घर को रोशन करती हैं बेटियाँ!

इस गांव को कभी उजड़ने मत देना?

लड़के आज हैं तो आने वाला कल हैं बेटियाँ..

सुजाता 

लखनऊ में उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थानम एवं सृजन शक्ति वेलफ़ेयर सोसाइटी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक मासात्मक रंगमंच कार्यशाला के अंतर्गत आज सृजन शक्ति वेलफ़ेयर सोसाइटी की नवीनतम नाट्य प्रस्तुति सन्स्कृत भाषा मे प्रकरणम मौजपुरस्य संगीत नाटक अकादमी के बाल्मीकि रंगशाला में हुआ।  जयवर्धन जी  का मूल आलेख था कार्यशाला संयोजन  रंगकर्मी व संस्था की महासचिव डॉ सीमा मोदी का रहा

मुख्य अतिथि जितेंद्र कुमार आईएएस, डॉ वाचस्पति मिश्र अध्यक्ष उत्तर प्रदेश सन्स्कृत संस्थान, पवन कुमार, आई ए एस निदेशक उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थानम, हरी प्रताप शाही आईएएस, भारतेंदु नाटक अकादमी  के पूर्व निदेशक रमेश चंद्र गुप्ता, सन्स्कृत  के विद्वान दिनेश, उर्दू विभाग के मोहसिन ख़ान  रहे।

कथानुसार, मौजपुर नामक एक गांव जहां पर सब कुछ खुशी-खुशी चल रहा है, अचानक उस दिन एक गांव में एक डॉक्टर आता है डॉक्टर ऑल राइट।

यह डॉक्टर साहब एक नई स्कीम लेकर आते हैं जिसमें गांव की सभी गर्भवती महिलाओं की जांच करके यह पता लगाने का ऑफर देते हैं कि गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है या लड़की। दान दहेज और समाज की कुरीतियों के तहत दबे हुए  लोगों के लिए ये ऑफर एक तरह से किसी चमत्कार से कम नहीं था डॉक्टर अलराइट के क्लीनिक के बाहर गर्भ में पल रहे शिशु की जांच कराने वालों की भीड़ लग जाती है, धड़ल्ले से गर्भ में पल रहे बच्ची को मार दिया जाता और लड़कों को जन्म दिया जाता जिसका परिणाम ये हुआ पूरे गांव में एक भी महिला नहीं बचती।! 

बेटियां पैदा नहीं हुई, जो वृद्ध महिलाएं थी वह गुजर गई और गांव में महिलाएं ना होने की वजह से कोइ अपनी बेटी की शादी करना मुनासिब नहीं समझता अब गांव पूरी तरह से सिर्फ और सिर्फ हर वर्ग के पुरुषों से भरा था, गांव के प्रधान की सबसे बड़ी चिंता गांव के नए उम्र के लड़कों के शादी की थी, 

गांव का एकमात्र नाउ लल्लन जिसकी मदद से रोज नए-नए देखुआर गांव में पकड़ कर लाए जाते और किसी न किसी लड़के की शादी के लिए उन्हें लालायित किया जाता पर  वास्तविकता जानने के बाद अगुआर उस गांव से नौ दो ग्यारह हो जाते। 

किसी तरह करके एक हरिओम नामक आगुआर अपनी बेटी की शादी तीन शर्तों पर करने के लिए तैयार होता है तीन शर्तों में से एक शर्त बहुत भयानक थी जिसके मुताबिक शादी के बाद लड़के को दुल्हन के साथ घर जमाई बनकर जाना पड़ेगा बारात लेकर लड़की आएगी और वह दूल्हे को एक दुल्हन की तरह विदा करा कर ले जाएगी  थोड़ी सी हा-ना के बाद इस शर्त पर विवाह तय होता है और दूल्हे को दुल्हन के साथ विदा करा दिया जाता है इसके बाद तो उस गांव में इस तरह के देखुआरो की भीड़ लग जाती है जिसमें हर कोई दूल्हे को विदा कराने के चक्कर में वहां शादी करता है अंत में पूरे गांव में सिर्फ वृद्ध बचते हैं।

इस गांव की स्थिति बहुत भयानक हो जाती है डॉक्टर ऑलराइट को एहसास होता है कि उसने कितना बड़ा पाप किया एक शादी में एक दुल्हन जब बारात लेकर आती है वह दुल्हन से कहता है कि अगर मेरी बेटी होती तो मैं उसे इसी गांव में छोड़ता और कहता कि इस गांव को कभी उजड़ने मत देना, मेरे पाप की भरपाई तुम करना यह बात उस दुल्हन को छू जाती है वह अपने पिता के साथ वापस दूल्हे को विदा कराकर ले जाना नहीं चाहती और इस बात से मना कर देती है,  उसकी जिद के आगे उसके पिता को झुकना पड़ता है वह लड़की वही रहती है और 1 साल के बाद एक नन्हीं सी कली को जन्म देती वह गांव फिर से धीरे-धीरे महिलाओं से गुलजार होने लगता है यही कहानी थी किस्सा मौजपुर की।

कलाकारो में. मंच पर. अभय, सर्वेश कुमार, नितेश पांडेय, अभिजीत, आदर्श द्विवेदी,  निर्मल कुमार, रिया, वर्षा, सिद्धनत, प्रियंका, रजनीकांत, बीनी, अचित, अंकित, युवान, विशु, अनिमेध, जितेंद्र कुमार में  बखूबी नाट्यप्रस्तुति दी।

इस कार्यक्रम का संचालन, सनकृत  अनुवाद व प्रशिक्षक  अंशु गुप्ता, प्रस्तुति सहयोग आशिष गुप्ता, नवनीत मिश्रा, राहुल दुबे, शुभम शुक्ला, सूरज, गौतम अभिषेक दूबे, आनन्द कुमार का रहा, निर्देशन विक्रांत त्रिपाठी, प्रस्तुति नियंत्रक सौम्या मोदी, मूल आलेख जयवर्धन व सम्पूर्ण कार्यशाला निर्देशन डॉ सीमा मोदी का रहा।

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