विद्युत विभाग की लापरवाही से श्रमिक हुआ आजीवन अपाहिज
संवाददाता
लखनऊ । अधिकारियों की लापरवाही और ठेकेदार की पैसे बचाओ नीति के चलते गलत पोल खड़े कर लाइनों को संचालित करने का खामियाजा एक व्यक्ति को अपनी जिंदगी बर्बाद कर चुकाना पड़ा।
यहाँ अब देखना होगा कि इस लापरवाही के लिए किसके खिलाफ कार्रवाई की जाती है और किसको बचाने का प्रयास किया जाता है।
उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड के अंतर्गत विद्युत उपकेंद्र माल पर अकुशल श्रमिक आशुतोष उर्फ बउआ 28 वर्ष पुत्र जय प्रकाश निवासी दलथम्भा मजरा लतीफपुर पिछले 3 वर्ष से हेल्पर का काम कर रहा था।
इस दौरान विद्युत विभाग उससे हर तरह का काम ले रहा था जबकि वर्ल्ड क्लास सर्विस लिमिटेड इंदौर कंपनी के सुपरवाइजर निर्भय सिंह ने बताया कि उसका टेंडर अप्रैल 2019 से मार्च 2022 तक है । माल पावर हाउस के अंतर्गत लगभग 16 कर्मचारी उनकी कंपनी के टेंडर पर विभाग में काम कर रहे हैं।
ऐसे कर्मचारियों का काम सीढ़ी धकेलना, गड्ढा खोदना, खंभे खड़े कराना होता है। उनका कहना था कि मैं अपने कर्मचारियों को सुरक्षा उपकरण भी उपलब्ध कराता हूं लेकिन वह उसका प्रयोग करते हैं कि नहीं करते हैं यह विभाग की जिम्मेदारी है।
बीती 22 फरवरी की रात ड्यूटी के दौरान आशुतोष शटडाउन लेकर नबीपनाह की लाइन जोड़ने के लिए पोल पर चढ़ा था इसी दौरान दूसरे सोर्स से आ रहे करंट की चपेट में आने से वह घायल होकर नीचे गिर गया। जिसकी सूचना रात में ही सभी अधिकारियों को दी गई।
माल पावर हाउस से संबंधित जेई और एसडीओ ने कंपनी के सुपरवाइजर को भी सूचना दी और उन्होंने कहा कि विद्युत विभाग से संबंधित बीमा कंपनी का अस्पताल सरोजनी नगर में है।
प्रथम दृष्टया किसी भी कर्मचारी को वहीं भेजा जाता है उसके बाद वह 3 प्राइवेट और दो सरकारी अस्पतालों में से परिवार वालों और कर्मचारियों की सहमति वाले अस्पताल को रेफर कर देते हैं।
इस मामले में सुपरवाइजर और अधिकारी दोनों का कहना है कि परिजनों ने अपनी मर्जी से सिविल अस्पताल में भर्ती कराया जहां प्राथमिक उपचार के बाद परिजनों ने उसे पीजीआई ले जाने की बात की परंतु पीजीआई ले जाने के बाद वहां ऐसे जले हुए मरीजों की सुविधा ना होने के कारण उसे ट्रामा सेंटर रेफर कर दिया गया जहां उसका इलाज चल रहा है।
इस दौरान इलाज में देरी होने के कारण उक्त मरीज के दोनों हाथ इंफेक्शन के कारण शुक्रवार को काटने पड़ गए जिससे वह आजीवन अपाहिज हो गया। आशुतोष अपने परिवार में तीन बहनों में अकेला भाई है जिससे परिजन इस घटना से काफी आहत हुए हैं।
अधिकारियों का कहना है कि यदि उनकी सलाह पर इलाज होता तो परिजनों को इलाज का कोई शुल्क नहीं देना पड़ता, परंतु अपनी मर्जी से इलाज कराने के कारण जहां एक ओर उसकी जिंदगी बर्बाद हो गई वहीं दूसरी ओर अब परिजनों को इलाज के अभिलेख उपलब्ध कराने पर ही कंपनी से भुगतान मिलेगा।
आज कर्मचारियों एवं अधिकारियों ने लगभग ₹एक लाख की सामूहिक मदद की। इस संबंध में अधीक्षण अभियंता देवेंद्र त्रिपाठी ने कहा कि इस मामले की उन्हें जानकारी नहीं है परंतु वह जांच कराकर नियमानुसार कार्यवाही करेंगे।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें