विवाह कानून कितना सही कितना गलत?


सुनीता कुमारी पूर्णियां बिहार 
हमारे देश में 43 वर्ष बाद विवाह कानून में बदलाव किया गया है। 1929 में बने विवाह सम्बन्धी कानून शारदा ऐक्ट को संशोधित करते हुए 1978  में लड़कियो की शादी की उम्र 15 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष की गई थी। पुनः 43 साल बाद केंद्रीय कैबिनेट ने लड़कियों के विवाह की 18  वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने की मंजूरी दी है। इसी सत्र में सरकार दोनो सदनो में यह विधेयक लाएगी।

2020 में गणतंत्र दिवस के मौके पर लालकिला में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने विवाह कानून में बदलाव की बात की थी।उसके बाद जया जेठली के संरक्षण में दस सदस्यों वाली टास्क फोर्स टीम का गठन किया गया, जिसमें जाने माने स्कॉलर्स, कानूनी विशेषज्ञ, नागरिक संगठनों के नेता, महिला संगठनों की महिलाओं से इस सम्बन्ध में विचार विमर्श किया गया। सभी की राय लड़कियों की विवाह की उम्र 18 से 21 वर्ष करने की थी।

जिसके बाद दिसम्बर 2020 में इस पर सहमति बनी। इस कानून के पास होने से 18 से 21 वर्ष के बीच की साढ़े चार कड़ोर चौसठ लाख लड़कियों को फायदा होगा।यह फैसला उन लड़कियों के हक मे है जो पढलिखकर कर कुछ करना चाहती है। शिक्षा के प्रचार प्रसार से जहां भारत में शिक्षा का स्तर बढ़ा है, वही शिक्षा ग्रहण करने के प्रति लोगो में जागरूकता भी बढ़ी है। परंतु अब भी भारत में शिक्षा का प्रतिशत लड़को की अपेक्षा लड़कियों में कम है। यही वजह है की भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या भारत में काफी कम है। इसका सबसे बड़ा कारण हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्था है।

हमारे समाज में अब भी लड़कियां बोझ और जिम्मेदारी की तरह समझी जाती है। अच्छे अच्छे परिवार के माता पिता भी लड़कियों को पढ़ाने की अपेक्षा समय पर लड़कियों की शादी करा देना बेहतर समझते है। इसके लिए हमारी परम्परागत अवधारणा जिम्मेदार है। 

आज लड़की के साथ कही कोई ऊच नीच न हो जाए, लड़की कही अपने मन से शादी न कर ले? ज्यादा उम्र हो गई तो शादी के लिए अच्छे लड़के नही मिलेगे, लड़की की शादी में दे हो गई तो समाज में लोग क्या कहेगे, बेइज्जती हो जाएगी। समाज में मुंह दिखाने लायक नही रहेगे आदि आदि?

द रजिस्ट्रार जनरल सेशंस कमिश्नर आफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2.3% लड़कियों की शादी 18 वर्ष तक पहुंचने से पहले हो जाती है।शहरो की स्थिति तो थोड़ा ठीक है ,शहरो में 1.6% लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पूर्व हो जाती है ,वही ग्रामीण क्षेत्र में 2.6% लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पहले हो जाती है।

भारत के ज्यादातर ग्रामीण इलाको में उचित शिक्षा की व्यवस्था अब भी नही है। लड़कियों की पढ़ाई का स्तर माध्यमिक तक ही हैं। लड़की मैट्रिक कर ले यही काफी होता है।ग्रामीण क्षेत्र में माता पिता इसलिए भी लड़कियो को मैट्रिक व इंटर मिडिएट तक की शिक्षा इसलिए भी दिला रहे है ताकि शादी करने में आसानी हो। ऐसा लगता है जैसे बेटी के होने के बाद माता पिता का बेटी के लिए एकमात्र जिम्मेदारी शादी ही है? लड़कियां माता पिता के लिए जिम्मेदारी के साथ प्रतिष्ठा की भी परिचायक होती है ।जिसके कारण लड़कियों को लेकर माता पिता की पहली और आखिरी इच्छा शादी होती है।

हमारे समाज की इस सोच के कारण वैसी लड़कियां मन मारककर जीती है जो पढ़-लिखकर कुछ करना चाहती है।लड़कियों की इस इच्छा को माता पिता यह बोलकर खारिज कर देते है कि अगर ससुराल वाले तुझे पढ़ाना चाहेगे तो पढ़ लेना? ससुराल आने के बाद 10 में से 01 लड़की को पढ़ने की आज्ञा मिलती है बाकी नौ लड़कियां अपने मन को मारकर जीती है। यही प्रत्येक 10 में से एक महिला जीवन में आगे बढ़कर कर नौकरी या अपना कोई स्वरोजगार कर पाती है।

लड़कियों की 18 वर्ष की उम्र तक की पढ़ाई, पढाई के स्तर पर मात्र इंटरमीडिएट ही पूरा हो पाती है, जिसके आधार पर उसे कोई नौकरी नहीं मिल पाती है विवाह के पश्चात घर में रहना उसकी मजबूरी बन जाती है। यही विवाह का 21 वर्ष होने से लड़कियां ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई कर पाएंगी और अपने भविष्य का सही निर्णय ले सकेंगी।

लड़कियों की शारीरिक बनावट के हिसाब से भी 21 वर्ष की आयु शिशु जन्म के लिए बेहतर है।  इससे जन्म के समय मातृ मृत्यु दर में कमी आएगी। मानसिक रोग विशेषज्ञ के हिसाब से भी 21 वर्ष की आयु तक लड़कियां मानसिक रूप से वैवाहिक बंधन निभाने के लिए सक्षम हो जाती हैं ।जनसँख्या वृध्दि पर भी इसका साकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, क्योकि, पढ़ी लिखी लड़की ज्यादा बच्चे नही चाहती है।

इसलिए केंद्र सरकार के द्वारा लड़कियों की आयु 18 वर्ष से 21 वर्ष कर देना स्वागत योग्य है, परंतु सोचने वाली बात यह है कि, मुस्लिम तथा ईसाई धर्म की लड़कियों पर यह कानून लागू नही होगी। इनका अपना पर्सनल लाॅ होता है , मुस्लिम और ईसाई लड़कियों के स्थिति में इस कानून से परिवर्तन नहीं होगा।जो एक चिंताजनक विषय है ।खासकर मुस्लिम लड़कियों की स्थिति ज्यादा दयनीय है।क्योंकि, मुस्लिम लड़कियों की शादी की उम्र अब भी 15 वर्ष ही है।

इस कानून को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है ।

कुछ लोग इसके समर्थन में है तो कुछ लोग विरोध में?

भारत में लड़कियों का विवाह की उम्र 18 से 21 वर्ष होना , लड़कियों की शारीरिक, शैक्षणिक, मानसिक समाजिक, रोज़गारपरक सभी दृष्टी से सही है ।

इस कानून के विपक्ष में बोलने बालो की बातों में भी दम है कि,मात्र विवाह की आयु बढा देने से लड़कियो की समस्या का समाधान हो जाएगा ??

हमारे देश में अब भी बेटियां बलात्कार, घरेलू हिंसा, दहेज प्रताड़ना, छेड़ छाड़ की शिकार है ? पाश्चात्य प्रभाव ने भी समाज की तस्वीर बदली है ।

जिस कारण समाज में बदलाव हुए है ।समाज का एक तबका जहाँ जहाँ शिक्षा का नितांत अभाव है वहां लोग स्वछंद होकर बीना रोक टोक जीना चाहता है ,,उनके लिए नियम, धर्म, समाज एवं  नैतिक मूल्यों का कोई मोल नही होता है? लड़कियां भोग-विलास और,सजावट की वस्तु समझी जाती है ?

वही समाज का दूसरा तबका जीवन मुल्यों के साथ जीना चाहता है ,जीवन में कुछ करना चाहता है ,बेटियों को पढ़ाना तथा आगे बढ़ाना चाहता है ,

परंतु पहले तबके के गलत प्रभाव ने समाज को अब भी हजार साल पीछे खड़ा किया हुआ है।

हजारों साल पहले की भांति अब भी शाम होते ही लड़कियां घर से बाहर निकले तो माता पिता को घोर चिंता होती है ,जो कि वर्तमान परिवेश में सोचनीय है।

विवाह कानून के द्वारा निश्चित ही सरकार ने लड़कियों  के लिए एक मार्ग प्रशस्त किया है ,बाकी हम आम लोगो को करनी होगी।

लड़कियों के प्रति सोच बदलनी होगी ,लड़कियों को मजबूत बनाना होगा,ताकि वो हर विपरीत परिस्थित से लड़ सके।

समाजसुधार की दिशा में भी कदम बढाना होगा।

अपनी बेटी और अपनी बहन की तरह ही, हर लड़की के लिए सोच रखना होगा ।तब लड़कियों की दशा में सुधार हो सकता है।विवाह कानून के साथ-साथ कई और कानून की अवश्यकता हमारे देश की बेटियों को है।

खासकर बलात्कार कानून पर विचार करना सबसे ज्यादा जरूरी है ।आए दिन पढ़ी लिखी लड़कियों से लेकर छह से आठ वर्ष की बच्ची तक इसकी शिकार है ।हमारे देश में कम उम्र में विवाह होने की ये भी एक बहुत बड़ी वजह है।

दूसरी सबसे बड़ी वजह लड़कियों की दिशाहीन शिक्षा भी है ।लड़कियों के दिमाग में माता पिता तथा समाज के द्वारा एक ही बात डाली जाती है कि,बड़ी होते ही उसे शादी करनी है।बचपन से यह सुनते सुनते लड़कियों की हिम्मत जबाव दे जाती है ।सामाजिक और मानसिक दबाव में चुपचाप शादी करना ही बेहतर समझती है। कई मामलो में ऐसा भी होता है कि ,उचित शिक्षा एवं सही मार्गदर्शन न मिल पाने की वजह से एवं ना समझी में आकर पंद्रह सोलह वर्ष में ही विवाह कर लेती है जिससे लड़कियां कम उम्र में मां बन जाती है।

ऐसी नासमझी व सही मार्ग दर्शन के अभाव में ऐसी लड़कियों का जीवन बर्बाद हो जाता है।

पढ़ने और आगे बढ़ने की बात बहुत ही कम माता पिता अपनी बेटी से कह पाते है।विवाह सम्बन्धी यह कानून कही न कही बेटियों के हित में है ।

जबतक हमारी सोच से यह बात नही निकलती कि ,बेटो की तरह बेटियों की भी पहली जरूरत शादी नही बल्कि लड़को की तरह शिक्षा और रोजगार है तबतक हमारे देश में लड़कियों की स्थिति में बदलाव नही हो सकता है।

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