ओमिक्रोन कोरोना वाइरस की स्थिति में चुनावी सभा कितना सही और कितना गलत?

सुनीता कुमारी 

बिहार। पूर्णियाँ भारत लोकतंत्रात्मक देश है। लोकतंत्र की शासन व्यवस्था चुनाव पर आधारित होती है। चुनाव के द्वारा जनप्रतिनिधि, सांसद, विधायक, मुखिया , सरपंच, वार्ड पार्षद, नगर पार्षद सबके सब, चुनाव के द्वारा ही चुने जाते है। लोकतंत्र में चुनाव एक अहम प्रकिया है।मगर यह तब ऊबाऊ और बोझिल लगने लगता है जब इसकी प्रकिया पर ध्यान दिया जाय। हमारे देश में वन नेशन वन इलेक्शन की जगह प्रत्येक वर्ष इलेक्शन है। प्रत्येक राज्य में, प्रत्येक वर्ष कोई न कोई चुनाव  होता है ।एक लोकसभा सत्र की बात की जाए तो, मुश्किल से एक या दो वर्ष चुनाव नही होते अन्यथा पाँच वर्ष में लगातार तीन वर्ष चुनाव होते ही रहते है। लोकसभा फिर विधान सभा फिर पंचायत चुनाव, नगर निकाय चुनाव ये भी कम पड़ता है तो कही न कही आए दिन उपचुनाव होते रहते है।

परेशानी आम जनता को उठानी पड़ती है। प्रत्येक राजनीतिक पार्टी देश भर में या तो लोकससभा चुनाव पर फोकस करती है कभी विधानसभा चुनाव पर फोकस करती है।राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टी भी प्रत्येक राज्य में अलग-अलग साल तथा अलग-अलग तिथि अनुसार कार्यशील रहती है।

इस सब बातों पर यदि गौर किया जाए तो प्रत्येक राजनीतिक पार्टी का ज्यादातर समय चुनाव प्रचार, रैली, सभा, रोड सो आदि में ही जाता है? भला देश में विकास के कार्य कैसे गति पकड़ेगी। जब देश के सारे नेता चाहे पक्ष के हो या विपक्ष के चुनाव प्रचार के पीछे ही भाग रहे है।

पूरा विश्व 2020 से ही कोविड 19 से ग्रसित है,एक के बाद एक कोविड के नए नए वैरियंट आ रहे है।आम लोगो की जिंदगी अस्त-व्यस्त हो गई है।जन जीवन में प्रयोग की जानेवाली प्रत्येक वस्तु की कीमत 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ चुकी है।परंतु इस ओर किसी भी राजनीतिक पार्टी का ध्यान नही है ।मिले सुर मेरा तुम्हारा की तरह, पक्ष और विपक्ष सभी नेताओ का एक ही सुर है कोरोना महामारी है क्या किया जा सकता है??

लाॅक डाउन एक मात्र विकल्प होता है ।लाॅक डाउन लगा दिया जाता है।इस लाॅक डाउन के कारण हम जनता का ही नुकसान होता है और लाॅक डाउन के लिए भी हम जनता ही जिम्मेदार होते है। बात जब जनता की होती है तो सभी राजनीतिक पार्टी 

सरकार को जनता के हित के लिए घेरती है परंतु बात जब चुनाव की होती है तो सारी राजनीतिक पार्टी के एक ही सुर होते है, चाहे जनता का जो भी हो चुनाव तो बस जीतना हैं? चुनाव समय से ही होना है?

यह बात पिछले साल हुए पश्चिम बंगाल व अन्य राज्य की विधान सभा चुनाव में साबित हो चुका है। 2021 में कोरोना की दूसरी लहर के कारण भारत को बहुत नुकसान उठाना पड़ा।पूरे विश्व में भारत की बेइज्जती हुई। इस बेइज्जती का कारण निश्चय ही 2021 का विधान सभा चुनाव रहा।

कई राज्यों में विधान सभा चुनाव के कारण लाॅक डाउन लगाने में देर हुई, जिसकी कीमत हजारो मासूमों की जान ने दी।श्मशान में एक के बाद एक जलती लाशें, साइकिल और रिक्शा पर लाशों को ढ़ोते लोग, कई शीर्ष के लोग जिन्होने कोरोना की दूसरी लहर में अपने प्राण गवां दिए।सारे के सारे दृश्य मन को विचलित करते है। वही स्थिति 2022  की शुरुआत में बन रही है। 

ओमिक्रोन के कारण प्रत्येक राज्य की स्थिति बिगड़ती जा रही है। स्कूल कॉलेज बंद होने लगे है। सभी राज्य अपने अपने स्तर से इससे निपटने की तैयारी कर रहे है वही दूसरी ओर साल 2022 की शुरुआत पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। इन पांचो राज्य में चुनाव प्रचार जोर शोर से हो रहा है ।

चुनाव आयोग ने यह भी कहा है कि चुनाव तय समय सीमा में ही कराये जाऐगे। ऐसे में सभी चुनावी राज्यों में सियासी हलचलें तेज हो गई है। सबसे ज्यादा चर्चा उत्तर प्रदेश चुनाव की है। 403 विधानसभा सीट वाले इस प्रदेश में सभी राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। राजनीतिक बयानबाजी ,नेता एक-दूसरे पर निशाना, चुनावी वादों की भी बौछार ,धरना-प्रदर्शन , रैली , सभाए

इन पांचों राज्यों में जोरो पर है। अगर कुछ नही है तो वह है करोना के तीसरे वेरिएंट का डर जिससे पूरा विश्व दहशत में है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री आम आदमी पार्टी के नेता  अरविंद केजरीवाल कोरोना पॉजिटिव हो गए है । केजरीवाल ने सोमवार को देहरादून में सभा की थी। वहीं कुछ दिन पहले चंडीगढ़ और पटियाला में भी रैली की थी। इसके अगले दिन नए साल पर वे अमृतसर में धार्मिक स्थानों पर माथा टेकने गए थे। इनमें से किसी स्थान पर केजरीवाल मास्क लगाए नहीं दिखे थे।

देश की राजधानी दिल्ली के मुख्यमंत्री कोरोना पॉजिटिव हो गए है,उन्होंने इसकी जानकारी ट्वीट कर दी।कोरोना की रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद मुख्यमंत्री केजरीवाल ने खुद को आइसोलेट कर लिया है।

कुछ दिन पहले केजरीवाल  अपनी पार्टी के प्रचार के लिए गोवा, और पंजाब जैसे चुनावी राज्यों के भी कई दौरे गये हुए थे।उन्हे करोना तब हुआ जब वे चुनाव प्रचार के लिए देहरादून एक रैली में गये हुए थे।रैली में उन्होने मास्क नही पहना था क्योंकि, मास्क पहनने के बाद बोलने में दिक्कत होती है ।आवाज दूर तक नही जाती है।चुनावी रैली में पिछले साल अप्रैल में, केजरीवाल की पत्नी सुनीता भी संक्रमित हो गई थीं। जिसके बाद मुख्यमंत्री ने खुद को आईसोलेट कर लिया था।

अब सोचनेवाली बात यह है कि,हाई सिक्योरिटी के बाद भी एक नेता को करोना हो जाए तो हम आम आदमी की क्या स्थिति हो सकती है।जहाँ हजारो की संख्या में लोग रैली में शामिल होते है।

मुख्यमंत्री की उस रैली से कितने लोग करोना पॉजिटिव हुए होगें इसकी कल्पना की जा सकती है।

मंत्री मुख्यमंत्री ,तथा अन्य नेतागण चुनावी रैली करते है एवं करोना पॉजिटिव होते है तो उनके लिए बेहतर से बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध है ,मगर रैली में शामिल किसी भी व्यक्ति की सुरक्षा की कोई गारंटी नही।

बहुत ज्यादा जरूरी है कि आम आदमी इस कोरोना काल के चुनावी पचड़ो से बचे।कोई भी चुनाव हो पुनः पांच वर्ष में होगी ,मगर हमारी जिंदगी एक ही है और इसकी सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है। चुनावी सभा, रोड सो, रैली सभी चुनावी कार्यक्रम का बहिष्कार आम जनता के द्वारा होना जरूरी है । क्योकि, जितना आवागमण चुनाव के कारण होता है, जितनी भीड़ रैली के कारण जमा होती है ,उतना किसी भी समाजिक समारोह में नही होती। इसलिए हम आम जनता को मामले की गंभीरता को समझना होगा और बचाव हमें खुद करना होगा।

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