया सिर्फ जनता से वादे करते रहे। 

मलिहाबाद क्षेत्र में आज तक एक भी फायर स्टेशन नहीं है जबकि राजधानी की सभी तहसीलों में फायर स्टेशन बन चुके हैं। इसके अलावा रहीमाबाद क्षेत्र में भी एक राजकीय बालिका इंटर कॉलेज की आवश्यकता है तथा क्षेत्र में एक राजकीय महिला डिग्री कॉलेज की लंबे समय से लोग मांग करते चले आ रहे हैं फिर भी जनप्रतिनिधियों के कान पर जूं नहीं रेंगी। 

इसके अलावा क्षेत्र के लोग काफी समय से ग्राम पंचायत माल को नगर पंचायत बनाने की मांग भी करते रहे हैं जिसके लिए पिछली सपा सरकार में सर्वे भी कराया गया लेकिन उस समय की सांसद सुशीला सरोज ने प्रयास तो किया लेकिन सरकार और सांसद बदलने से माल नगर पंचायत नहीं बन सकी। 

क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं की बात की जाए तो अखिलेश यादव की सरकार के समय रहमान खेड़ा में केजीएमयू की सैटेलाइट चिकित्सा शाखा के लिए जमीन का चिन्हीकरण शुरू हुआ लेकिन वह धरातल पर नहीं आ सका। 

वर्तमान सरकार के कार्यकाल में अटल चिकित्सा विश्वविद्यालय के लिए अटारी फार्म की जमीन भी अधिकारियों ने देखी और क्षेत्र के लोगों को उम्मीद जगी कि अब शायद क्षेत्र का विकास होगा लेकिन वह भी चक गजरिया फार्म भेज दिया गया सांसद विधायक देखते रह गए। रहीमाबाद क्षेत्र में कई दशकों से थाना बनाने की मांग की जा रही है लेकिन जब थाने के लिए जमीन चिन्हित हो गई तो अधिकारियों ने आगे की कार्यवाही के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया जबकि इस बीच जिले में दर्जनभर थाने बन चुके हैं लेकिन मलिहाबाद क्षेत्र में एक नया थाना और एक भी चौकी नहीं बन सकी। 

जिस समय क्षेत्र में आम का सीजन शुरू होता है उस समय मलिहाबाद में माल रोड और रहीमाबाद में भी माल रोड पर रेलवे फाटक बंद होने से लंबी लंबी कतारें लग जाती हैं और लोग काफी देर तक जाम में फंसे रहते हैं। यदि इन दोनों रेलवे फाटकों की बात की जाए तो मलिहाबाद रेलवे फाटक पर ओवरब्रिज बनाने के लिए पिछली सरकार में ही एनओसी जारी हो गई थी लेकिन वर्तमान सरकार इस ओर ध्यान देना ही भूल गई। 

मलिहाबाद क्षेत्र में ही 15 साल के लंबे समय तक कछुए की चाल से निर्मित की जा रही ऐतिहासिक फलमंडी का काम कहने के लिए तो पूरा हो चुका है लेकिन अभी वहां भी कुछ आवश्यक कार्य बाकी हैं जिनकी वजह से वर्तमान सरकार उसका उद्घाटन नहीं कर सकी। 

इसी तरह पिछली सरकार के कार्यकाल में मलिहाबाद कस्बे में 30 बेड का महिला चिकित्सालय बनकर तो तैयार हो गया था लेकिन पिछली सरकार से आज तक उसका उद्घाटन नहीं हो सका जबकि काफी फजीहत के बाद अधिकारियों ने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के स्टाफ को ही वहां भेज कर उसे संचालित कर दिया था लेकिन नए स्टाफ की तैनाती नहीं की गई। 

इसी क्रम में 2014 से निर्माणाधीन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हसनापुर की इमारत भी आज तक विवादों में लटकी हुई है। दूसरी ओर महदोईया प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की इमारत बनकर तो तैयार हो गई लेकिन उद्घाटन कोई और ही करेगा। प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और स्वाति सिंह के पास निर्यात एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग का प्रभार होने के बावजूद मलिहाबाद क्षेत्र में एक भी खाद्य प्रसंस्करण इकाई नहीं लग सकी। जिले में दो मंत्री और मुख्यमंत्री होने के बावजूद आम निर्यात बढ़ने के बजाय घट गया। मंडी परिषद का अध्यक्ष मुख्यमंत्री के होने के बावजूद मलिहाबाद क्षेत्र के आम उत्पादकों की समस्याओं का निदान नहीं हो सका। 

काकोरी क्षेत्र के लोगों का कहना है कि काकोरी शहीद स्मारक को पर्यटक स्थल का दर्जा देने के बावजूद इसे घोषणाओं तक ही सीमित रखा गया। इसी तरह यदि विकास कार्यों को गिनाया जाए तो एक भी कार्य इस सरकार में पूरा नहीं हो सका साथ ही यदि कोई काम सरकार ने किया भी है तो उसका लाभ जनता को मिलने की नौबत अभी तक नहीं आई है। ऐसी स्थिति में जनता क्यों इस तरह की सरकार चुनें जो उसकी अपेक्षाओं और उम्मीदों पर खरी न उतरे। आने वाली 23 तारीख को जब इस क्षेत्र की जनता अपने मत का प्रयोग करने जाएगी तो एक बार इन मुद्दों पर गौर करने के बाद ही विधायक का चुनाव करेगी। 

पहले जिस पार्टी की केंद्र और राज्य में सरकार थी उसी पार्टी की इस समय भी केंद्र और राज्य में सरकार है लेकिन पिछली बार से इस बार की सरकारों में काफी अंतर है क्योंकि पिछली बार सरकार विकास के नाम पर काम कर रही थी परंतु इस बार की सरकार विकास को दरकिनार कर सिर्फ जनता को गुमराह करके सत्ता हासिल करने का काम कर रही है। आपको बता दें कि इससे पहले 1999 से 2004 तक केंद्र में भाजपा के अटल बिहारी वाजपेई प्रधानमंत्री थे और इस बीच उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह, रामप्रकाश गुप्ता , राजनाथ सिंह की सरकार रही । 2003 में प्रदेश में मायावती की सरकार आ गई जो कुछ ही दिन रही उसके बाद प्रदेश में 2007 तक मुलायम सिंह यादव की सरकार रही। 

2004 में केंद्र में कांग्रेस पार्टी की सरकार में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री रहे जिनका कार्यकाल 10 वर्ष तक रहा उसके बाद 2014 में केंद्र में तो भाजपा की मोदी सरकार आ गई जबकि उत्तर प्रदेश में 2017 तक सपा की सरकार अस्तित्व में थी जो अखिलेश यादव के नेतृत्व में काम कर रही थी। 2017 से अब तक केंद्र और प्रदेश में एक ही पार्टी की सरकार होने के बावजूद लखनऊ जिले का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया जिसमें मलिहाबाद विधानसभा सबसे महत्वपूर्ण है। 

2017 से पहले इस क्षेत्र में जिन विकास कार्यों की सरकार से जनता मांग कर रही थी और क्षेत्र की आवश्यकता भी थी उन पर किसी भी विधायक सांसद और मंत्री ने ध्यान नहीं दिया जबकि 2017 से अब तक राजधानी के छह विधायक मंत्री रहे और जिनमें से एक उपमुख्यमंत्री के अलावा दूसरे उपमुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री भी यहीं निवास करते थे बावजूद इसके मलिहाबाद क्षेत्र में 100 बेड के एक अस्पताल के लिए जमीन तो चिन्हित हो गई लेकिन अस्पताल की इमारत के लिए जनता आज तक इंतजार कर रही है। 

इसी तरह मलिहाबाद में एक राजकीय बालिका इंटर कॉलेज 1940 में जूनियर हाई स्कूल के तौर पर स्थापित हुआ था जिसको करीब 15 साल पहले इंटर कॉलेज का दर्जा तो दे दिया गया लेकिन इमारत बनवाने के लिए सांसद और विधायक ने कोई प्रयास नहीं किया सिर्फ जनता से वादे करते रहे। मलिहाबाद क्षेत्र में आज तक एक भी फायर स्टेशन नहीं है जबकि राजधानी की सभी तहसीलों में फायर स्टेशन बन चुके हैं। 

इसके अलावा रहीमाबाद क्षेत्र में भी एक राजकीय बालिका इंटर कॉलेज की आवश्यकता है तथा क्षेत्र में एक राजकीय महिला डिग्री कॉलेज की लंबे समय से लोग मांग करते चले आ रहे हैं फिर भी जनप्रतिनिधियों के कान पर जूं नहीं रेंगी। इसके अलावा क्षेत्र के लोग काफी समय से ग्राम पंचायत माल को नगर पंचायत बनाने की मांग भी करते रहे हैं जिसके लिए पिछली सपा सरकार में सर्वे भी कराया गया लेकिन उस समय की सांसद सुशीला सरोज ने प्रयास तो किया लेकिन सरकार और सांसद बदलने से माल नगर पंचायत नहीं बन सकी। क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं की बात की जाए तो अखिलेश यादव की सरकार के समय रहमान खेड़ा में केजीएमयू की सैटेलाइट चिकित्सा शाखा के लिए जमीन का चिन्हीकरण शुरू हुआ लेकिन वह धरातल पर नहीं आ सका। 

वर्तमान सरकार के कार्यकाल में अटल चिकित्सा विश्वविद्यालय के लिए अटारी फार्म की जमीन भी अधिकारियों ने देखी और क्षेत्र के लोगों को उम्मीद जगी कि अब शायद क्षेत्र का विकास होगा लेकिन वह भी चक गजरिया फार्म भेज दिया गया सांसद विधायक देखते रह गए। रहीमाबाद क्षेत्र में कई दशकों से थाना बनाने की मांग की जा रही है लेकिन जब थाने के लिए जमीन चिन्हित हो गई तो अधिकारियों ने आगे की कार्यवाही के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया जबकि इस बीच जिले में दर्जनभर थाने बन चुके हैं लेकिन मलिहाबाद क्षेत्र में एक नया थाना और एक भी चौकी नहीं बन सकी। 

जिस समय क्षेत्र में आम का सीजन शुरू होता है उस समय मलिहाबाद में माल रोड और रहीमाबाद में भी माल रोड पर रेलवे फाटक बंद होने से लंबी लंबी कतारें लग जाती हैं और लोग काफी देर तक जाम में फंसे रहते हैं। यदि इन दोनों रेलवे फाटकों की बात की जाए तो मलिहाबाद रेलवे फाटक पर ओवरब्रिज बनाने के लिए पिछली सरकार में ही एनओसी जारी हो गई थी लेकिन वर्तमान सरकार इस ओर ध्यान देना ही भूल गई। मलिहाबाद क्षेत्र में ही 15 साल के लंबे समय तक कछुए की चाल से निर्मित की जा रही ऐतिहासिक फलमंडी का काम कहने के लिए तो पूरा हो चुका है लेकिन अभी वहां भी कुछ आवश्यक कार्य बाकी हैं जिनकी वजह से वर्तमान सरकार उसका उद्घाटन नहीं कर सकी। 

इसी तरह पिछली सरकार के कार्यकाल में मलिहाबाद कस्बे में 30 बेड का महिला चिकित्सालय बनकर तो तैयार हो गया था लेकिन पिछली सरकार से आज तक उसका उद्घाटन नहीं हो सका जबकि काफी फजीहत के बाद अधिकारियों ने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के स्टाफ को ही वहां भेज कर उसे संचालित कर दिया था लेकिन नए स्टाफ की तैनाती नहीं की गई। इसी क्रम में 2014 से निर्माणाधीन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हसनापुर की इमारत भी आज तक विवादों में लटकी हुई है। 

दूसरी ओर महदोईया प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की इमारत बनकर तो तैयार हो गई लेकिन उद्घाटन कोई और ही करेगा। प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और स्वाति सिंह के पास निर्यात एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग का प्रभार होने के बावजूद मलिहाबाद क्षेत्र में एक भी खाद्य प्रसंस्करण इकाई नहीं लग सकी। जिले में दो मंत्री और मुख्यमंत्री होने के बावजूद आम निर्यात बढ़ने के बजाय घट गया। 

मंडी परिषद का अध्यक्ष मुख्यमंत्री के होने के बावजूद मलिहाबाद क्षेत्र के आम उत्पादकों की समस्याओं का निदान नहीं हो सका। काकोरी क्षेत्र के लोगों का कहना है कि काकोरी शहीद स्मारक को पर्यटक स्थल का दर्जा देने के बावजूद इसे घोषणाओं तक ही सीमित रखा गया। 

इसी तरह यदि विकास कार्यों को गिनाया जाए तो एक भी कार्य इस सरकार में पूरा नहीं हो सका साथ ही यदि कोई काम सरकार ने किया भी है तो उसका लाभ जनता को मिलने की नौबत अभी तक नहीं आई है। ऐसी स्थिति में जनता क्यों इस तरह की सरकार चुनें जो उसकी अपेक्षाओं और उम्मीदों पर खरी न उतरे। आने वाली 23 तारीख को जब इस क्षेत्र की जनता अपने मत का प्रयोग करने जाएगी तो एक बार इन मुद्दों पर गौर करने के बाद ही विधायक का चुनाव करेगी।

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