जातिवाद की दूषित राजनीति से टूट रहा देश में सभ्य समाज
सुनिता कुमारी
लोकतंत्र बनाम चुनाव तंत्र लोकतंत्र की सारी शासन व्यवस्था का आधार चुनाव है। चुनावी प्रक्रिया के द्वारा केंद्र सरकार या राज्य सरकार का गठन होता है, जिसमें देश में रहने वाले 18 साल से ऊपर प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी होती है। लोकतंत्र पूर्णतः लोकहित पर आधारित है आम लोगों की सरकार होती होती है। विश्व के लगभग 50% देशों में लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था है।
चुनाव के माध्यम से सरकारें बनती है सत्र चलता है परंतु , हकीकत के धरातल पर कहानी कुछ और है? स्वस्थ लोकतंत्र जो कि वास्तव में लोकतंत्र की झलक है वह बहुत ही कम देशों में देखने के लिए मिलती है। जहां लोकतंत्र के सही नियम के अनुसार शासन व्यवस्था चल रहा है। अधिकतर देशों में लोकतंत्र तो है परंतु लोकतंत्र की आड़ में तानाशाही नौकरशाही जैसी व्यवस्था के कारण शासन में बहुत सारी त्रुटियां देखी जा सकती हैं। बहुत सारे देश के उदाहरण लिये जा सकते हैं जिसमें लोकतंत्र तो है मगर राजतंत्र से ज्यादा त्रुटियां देश की शासन व्यवस्था में भरी पड़ी है। जिसमें चीन पहले नंबर पर है और उत्तर कोरिया दूसरे नंबर पर है।
हमारे देश में भी लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था है चुनाव से पहले पूर्ण रूप से स्वस्थ लोकतंत्र की झलक भारत में दिखाई देती है परंतु, चुनाव के बाद यह कुछ और ही दिखती है चुनाव से पहले सारी चुनावी पार्टियां देश हित की बात करती हैं देश के विकास की बात करती हैं प्रत्येक व्यक्ति को रोजगार व्यवसाय देने की बात करती हैं परंतु चुनाव जीतने के बाद इनके सुर ही बदल जाते हैं। प्रत्यक्ष तौर पर यह पार्टियां देश में विकास की बात करती हैं, गरीबी, बेरोजगारी हटाने के बाद करती हैं महंगाई कम करने की बात करती हैं, परंतु अप्रत्यक्ष रूप से जातिवाद और धर्म का सहारा लेकर अपना स्वार्थ सिद्ध करती हैं। जाति समीकरण के हिसाब से चुनावी रणनीति बनाती हैं और समाज को बांटने का काम करती हैं।
यह सही है कि देश में प्रत्येक वर्ग को सुविधा मिलनी जरूरी है क्योंकि, देश में कुछ वर्ग है जो कि काफी कमजोर है उन्हें सहारे की जरूरत है। परंतु जाति धर्म और वर्गवाद को चुनाव में या राजनीति में शामिल करने से इसके दुष्परिणाम भी देखने के लिए मिल रहे हैं। ।हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है तो देश को जाति निरपेक्ष भी होना चाहिए। हर एक नेता की सोच में भी धर्मनिरपेक्ष और जाति निरपेक्ष की भावना होनी चाहिए परंतु हकीकत यह है कि इन्हीं दो तत्वों के आधार पर आजादी के बाद से राजनीतिक पार्टियां राजनीति कर रही हैं। राजनीति के केंद्र में जाति और धर्म चुनाव में मुख्य मुद्दा हार और जीत का बना हुआ है।
जाति और धर्म की यह विकृति जो राजनीतिक पार्टियों के लिए हथियार का काम करती हैं वहीं विकृति धीरे-धीरे आम जनता में भी आने लगी है। आज से लगभग दस पंद्रह वर्ष पहले की बात की जाए तो स्थिति कुछ और थी, आम जनता धार्मिक और जातिवाद के पीछे उतना नहीं भाग रही थी जितना अभी भाग रही है इंटरनेट और सोशल मीडिया के कारण इन सब चीजों को अत्यधिक बढ़ावा मिल रहा है।
समाज में विद्वेष की भावना बढ़ रही है वहीं राजनीतिक पार्टियां जातिगत एवं धर्म के आधार पर जातिगत जनगणना करवा कर चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहते हैं। जहां पूरा विश्व एक पटल पर आ रहा है वही हमारे देश में जाति और धर्म की भावना को जबरदस्त रूप से बढ़ावा मिल रहा है। जिन आम जनता को मात्र विकास से मतलब था, वह अब जाति और धर्म की जकड़न में बंधते जा रहे हैं। हद होती है जब एक पढ़ा-लिखा वर्ग इन सब बातों में शामिल हो रहा है। सोशल मीडिया भी जाति और धर्म की विकृति को बढ़ावा दे रहा है। लोग देशभक्ति की भावना की जगह जाति और धर्म की भावना से ग्रसित हो रहे हैं। जो देश हित के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं है।
सोशल मीडिया का प्रयोग जनता को जागरूक करने के लिए होना चाहिए, देश में विकास के लिए होना, चाहिए बेरोजगारी दूर करने के लिए होना चाहिए, गरीबी हटाने के लिए होना चाहिए, रोटी कपड़ा और मकान की अवधारणा को मजबूत करने के लिए होना चाहिए। वही इस सोशल मीडिया का प्रयोग जाति और धर्म को बढ़ावा देने के लिए धड़ल्ले से हो रहा है। जो की भविष्य के लिए बहुत ही चिंताजनक विषय है। समय रहते अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो इसके दुष्परिणाम बहुत ही खतरनाक हो सकते हैं ।देश हित के लिए घातक हो सकते हैं।
अभी हाल ही में कुछ दिन पहले मैं प्रवास के दौरान बिहार के गांव गई हुई थी। रात के समय घर के पास ही काफी जोर जोर से आवाजें आ रही थी। बहुत सारे लोग इकट्ठा थे और आपस में बातें कर रहे थे, जब मैंने पूरी बात जानी तो मुझे बहुत बुरा लगा कि, लोग किस तरह से जातिवाद की भावना से ग्रसित हो रहे है? समाज टूट रहा है। बिहार में पंचायत चुनाव चल रहे हैं और इस चुनाव में जाति वाद की दुर्भावना को किस तरह बढ़ावा मिल रहा है मुझे इस चीज का एहसास बहुत नजदीक से हुआ।
मैं जिस गांव गई थी उस गांव में नाई जिन्हें हमारे गांव में लऊआ जाति के नाम से जाना जाता है उस जाति से मुखिया का चुनाव में चुनाव जीतकर बना। उससे पहले कुशवाहा जाति के मुखिया थे।
चुनाव के बाद जातीय उन्माद में एक नवयुवक ने अपने फेसबुक के पोस्ट पर यह पोस्ट डाल दिया की अमुक गांव कुशवाहा मुक्त होना चाहिए। फिर क्या था कुशवाहा जाति के लोग गुस्से से उबल पड़े। उस नवयुवक को माफी मांगने के लिए कहा परंतु, उस युवक ने कहा कि मैंने गलत क्या कहा, मैंने सही कहा इस गांव को कुशवाहा मुक्त गांव होना चाहिए। जबकि उस गांव में नाई जाति की संख्या काफी कम थी। मात्र दस घर ही नहीं होंगे बाकी लगभग सौ घर कुशवाहा होंगे एवं अन्य जाति के लोगभी गांव में थे। निश्चित ही कुशवाहा जाति के प्रत्येक घर के लोगों को फेसबुक पोस्ट पढ़ने के बाद गुस्सा आया होगा।
उस युवक के द्वारा माफी नहीं मांगने के बाद कुशवाहा जाति के कुछ अनजान युवक ने मौका पाकर उस लड़के की बुरी तरह से पिटाई कर दी। इसी पिटाई की चर्चा लोग कर रहे थे। दोनो जाति के लोगो ने मारपीट को लेकर एक दूसरे पर पुलिस केस कर दिया।
गांव की इस स्थिति था को देख कर मैं सोचने के पर विवश हो गई कि किस तरह गांव घर में जातिवाद की भावना के कारण लोगो में जातिवाद की दुर्भावना बढ़ रही है जो देश हित के लिए अत्यन्त घातक है। अगर इस ओर सरकार का ध्यान नहीं गया और आम जनता के बीच धर्मनिरपेक्ष एवं जाति निरपेक्ष की भावना का विकास नहीं हुआ तो यह देश हित के लिए घातक हो सकता है धर्मनिरपेक्ष के साथ देश को जाति निरपेक्ष की दिशा में भी कदम बढ़ाना होगा नहीं तो धार्मिक उन्माद में जो दंगे होते आए हैं, भविष्य में जाति उन्माद में दंगे होने लगेंगे।
भारत जगह जगह से टूटने लगेगा। बहुत ज्यादा जरूरी है कि जातिवाद की भावना को देश से दूर किया जाए। धर्मनिरपेक्ष के साथ-साथ देश को जाति निरपेक्ष भी घोषित किया जाए। जो भी नेतागण जातिवाद या धर्म को लेकर बयानबाजी करते हैं उन्हें बैन किया जाए। तभी हमारा लोकतंत्र मजबूत बन पाएगा। वरना दिन-ब-दिन कमजोर होता चला जाएगा।
वर्तमान में लोग स्मार्टफोन के जरिए सोशल मीडिया से पूरी तरह से जुड़े हुए रहते हैं और यह मीडिया जातिवाद और धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा दे रहा है इसलिए सबसे पहले सोशल मीडिया के लिए कठोर कानून बनाना जरूरी है ताकि कोई भी व्यक्ति जातिवाद और धर्म की गलत भावनाओं का दुष्प्रचार ना कर सके। ऐसा कोई भी पोस्ट ना कर सके जो देश हित के लिए घातक हो ।अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जरूरी है परंतु ऐसी अभिव्यक्ति बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए जिससे देश हित खतरे में पड़ जाए एवं भविष्य में दंगे फसाद का सबक बन जाए।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें