भारत में आखिर वृद्धाश्रमों की जरूरत?
बड़े बुजुर्गों का सम्मान करना भारतीय संस्कृति और सभ्यतागत मूल्यों के मुख्य पहलू हैं..
युवाओं को भारतीय सभ्यता, संयुक्त परिवार, संस्कृति, त्योहारों और आध्यात्मिक आस्था के प्रति एक अभियान चलाकर जागृत करना ज़रूरी - एड किशन भावनानी
भारतीय संस्कृति और सभ्यता, रीति रिवाज, त्यौहार, आध्यात्मिक आस्था, संयुक्त परिवार हजारों साल पुराने और जग प्रसिद्ध है। जिसे देखने अनेक देशों से सैलानी भारत आते हैं और अचंभित होकर उन स्थितियों में मशगूल हो जाते हैं। परंतु हम भारत में अनेक सालों से कुछ वाक्यांश सुनते आ रहे हैं कि, गया वह जमाना! जमाना बदल गया है!! किस जमाने में जी रहे हो!!! यह पुराने जमाने के ढकोसले विचारों का है!!! इत्यादि अनेक बातें आज के युवा अन्यों पर शिकींजे कसते हुए कहकर ठहाके लगाते हैं!!!
साथियों बात अगर हम अपने माता-पिता दादा-दादी के प्रति अपनी फ़र्ज अदायगी और भारतीय संस्कृति सभ्यतागत मूल्यों की करें तो आज के नए पाश्चात्य संस्कृति से ओतप्रोत ज़माने में अपने बड़े बुजुर्गों के मान-सम्मान, सभ्यतागत फ़र्ज अदायगी, जवाबदारी से हमारे बहुत मात्रा में युवा पीछे हटते हुए दिखाई दे रहे हैं!! जिसका खुल्ला प्रमाण वृद्ध आश्रमों की बढ़ती हुई संख्या है!!! आखिर वृद्ध आश्रमों की जरूरत भारत जैसे सांस्कृतिक सभ्यतागत धन्य देश में क्यों ???
साथियों बात अगर हम युवाओं और माता-पिता बुजुर्गों के बीच बढ़ती अनबन, खाई और वृद्ध आश्रमों में वृद्धों की बढ़ती संख्या की करें तो इसके चार मुख्य कारण हैं (1) युवाओं का नौकरी के लिए अपने पैतृक स्थान से बाहर जाकर अन्य बड़े शहरों मेट्रो सिटीज, विदेशों में सेट होना (2) पाश्चात्य संस्कृति का युवाओं पर असर (3) भारतीय संस्कृति, सभ्यतागत मूल्यों की जानकारी की कमी (4) माता-पिता व बुजुर्गों के वर्तमान समय के विचारों में ढलनें की कमी।
साथियों बात अगर हम पहले कारण की करें तो आज हर गांव, छोटी बड़ी सिटी का युवा चाहे वह मेल हो या फीमेल बाहर जाकर नौकरी करना चाहता है जिसमें ऐसे धनाढ्य वर्ग भी शामिल है जो सर्वसाधन संपन्न है फ़िर भी उन्हें ज़ाब करना पसंद है इसमें अधिकतम परिणाम यह देखने को मिले हैं कि युवा एक बार अगर बाहर गया, चाहे वह देश में हो या विदेश में, तो उसके वापस अपने पैतृक स्थान पर लौट आने की उम्मीद कम ही रहती है!! और संयुक्त परिवार से टूट की ओर कदम बढ़ते हैं लेकिन वे माता-पिता घरबार के लिए शुरू में खर्च भेजते हैं बाद में स्थिति विपरीत हो जाती है, ऐसा मेरा मानना इसलिए है, क्योंकि मैंने अपनी छोटी सिटी में ही अपने आसपास कुछ परिवारों में स्थिति देखी है जिनके बच्चे आज बड़े शहरों में, विदेशों में जॉब कर रहे हैं और यहां माता-पिता की स्थिति अनुकूल नहीं है समझने वालों के लिए इशारा काफी है!!!
साथियों बात अगर हम दूसरे कारण पाश्चात्य संस्कृति का युवाओं पर विपरीत असर की करें तो आज युवाओं को कृत्रिम संसाधनों पर व्यय, प्यार व्यार, इश्क का भूत दिमाग में सवार रहना हैं, हालांकि प्यार करना कोई बुरी बात नहीं है पर माता-पिता को दुखी कर यह सब करना उचित नहीं। जुआ, सट्टा, मदिरा इत्यादि असामाजिक विकार, आदतों से ग्रसित होने के कारण माता-पिता, घर वालों के लिए स्थिति विपरीत हो जाती है और संयुक्त परिवार टूट की ओर कदम बढ़ाता है जिसके उदाहरण हम सब अपने आसपास देख सकते हैं यह भी हमारी छोटी सिटी में अनेक स्थानों पर हुआ है जिसमें गरीब से लेकर अमीर तक ग्रसित है!!!
साथियों बात अगर हम तीसरे कारण की करें तो आज अनेक युवाओं को भारतीय संस्कृति, सभ्यतागत मूल्यों की जानकारी तथा संयुक्त परिवार का महत्व पता नहीं है, या कम है जिसके कारण उनको श्रावण से प्रेरणा लेने में कठिनाई महसूस हो रही है, जिसके लिए हम सबको मिलकर हर जिला स्तरपर, सरकारी तंत्र के साथ मिलकर सामाजिक संस्थाओं को जिला स्तरपर एमओक्यू कर भारतीय संस्कृति, सभ्यतागत मूल्यों का जनअभियान चलाकर युवाओं को जनजागरण में शामिल करना ज़रूरी है।
साथियों बात अगर हम चौथे कारण की करें तो आज ज़माना वास्तव में बदल गया है उसके अनुसार अब बुजुर्गों माता-पिता को भी बच्चों की खुशियों में ख़ुश रहने, थोड़ा सम्मान पूर्वक त्याग करना समय की पुकार है!! परंतु खुद्दारी, सम्मान, आत्मसम्मान और अपनी स्थिति को कभी नहीं खोने देना होगा।
साथियों बात अगर हम माननीय उपराष्ट्रपति द्वारा दिनांक 15 जनवरी 2022 को एक कार्यक्रम में संबोधन की करें तो उपराष्ट्रपति सचिवालय द्वारा जारी पीआईबी के अनुसार उन्होंने एक परिवार में खुद से छोटे सदस्यों का मार्गदर्शन करने और सलाह देने के संबंध में बड़ों की निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि अंतरपीढ़ीगत जुड़ाव मूल्य प्रणाली को बचाने और इसे आगे बढ़ावा देने में सहायता करती है।
उन्होंने आज संयुक्त परिवार व्यवस्था और बड़ों का सम्मान करने की परंपरा को मजबूत करने का आह्वाहन किया, जो भारत के सभ्यतागत मूल्यों के मूल पहलू हैं। उन्होंने भारतीय संस्कृति में त्योहारों के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि आज के युवाओं को प्रकृति की उदारता को मनाने, परिवारों को एक साथ लाने और समाज में शांति व सद्भाव लाने में अनेक त्योहारों की विशिष्टता को समझना चाहिए।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि आखिर विद्याश्रम की जरूरत भारत में क्यों??? बड़े बुजुर्गों का सम्मान करना भारतीय संस्कृति और सभ्यतागत मूल्यों के मुख्य पहलू हैं तथा युवाओं को भारतीय सभ्यता, संयुक्त परिवार सहित संस्कृति त्योहारों और आध्यात्मिक आस्था के प्रति एक अभियान चलाकर जागृत करना तत्काल एक ज़रूरी है।
*-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र*
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