प्रजासत्ताकदिनकस्य शुभाषया:
निवेदिता मुकुल सक्सेना, झाबुआ मध्यप्रदेश सेवा, दान औऱ बलिदान हमारी संस्कृति व संस्कारो में निहित है औऱ ये मूल्य हमारे पूर्वजों से ही हमने भी सीखे हैं। इन सभी मूल्यों का जब आचरण में समावेश होता हैं तब भारत जैसे एक महान राष्ट्र का निर्माण होता है।
गणतंत्र दिवस के 73वे वर्ष में प्रवेश करते हुए महसूस हो रहा है की बडी लम्बी यात्रा करते हुए मेरी मातृभूमि अपने बच्चों अपनी गोद मे समेटे कई हलचलो से अनजान बस चलती जा रही हैं। भारत जहा अपनी संस्कृति व संस्कारो की पूंजी से समृद्ध भूमि रही हैं , वही गुलामी के बंधनो में रहकर भी कई विरासतों के राजाओं व रानियों से सार्थकता के साथ फलती रही हैं जैसे सम्राट विक्रमादित्य, देवी अहिल्याबाई , लक्ष्मीबाई आदि ।फिर डाकुओ की तरह आये मुगलों व ब्रिटिशो जैसी औपनिवेशिक ताकतों ने यहां की बहुमूल्य सम्पदा व भोतिक संसाधनो का उपयोग कर इस धरा को तहस नहस करने व लूट लूट कर यहां की सम्पदा का सदा से हरण किया और आज भी भारत या इण्डिया का संचालन वैश्विक स्तर पर बैठकर कर रहे है।
26 जनवरी 1950 को 1947 की एक समझौतावादी स्वाधीनता के पश्चात संविधान की घोषणा की गई। जिसमें जनता द्वारा नियंत्रित प्रणाली को लागू किया तात्पर्य गणतंत्र जो जनता के द्वारा जनता के लिए शासन अन्य शब्दो मे सबके अधिकारों की रक्षा के लिए गणतंत्र की स्थापना का पर्व हैं 26 जनवरी। यहां पूर्व की तरह विरासतों या पीढ़ी दर पीढ़ी शासन नही होगा गणतंत्र की घोषणा के पश्चात कोई भी साधारण व्यक्ति भी देश के सर्वोच्च पदों पर सरकार के रूप पदासीन हो सकता हैं। ये तो हुई संविधान के नियम की बात लेकिन आज वर्तमान में भारतभूमि में ये वास्तविकता से परे हैं। जहां राष्ट्रहित कम व औपनिवेशिक ताकतों की आज भी दमनकारी नीतियों के तहत पीढियों का वर्चस्व आज भी कायम हैं व साम ,दाम, दंड ,भेद के साथ सत्ता में विराजमान रहने की कोशिश बरकरार रखी जा रही हैं। भारत को खोखला करके उसका अस्तित्व समाप्त करने की चेष्टा की जा रही हैं। कहते हैं ना , गैरो में कहा दम था हमे तो अपनो ने ही लुटा कुछ यही यथार्थवादीता मेरे भारतवर्ष की रही हैं। हाल ही में राष्ट्रहित की भावना से ओतप्रोत आयोजित एक कार्यशाला में श्री विनय जी दीक्षित व ताई इंदु नागरीकर के व्याख्यान सुने जिनमे भारत के वास्तविक दर्शन की झलक थी।
भारतभूमि के भारतवासियों की संस्कृति व सभ्यता पर बहुत ही अच्छा व्याख्यान दिया गया अच्छा इसलिए क्योंकि बिना किसी लागलपेट के भारतीय मनोभाव* पर आधारित था। उसका कारण भारतवासी सदा से सेवा, दान, बलिदान, त्याग के साथ संस्कृति सभ्यता को संजोए रहे हैं। उनकी इसी बात का फायदा उठाकर किस तरह कोलम्बस व वास्कोडिगामा जैसी औपनिवेशिक ताकतों ने भारतीयों को अंदर ही अंदर खाली करते गए और एक धीमा जहर पाश्चात्य का भी छोड़ गए। कारण भी हैं हम समझकर भी खुद के वर्चस्व से अनजान रहे हम भूल गए कि जीरो ओर दशमलव भी भारत की ही देन हैं ना कि पाश्चात्य की।
हम भूल गए कि सभी आविष्कारो की जननी भारत भूमि रही हैं यू ही नही नालन्दा विश्ववविद्यालय को जलाकर खाक किया गया, यू ही नही असली भागवद्गीता तक को लुटेरे भारत से ले गए।
हम स्व को भूल गए। स्व अथार्त मेरा स्वंय का भारत मेरा शहर मेरा अंचल मेरा गांव मेरी संस्क्रति मेरी विशाल सभ्यता मेरे माता पिता मेरे गुरु और उनकी राष्ट्रहित की भावना जो धर्म और जाति से भी ऊपर उठकर अपना वर्चस्व कायम रखती हैं। बच्चा जन्म से बाद से अपने परिवार से ही सब सीखता हैं भारत मे परिवार एक मूल इकाई के रूप में अपनी साख रखता हैं औऱ वही उसकी पहचान व गरिमा का विषय होती रही। आज वही आवश्यकता फिर महसूस हो रही जब वर्तमान में कोर्ट में आयेदिन बढ़ते तलाक के प्रकरणों की संख्या बढ़ती जा रही या संयुक्त परिवार से कई न्यूक्लियर फ़ैमिली होकर टुकडा टुकड़ा बिखरता जा रहा है। वह स्व अर्थात मेरा परिवार की भावना से दूर निकल अब सिर्फ मैं तक सीमित भावना कैसे मातृभूमि या मातृभूमि की रक्षा व यहां की अमूल्य सम्पदा के संरक्षण की भावना मन मे आ सकती हैं। जहां आज भारत मे अस्सी प्रतिशत से ज्यादा युवा खुद की पहचान भूल गया वह भूल गया स्वयं के विराट व्यक्तित्व को जहा भगवन राम व स्वामी विवेकानन्द जी जैसे महापुरुषों ने जन्म लिया औऱ हमे खुद में निहित ऊर्जा को पहचाने का मौका दिया।
हम आज जब भारत का वर्तमान दर्शन करते है तो दुखद स्थिति उत्पन्न होती हैं यहाँ औपनिवेशिक ताकतों का हाथपकड कर युवा भ्रमित रास्ते को चुन उनके पीछे पीछे मृगमरीचिका की रेती पर चलते जा रहै। जहाँ समय भी मुट्ठी के समान रेत की तरह फिसलता जा रहा हैं। पर आखिर कब तक कितनी ठोकरे खाने के बाद भी हम अब तक चले जा रहे है? कहते है प्रभु संकट आने के पहले एक चेतावनी की दस्तक महसूस करा देते हैं कि अब सम्हल जाओ और पुनः अपने रास्ते पर आ जाओ । लेकिन हम वह ठोकर व दस्तक भी एक तरफ रख चुके व ध्यान आता हैं कि, क्या हम? हॉलीवुड हॉरर फिल्मों के जोम्बी बन गए है? क्योंकि ये डरावनी व भयानक फिल्में व स्थितियां वही से निर्मित होती रही हैं भारत तो हमेशा से सृजनात्मकता को साकार कर सार्थक निर्माणों का रचयिता रहा हैं ओर जल ,जंगल ,जमीन का पूजक रहा है। मेरी भारत भूमि में तो सजीवों के प्रति दया व रक्षा का भाव रहा हैं ना कि उनके परिवारों को तहस नहस कर उनको खाने का।(नॉनवेज)
भारतभूमि में आज का परिदृश्य यू लग रहा गणराज्य व स्वतंत्रता जैसे अवसरों को भी मात्र औपचारिकता मान रहे। ऐसा ना हो कि अब सांसे भी किराए की लगने लगे।
अत्र जन्म सहस्त्राणां सहस्त्रेरपि सत्तम।
कदाचिल्लभत जंतुमनुष्यम पुण्यसन्यात।।
तातपर्य ,भारतभूमि पर जन्म लेना अथार्त कई पुण्यो के बाद इस भूमि पर मानवीय जीवन प्राप्त होता हैं इसका सदुपयोग करें।
जिम्मेदारी हमारी
स्व से गणतंत्र को पहचाने ।
भारत के वास्तविक स्वरूप का दर्शन करे।।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें