पार्टीवाद की ओछी राजनीति लोकतंत्र के लिए घातक

सुनीता कुमारी

वर्तमान में देश की राजनीतिक की जो तस्वीर सामने आ ही है वह निश्चय ही लोकतंत्र के लिए अच्छा नही है।लोकतंत्र आम जनता का आपसी सहमति से शासन है। परतु यह सहमति कहा है? 

आम जनता के वोट देने मात्र में? जो वोट देने से पहले और बाद में यह देखती ही नही कि, जिसे उसने वोट दिया है वो कर क्या रहे है? या राजनीतिक पार्टियों का चुहे बिल्ली की तरह झगड़ने मात्र में? जिसने मर्यादा की सारी सीमा रेखा लांघ रखी है। आखिर ये आम सहमति की बात गई कहां? लोकतंत्र तंत्र में राजनीतिक पार्टियां ,देश के शासन व्यवस्था में हिस्सा लेने के लिए बनी है।

देश में जितनी भी राजनीतिक पार्टियां है सब के सब देश के शासन में हिस्सा लेने के लिए बनी है चाहे ये राजनीतिक पार्टियां संसद में पक्ष में बैठे या विपक्ष में बैठे। इन राजनीतिक पार्टियों का काम देश की शासन व्यवस्था को देखना है। पक्ष और विपक्ष दोनों की जिम्मेदारी एकसमान है।सत्तापक्ष का काम है। सभी तरह के कार्य करना और विपक्ष की जिम्मेदारी है उन कार्यों पर नजर रखना। दोनों को मिलकर देशहित के लिए काम करना चाहिए, देश के विकास के लिए काम करना चाहिए। 

मगर हमारे देश के लोकतंत्र का दुर्भाग्य है कि हमारे देश में राजनीतिक पार्टी का उद्देश्य मात्र एक  पार्टी का दूसरी पार्टी से झगरना है जोड़ तोड़ करना है, आरोप प्रत्यारोप करना है बयानबाजी करना है। निजी स्तर पर या पार्टी के हित के स्तर पर स्वार्थ सिद्ध करने के लिए किसी भी हद तक चले जाना आज की राजनीति की आम बात है। 

ऐसा लगता है जैसे देश की वर्तमान राजनीतिक में मर्यादा शब्द, व राजनीतिक मर्यादा का पूरी तरह हनन हो चुका है । राजनीतिक अब राजनीतिक न रहकर अखारे का मैदान बनकर रह गया है। जहां सत्तापक्ष पावर का उपयोग कर रहा है और विपक्ष जी जान लगाकर रेस में बने रहने के लिए प्रयत्नशील है। 

उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है। ओमिक्रोन के बढते खतरे के बीच अच्छी बात है कि, चुनाव आयोग 15 जनवरी तक रैलियों पर पाबंदी लगा दी है।  

कोरोना की ओमिक्रोन के बढ़ते खतरे के बीच चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी है। 10 फरवरी से  पांचो राज्यों में होने है।जिसमें यूपी में सात चरणों, मणिपुर में दो चरणों में चुनाव होंगे। इसके अलावा पंजाब, गोवा और उत्तराखंड में एक एक चरण में चुनाव होंगे। 

चुनाव की इसी गहमागहमी के बीच प्रधानमंत्री मोदी जी के सुरक्षा में हुई चूक का मामला आज पूरे देश की राजनीतिक में गरमाया हुआ है। पूरे देश में भाजपा कार्यकर्ता द्वारा मोदी जी की सुरक्षा हेतु हवन कराए जा रहे है पंजाब में कांगेस की सरकार को जमकर लताड़ा जा रहा है।

वही दूसरी ओर पंजाब की कांग्रेस सरकार के मंत्री एवं वरिष्ठ नेता मोदी जी की सुरक्षा मामला को ,ढोंग बता रहे है ,पंजाब सरकार के खिलाफ साजिश बता रहे है ,चुनाव प्रचार का एक माध्यम बताकर भाजपा की आलोचना कर रहे है।

राजनीतिक घमासान छिड़ा हुआ है एवं वर्तमान राजनीतिक का कुरूप चेहरा सबके सामने है, जिसने राजनीति में मर्यादा की सारी सीमा रेखा लांघ दी है।पिछले साल 2021 में प.बंगाल चुनाव में भी ओछी राजनीतिक का चेहरा यही चेहरा दिखा था।

निश्चित ही प्रधानमंत्री का पंजाब में सुरक्षा का मामला निंदनीय है। प्रधानमंत्री की सुरक्षा के मामले में हुई चुक के बराबर भी चुक नही होनी चाहिए। चाहे जो भी राज्य हो एवं जिस भी पार्टी की सरकार क्यों न हो यदि प्रधानमंत्री का दौरा उस राज्य में होता है तो राज्य के मुख्यमंत्री को स्वयं सुरक्षा व्यवस्था का पूरा जायजा खुद से लेना चाहिए।  मामले की गहराई को देखते हुए खुद सोनिया गांधी ने कांग्रेस पार्टी की तरफ से इस गलती के लिए माफी मांगी है। पंजाब की कांग्रेस सरकार के सभी मंत्री को भी इस गलती का एहसास होना चाहिए था।

सुरक्षा में इतनी बड़ी चुक क्षम्य नही है। जबकि उल्टा पंजाब की कांग्रेस  के नेता बयानबाजी कर रहे है, ढोंग और साजिश बता रहे है आखिर क्यो? बात इतनी बड़ी है और इसे इतने छोटे ढंग से ओछे तरीके से पेश किया जा रहा है आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार है?

निश्चित ही वर्तमान की ओछी राजनीति?

प्रधानमंत्री का पद निश्चय ही गरिमामय होता है। इस गरिमा का ध्यान कदम कदम पर रखा जाना चाहिए। पंजाब सरकार के द्वारा हुई चुक पर प्रधानमंत्री मोदी जी का ये कहना कि, "बचकर जा रहा है अपने मुख्यमंत्री का धन्यवाद कहना"

ये मुझे कही से भी सोभनीय नही लग रहा है। 

क्या देश और राज्य अलग-अलग है?

प्रधानमंत्री का यह वचन केंद्र और राज्य को अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर खड़ा कर रहा है। जो लोकतंत्र के लिए कही से भी अच्छा नही है। प्रत्येक राज्य देश का हिस्सा है। केंद्र का फर्ज है कि राज्य में सरकार चाहे किसी भी पार्टी की क्यों न हो उसके साथ सही तालमेल के साथ काम करे।

प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा व्यवस्था में यह चुक भाजपा शासित प्रदेश में होती तब भी क्या यही बात प्रधानमंत्री जी बोलते निश्चित ही नही?

फिर पंजाब में क्यों?

राज्य के अंदर सुरक्षा का कार्यभार राज्य सरकार पर है, पूरे राष्ट्र की सुरक्षा का कार्यभार केंद्र पर है। लोकतंत्र में राज्य और केन्द्र को साथ मिलकर सारे कार्य करने है। मगर ऐसा लग रहा है कि केंद्र का तालमेल उन्ही राज्यों में बेहतर है जहां भाजपा सरकार है।

लोकतंत्र में देशहित, देश का विकास, देश की सुरक्षा, प्रधानमंत्री की सुरक्षा देश के प्रत्येक व्यक्ति की सुरक्षा पार्टीवाद से ऊपर होनी चाहिए। मगर हमारे देश के लोकतंत्र का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि यह पार्टीवाद की संकीर्ण मानसिकता में फसकर कराह रहा है। पार्टी से जुड़े लोग घमासान करने में लगे है, आम जनता मूकदर्शक व मूक-बधिर बनी हुई है।

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