हमारी संवेदना मर चुकी है..?
हमें सेकंड हैंड चीजों की आदत हो गई है..
शायद हम कभी नही सीखेंगे..
अमेरीका को गुलाम बनाए रखने की दौड़ में सबसे आगे दो मुल्क थे -ब्रिटेन और फ्रांस।ब्रिटेन की बर्बादी में फ्रांस इस स्तर पर जुट गया कि भयंकर कर्जे में डूब गया। फ्रांस और ब्रिटेन के बीच ये दुश्मनी बड़ी लंबी चली। भारत को उपनिवेश बनाने के लिए भी दोनों एक-दूसरे पर बंदूक ताने रहे। कई वर्षों तक युद्ध चले और दोनों ने जान-माल का भयंकर नुकसान झेला। विश्व इतिहास के पन्नों में यूरोप के देशों की आपसी दुश्मनी जगजाहिर है।
जर्मनी, इटली, पुर्तगाल, ब्रिटेन, फ्रांस, डच इत्यादि बड़े लंबे समय तक एक दूसरे से लड़े। विश्व इतिहास के सबसे भीषण और बर्बादी वाले अध्याय में दोनों विश्वयुद्ध को ही जगह मिलती है। दोनों विश्वयुद्ध में मुख्य रूप से लड़ाई यूरोप के आपसी देशों के बीच ही चली। लेकिन आज क्या हालात हैं उन देशों के? आज यूरोप के देश मित्रता बनाए हुए हैं। युद्ध में करोड़ों लोगों की बलि देने के बाद। बच्चों को अनाथ, औरतों को विधवा और माँओं को बेसहारा करने के बाद उन देशों को समझ आ गया कि ये भयंकर बेवकूफ़ी थी।
आज यूरोप के कई देशों की सीमाएँ ऐसी हैं जैसे भारत में राज्यों के बीच की सीमाए, एक से दूसरे देश जाना अब बड़ा आसान है। यूरोपियन यूनियन की एकता बड़ी जबरदस्त है। उन्हें समझ आ गया कि युद्ध का महिमामंडन बेवकूफ़ी है। यूरोप के नागरिक किसी एशियाई देश की नागरिकता की दौड़ में नहीं रहते। लेकिन हम? हम अभी भी वहीं अटके हुए हैं। हम अभी भी राष्ट्रवाद की चरस के नशे में सराबोर हैं। हमारे लिए युद्ध गर्व का विषय है।हमारे लिए पड़ोसी मुल्कों को गाली देना राष्ट्रवाद है।
हमारी थाली में से रोटी छीन कर हथियार खरीदे जा रहे हैं और हम इसी पर फूले नहीं समाते। अर्थव्यवस्था, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं जैसी मूलभूत सुविधाओं की दुर्गति के बाद भी हमारा गर्व कम नहीं हुआ है। इंची टेप छोटी पड़ती जा रही है क्योंकि हमारी छाती का नाप बढ़ता जा रहा है। सदियों तक लड़ने वाले देशों से सबक लेने के बजाय हम आँखें मूँद कर वही मूर्खता बड़े गर्व से दोहरा रहे हैं। सैनिकों की शहादत पर RIP लिख कर आगे बढ़ जाते हैं। लकिन जिस घर का चिराग बुझ गया उस घर में खाली हुई उसकी जगह के बारे में नहीं सोचते क्योंकि अगले दिन किसी सेलीब्रिटी की शादी का फोटोशूट भी तो देखना है। उस पत्नी को कैसा लगता होगा जब उसके लिए मंगलसूत्र बस एक सोने का टुकड़ा भर रह जाता होगा, उसकी भावनायें मिट जाती होंगी।
आपका गर्व आपको सोचने नहीं देगा। हमें शायद और बर्बादी देखनी होगी ये समझने के लिए। धर्म के आधार पर यूरोप में भी बड़े कत्लेआम हुए हैं। कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट एक दूसरे के खून के प्यासे हुआ करते थे। बड़ी मार काट के बाद समझ गए कि ये बस कोरी मूर्खता ही है। अब समझदारी के साथ रहते हैं। लेकिन भारत?
भारत में अभी भी धार्मिक हिंसा और दंगे आम हैं। धार्मिक श्रेष्ठता का भाव इस देश में दंगे करवा देता है।और दंगाई के मन में बस ईर्ष्या और बदले की भावना रहती है। दंगाई कभी शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, यातायात, अर्थव्यवस्था इत्यादि के बारे में नहीं सोचता।लेकिन हम भी समझदार बनेंगे।
यूरोप के देशों की तरह हम भी समझ लेंगे.... लेकिन उन्हें देख कर सबक नहीं लेंगे बल्कि बर्बादी झेल कर। अभी हमें और बर्बादी झेलनी होगी। हम शापित हैं कि हम कोई भी चीज़ पहले नहीं समझते, हमें सेकंड हैंड चीजों की आदत हो गई है... हम बर्बादी के चरम पर जा कर ही दूसरों के सबक लेंगे?
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